एक कहानी की मौत – अंधविश्वास, टोना टोटका, जादू, ज्योतिष, पुनर्जन्म, मस्त, मनोरंजक, मजेदार, थ्रिलर, हॉरर, भूत, सस्पैंस , रोचक, प्रेरक हो या आप बीती कहानी. कहानियों में अक्सर किरदर मरा करते हैं पर मेरी कहानी में तो कहानी की ही मौत हो गई. कैसे?? जानने के लिए पढिए… एक कहानी की मौत
एक कहानी की मौत
संदीप घर से हंसता मुस्कुराता निकला। उसकी पत्नी बेबी ने बाहर आकर उसे बाय-बाय किया और अपनी पड़ोसन नीलम से बतियाने लगी। संदीप दफ्तर के सौ कामों के बीच छोटी बहन रीना के बारे में सोचता मोटरसाइकिल दौड़ाए चला जा रहा था। कल रीना को लड़के वाले भी देखने आ रहे हैं। उसकी छोटी-सी प्यारी बहन दुल्हन बनकर घर से विदा हो जाएगी और एक नया संसार उसका घर होगा जहां वो किसी की चाची, ताई, आंटी, जेठानी, बड़ी बहू या फिर रीनू बनकर रम जाएगी।
संदीप को मामा कहकर जब नन्हा-मुन्ना पुकारेगा तो वो कितना खुश होगा। सच, भगवान ने इस गृहस्थी को कितना कुछ दिया है बस, अपना आशीर्वाद बनाकर रखना। तभी अचानक ना जाने कहां से एक ट्रक रास्ते में आ गया और…और…नहीं…और मैनें अपना पैन बीच में ही रोक दिया। ‘नहीं’…संदीप को मारना जरूरी है क्या…? बेचारा इतने सपने लेकर घर से चला था।
और मैं कुछ सोचते-सोचते उठ गई और इधर-उधर चहल-कदमी करने लगी। मन में हजारों प्रश्न आसन जमाए बैठे थे कि संदीप का क्या होगा या संदीप के बाद कहानी में बदलाव क्या आना चाहिए। क्या संदीप का पुर्नजन्म दिखाए या फिर उसका हमशक्ल या फिर ट्रक ड्राईवर एक नेक इंसान। मेरा दिमाग चकरा गया। इसी बीच चाय भी पी पर चाय भी कहानी को नया मोड़ देने में असमर्थ रही। मन बैचेन और परेशान हो उठा।
कहानी लगभग खत्म होने पर ही थी पर अब अटक गई तो समझो अटक ही गई। बहुत सोचने पर बस बार-बार यही ध्यान आ रहा था कि जमाने में और भी बहुत दुख-दर्द है। अगर संदीप को मार दिया तो कोई नई बात नहीं होगी। फिर मन में आया कि क्यों ना कहानी को मोड़ दे दिया जाए कि संदीप असल में अच्छा इंसान ही नहीं था। उसकी पहली पत्नी भी थी। वो उसकी अपनी पसंद की थी लेकिन बेबी से उसे दबाव में आकर शादी करनी पड़ी। अब वो बेबी को छोड़ना नहीं चाहता था और पहली पत्नी को भी रखना चाहता था। जबकि पहली पत्नी को अपना हक नहीं मिल रहा था इसलिए उसने अपने भाई के साथ मिलकर पहली पत्नी का प्लान रचा। वो ट्रक ड्राईवर उसकी पहली पत्नी का भाई था। जिसने जानबूझ कर टक्कर मारी।
पर इसमें भी मन नहीं माना। सोचा कि संदीप को एक बार दफ्तर भेज ही देती हूं। शाम को उसे तैयारियां भी तो करनी है। मन बार-बार बेचैन हो रहा था कि क्या रीना के साथ कोई हादसा दिखा दिया जाए कि लड़के वाले या तो आए ही नहीं या फिर देखते हां कर दें और सिर्फ चुन्नी चढ़ाकर ही ले जाए। घर का माहौल एकदम गंभीर हो जाए। कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तभी घर के बाहर घंटी बजी। मेरी सहेली मणि मिठाई का डिब्बा लेकर आई थी। उसकी बुआ के बेटा हुआ है। कुछ देर बैठने के बाद वो चली गई और मेरे मन में मची उथल पुथल फिर हिलोरे लेने लगी। दुबारा पैन लेकर बैठ गई। कहानी को बढ़ाना है तो संदीप की दुर्घटना दिखानी पड़ेगी। हाथ में मिठाई लिए अचानक मन में ख्याल आया कि क्यों न कहानी को प्यारा-सा मोड़ दे दूं।
जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं जिंदगी दुखों से भरी है शायद कहानी से किसी को राहत ही मिल जाए क्योंकि कहानी में खून-खराबा होगा तो…! मन फिर बेचैन हो उठा। कलम छटपटा उठी। बार-बार लिखकर मैं उसे काटे जा रही थी। जहां कहानी की शुरूआत बहुत अच्छी हुई थी। संदीप और बेबी की पहली मुलाकात, कॉलिज के दिन फिर तांत्रिकों का चक्कर, फिर ज्योतिष की हिदायत…सब कुछ बिल्कुल अच्छा चल रहा था फिर ना जाने कहानी का ये मोड़ इतना जरूरी सा हो गया था। या तो कहानी क्रमशः रखनी पड़ती या फिर इसका पूरा नॉवल बनाना पड़ता। ताने-बाने इतने बुन लिए गए थे कि…!
बस…अब और नहीं। मैने मन ही मन सोच लिया कि संदीप को कुछ नहीं होगा। तांत्रिक की बात गलत निकलेगी और वो शाम को घर सही सलामत पहुंच जाएगा। पर मेरी कलम फिर रूक गई और सोचने लगी कि आज का समाज अंधविश्वास के साए में ही तो जी रहा है।
अंधविश्वास की कहानियां कितनी चटकारे लेकर पढ़ी जाती हैं वो समाज की पंसद के विरोध में भी तो नहीं बोल सकता तो क्या होगा संदीप का? क्या वो घर से दफ्तर पहुंच पाएगा? क्या पहली पत्नी उसे दर्द देगी? क्या रीना को लड़के वाले देखने आ पाएंगे? क्या इसका अंत खुशी में रखा जाए या किस्तों में कहानी को चलवाकर एक नॉवल का रूप दे दिया जाए?
उफ…इतनी उहापोह…इतना सोच विचार…इतनी देर में तो मैं एक नई कहानी ही लिख देती और और देखते ही देखते मैने कहानी के पांचों पृष्ठ रद्दी की टोकरी के भेंट चढा दिए। और कुछ और नया सोचने में जुट गई… !!!
कैसी लगी एक कहानी की मौत जरुर बताईगा !!
Photo by PSVitaWallpapers
Leave a Reply