खबरिया चैनल – टीवी चैनल और उकताते दर्शक- आज राजदीप सरदेसाई का छपा लेख पढा. महाराष्ट्र सरकार पर देवेंद्र फडणवीस को पत्र था.तीन बाते लिखी थी और बहुत स्टीक !! पर जैसाकि वो हमेशा पुनश्च: लिखते हैं उसमे लिखा था कि आपकी सरकार की अनुचित प्राथमिकताओं पर सवाल उठाने के बाद मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मीडिया का टेबलाईड चरित्र वाला एक तबका उतना ही दोषी है. एक धिनौनी हत्या को तो प्राईमटाईम में प्रमुखता दी जाती है लेकिन किसानों की मौत का उल्लेख तक नही होता.
पढने के बाद मैं बस यही सोचने लगी कि राजदीप सरदेसाई जैसे सीनियर एडिटर भी खबरिया चैनल पर बेसिर पैर की खबरों से परेशान है वही कई बार रवीश जी भी प्राईमटाईम में बातो बातों मे ही सही चैनल्स पर दिखाई जा रही अटरम शटरम खबरों से दुखी होकर बोल जाते हैं. कई बार तो ये दुख उनके चेहरे से भी झलक पडता है. आमंत्रित मेहमान से भी कल के कार्यक्रम में माहौल गरमा सा गया था.
आखिर ये स्वयं प्रमुख पद पर होते हुए दुखी किसलिए हैं??
मेरी सोच है कि बढते न्यूज चैनल और बढती गला काट प्रतिस्पर्धा से इनको बच कर कमस कम अपने चैनल में नए आयाम स्थापित करने चाहिए. वैसे सभी खबरिया चैनल का बहुत बुरा हाल है. लगभग सभी एकंर बहस के दौरान बहुत उतेजित दिखाई देतें हैं और इसी चक्कर में सुर तार सप्तक यानि चिलम चिल्ली तक पहंच जाता है.
वहीं रवीश जी जैसे एंकर्स जिन्हे दर्शक पसंद करता है और फैन लिस्ट भी बहुत लम्बी है इसलिए उन्हें ही कोई सकारात्मक पहल करनी पडेगी बेशक, एक बार चैनल की टीआरपी धटेगी, पर कम से कम , किसी न किसी चैनल पर दर्शक विश्वास तो कर पाएगी अन्यथा अभी तक तो आमंत्रित मेहमान तू तू मैं मैं और एक दूसरे को पीटते नजर आते हैं भगवान न करे कि कभी एंकर्स का नम्बर भी आ गया तो …. !!!