झंडा उंचा रहे हमारा
हमारा तिरंगा
बच्चों, मैं भारत की शान हूँ। तीन रंग लिए मैं सभी को निराला और मन भावन लगता हूँ। पता है, मैं हूँ कौन? जी हाँ, मैं हूँ भारत देश का ध्वज, यानि झण्ड़ा।
जब भी आप मुझे लहराते-फहराते देखते होंगे तो आपके मन में विचार जरूर उठता होगा कि आखिर मेरा जन्म कब कहाँ और कैसे हुआ। आज मैं आपको अपने सफर की कहानी सुनाता हूँ। मेरा रूप जैसा आप आज देखते हैं ऐसा नहीं था। मुझमें समय-समय पर बहुत बदलाव आए पर अब मेरी पहचान बन चुकी है। विदेशों में अनेक झण्ड़ों के बीच में मैं शान से इठलाता हूँ। पता है, 29 मर्इ, 1953 को मैं एवरेस्ट पर लहरा रहा था। मेरी कहानी कोर्इ एक दिन या एक समय की छोटी सी कहानी नहीं है। मेरा मस्तक ऊँचा रखने के लिए हजारों वीर सैनिकों ने बलिदान दे दिया। अपना खून पानी की तरह बहा दिया पर मेरी शान कम ना होने दी।
आपने रामायण या महाभारत तो जरूर पढ़ी होगी। उस समय की पताका या झण्ड़ा यानि मैं लम्बे त्रिभुज आकार में था। मेरे ऊपर भगवान सूर्य का चित्र अंकित रहता था। लंका में भी अलग प्रकार का झण्ड़ा फहराया जाता था। संस्कृत में भगवान विष्णु की पूजा में लिखे एक श्लोक को गरूड़ ध्वज कहा गया जबकि गीता में अर्जुन के ध्वज को कपि ध्वज के नाम से जाना गया। समय-समय मेरे रूप में परिवर्तन आता रहा। अंग्रेज़ी राज्य द्वारा स्थापित सरकारी भवन व मुख्य स्थानों पर यूनियन जैक फहराने लगा। बीसवीं सदी के शुरू में जब देशवासियों की कुछ आँखें खुली। अंग्रेज़ी अत्याचारों से जनता तंग आ चुकी थी। पता है, भारत का पहला झण्ड़ा 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के पारसी बागान चौराहे पर फहराया गया। तब मुझमें तीन रंग लाल, पीला और हरा थे। लाल रंग वाले भाग में आठ सफेद कमल थे। बीच वाले पीले रंग पर नीले रंग में वन्देमातरम लिखा था। नीचे हरे भाग पर बायीं तरफ सफेद सूर्य और दायीं ओर आधे चन्द्रमा के बीच एक तारा बना हुआ था।
मैड़म कामा के दिमाग में देश के लिए झण्ड़ा तैयार करने का विचार आया। जो झण्ड़ा उन्होंने बताया उसमें केसरिया, सफेद तथा हरा रंग रखा गया। पता है, केसरिया भाग में कमल तथा सात नक्षत्र थे। वन्देमातरम को विशेष लोकप्रियता मिली हुर्इ थी। बंकिम चन्द्र चटर्जी जोकि बगला के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे उन्होंने वन्देमातरम की रचना 1882 र्इ0 में की थी। समय धीरे-धीरे चल रहा था कि अचानक जलियाँवाला बाग के घटनाक्रम ने मेरा रूप ही बदल दिया। सन 1923 में झण्ड़े रंग-रूप, आकार का ध्यान रखा गया। मेरी लम्बार्इ और चौड़ार्इ में तीन और दो का अनुपात रखा गया। तीन रंग लाल, हरा, तथा सफेद रखा गया। सफेद रंग पर चरखे को अंकित किया गया। मुझ पर चरखा इस कारण लगाया गया क्योंकि गाँधीजी स्वदेशी प्रचार कर रहे थे। खददर को उस समय विशेष मान्यता दी गर्इ थी। सिर्फ चरखा ही लोगों की जरूरतों को पूरा कर सकता था। इसलिए चरखे को मुझ पर अंकित करवाने की विशेष मान्यता मिली। अभी बात कुछ बननी शुरू ही हुर्इ थी कि सन 1923 में मर्इ महीने में नागपुर के वासी ने रोक दिया। बस तब काफी कहा-सुनी हुर्इ और झण्ड़ा सत्याग्रह का आरम्भ हो गया। 18 जुलार्इ 1923 को झण्ड़ा सत्याग्रह दिवस मनाने की घोषणा हो गर्इ थी और पता है इस आन्दोलन के कर्णधार कौन थे- लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल।
मेरे बारे में अनेको गीत लिखे गए जो उन लोगों के लिए प्रेरणा बने जो चाहते थे कि भारत आजाद हो, स्वतंत्र हो। समूचे राष्ट्र का एक ही लक्ष्य बन गया था कि यूनियन जैक के स्थान पर जब मैं फहरूंगा वही दिन हमारा सर्वश्रेष्ठ दिवस होगा। वीरों की मेहनत रंग लार्इ। 26 जनवरी का दिन स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने की परम्परा पणिड़त जवाहर लाल नेहरू द्वारा आरम्भ की गर्इ। फिर मुझमें काफी बदलाव आए। चरखे का रूप छोटा कर दिया गया। हर रंग विशेष सूचक बना दिया गया। सन 1933 र्इ0 में मुम्बर्इ में एक बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि मेरा रंग तिरंगा ही होगा और 3 गुणा 2 का आयताकार होगा और मेरे तीन रंग भगवा, श्वेत तथा हरा होगा। 30 अगस्त,1933 र्इ0 का दिन ध्वज दिवस के रूप में मनाया गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी यह साबित कर दिया कि राष्ट्रीय ध्वज ही किसी देश के गौरव का चिन्ह है और मेरा सम्मान ही देश का सम्मान है।
22 जुलार्इ 1947 र्इ0 को मुझे नया रूप प्रदान किया गया। अनुपात भी पहले वाला था, रंग भी तीन थे किन्तु सफेद रंग पर बने चरखे के स्थान पर चक्र अंकित कर दिया गया। यह चक्र सारनाथ के स्तम्भ से लिया गया जोकि लगभग ढ़ार्इ हजार से भी पहले अशोक ने बनवाया था। इसी स्तम्भ के ऊपर बनी शेरों की त्रिमूर्ति राज्य चिन्ह के रूप में स्वीकार की गर्इ।
चक्र में चौबीस रेखाएं हैं। इनका अभिप्राय चौबीस घण्टों से बताया गया है। दिन-रात, चौबीस घण्टे हम अपने कार्यों में लगे रहे यही प्रेरणा हमें चक्र देता है। दूसरी ओर चक्र का अर्थ हम गतिशीलता से भी लगा सकते हैं। जहाँ एक ओर सफेद रंग को विद्वानों ने सादा जीवन उच्च विचार का प्रतीक माना है वहीं हरा रंग विश्वास का प्रतीक है जोकि मनुष्य की अनिवार्य अच्छार्इ है। हरियाली को भी हरे रंग में माना गया है। मुझ में हरे रंग को इसलिए भी स्थान मिला है क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है। केसरिया रंग की प्रेरणा से ही वीरों में, नौजवानों में त्याग और बलिदान की ललक बढ़ी थी।
सच, मैं किसी राज्य या वर्ग का ना होकर सम्पूर्ण भारत वर्ष का हूँ। मैं जहाँ भी लहराऊंगा उन सभी को स्वतंत्रता, प्रेम और भार्इचारे का सन्देश देता ही रहूंगा।
झण्ड़ा ऊंचा रहे हमारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
जय हो जय हो जय हो