बढता काम्पीटिशन
आजकल काम्पीटीशन इतना बढ गया है कि बहुत विचार विमर्श चलता रहता है कि बच्चे को कौन सा क्षेत्र दिलवाया जाए. द्फ्तर मे बास का बेटा इंजीनियर है एक बार तो मन आता है कि ये पढाई सही है.
शर्मा जी का विचार है कि डाक्टरी भी बुरी नही है घर मे एक डाक्टर हो तो अच्छा रहता है. पर जब लाल बत्ती वाली ग़ाडी देखते हैं तो मन करता है कि बच्चा सरकारी अफसर ही बने. बडा सा घर हो. नौकर चाकर आगे पीछे घूमे.
वही एक एक चैनल के reporter को देख कर कभी कभी मन करता है कि TV पर आए news पढे और मशहूर हो जाए…
वही पडोस के मियाँ जी कहते हैं कि बच्चे को सीधा विदेश भेज दो. वहाँ पढाई भी करेगा और कमाई भी. उधर दादी ने रट लगा रखी है कि बचपने मे उनका मन था कि वो singer बने पर अपना शौक तो पूरा नही कर पाई अब अपनी पोती को गायिका बनाना चाह रही है कि वो रिएल्टी शो मे गाए और वो उसके साथ टीवी पर जाए.
उन्होने तो साडी और ज्वैलरी भी डिसाईड कर ली जो वो उस शो मे पहन कर जाएगी. समझ नही आ रहा कि किस की बात माने .
जी क्या कहा आपने?? … बच्चे से पूछ लें कि वो क्या चाहता है. कमाल करते है आप. जिंदगी का इतना बडा फैसला बच्चे पर कैसे छोड दें. उसे भले बुरे की समझ ही कहा है…. रहने दे आप. हम खुद ही सोच लेगे.