बाल कहानी-शैंकी
हर रविवार की तरह आज भी नन्हीं मणि को अपने कर्मा चाचू का इन्तजार था। मणि अपने मम्मी पापा के साथ शहर में रहती थी और उसके कर्मा चाचू गाँव में काम करते थे पर हर रविवार वह शहर आ जाते थे। मणि को परियों की, राजकुमारियों की और जादू की कहानियां सुनने का बेहद शौक था। उसके मम्मी-पापा तो उसे कहानियां सुनाते नही थे। वह दोनों ही दफ्तर में काम करते थे पर मणि को कामिक्स पढ़ कर उतना आनन्द नहीं आता था जितना कि कहानियां सुन कर आता था। कर्मा चाचू की वह लाड़ली भतीजी थी और वह उसे पूरी दोपहर कहानी सुनाते रहते।
मणि इकलौती बेटी होने के कारण वह सभी की चहेती थी। मणि का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसके चाचू उस दिन उसके लिए छोटा सा सफेद रंग का कुत्ता लाए। मणि को पहले तो उससे बहुत ड़र लगता रहा। जैसे ही वो भौं-भौं करता मणि की ड़र के मारे अंगुलियां मुंह में चली जाती पर कुछ ही घण्टों में वह उससे हिल-मिल गर्इ। मणि के मम्मी-पापा भी उस छोटे से कुत्ते को देखकर बेहद खुश हुए। मणि ने उसका नाम शैंकी रखा। चाचू की कहानियां सुनने का शौक भी वैसे ही बरकरार रहा। उसे बड़ा ही अच्छा लगता था जब पुरानी कहानियों में मेंढ़क राजा बन जाता था या फिर सिर्फ छूने से ही पत्थर परी बन जाती। दो सप्ताह तक चाचू को किसी जरूरी काम से कलकत्ता जाना पड़ा। पर वह वायदा करके गए कि वापिस आने के बाद और खूब सारी कहानियां सुनोंगे।
मणि अपनी पढ़ार्इ और शैंकी में मस्त हो गर्इ। एक दिन जब मणि स्कूल गर्इ हुर्इ थी उसके पापा दफ्तर जाने के लिए गैराज से कार निकाल रहे थे कि अचानक शैंकी को जाने क्या हुआ वो भागा-भागा आया और गाड़ी के टायर के नीचे आकर दबने की वजह से मर गया। अब मणि के मम्मी-पापा दोनों उदास हो गए। उन्हें सबसे ज्यादा मुशिकल यह हो रही थी कि वह मणि को कैसे समझाऐंगे क्योंकि अभी कर्मा भी नहीं है। ऐसे मौके पर कर्मा तो सारी बात संभाल लेता। स्कूल से आने के बाद मणि को शैंकी के मरने की बात ना बता कर यह बताया गया कि वो सुबह ही गेट खुला रहने की वजह से भाग गया था। फिर तो मणि ने जो रो-रो कर हाल बेहाल किया वो तो उसके पड़ोसी भी जान गए थे कि शैंकी कहीं बाहर चला गया है और वह जल्दी ही खुद-ब-खुद लौट आएगा।
दो-तीन दिन इन्तज़ार में बीते पर शैंकी नहीं आया। आता भी कैसे? इस बीच में मणि के पिताजी की कलकत्ता कर्मा से बात हुर्इ और उन्होंने सारी बातें उसे बता दी। कर्मा कल आ रहा है। चलो, अब तो वह सम्भाल ही लेगा। पर इन दो-तीन दिन में ना तो मणि ने ढंग से खाया और ना ही किसी से बात की। यहां तक की वो तो एक स्कूल भी नहीं गर्इ।
एक सुबह, मणि ने देखा घर के बाहर आटो आकर रूका, उसमें चाचू थे और ये क्या उनके पास एक छोटा-सा पिंजरा था और उसमे प्यारा-सा तोता था। वो अपनी जगह चुपचाप बैठी रही। चाचू उसके पास आकर बैठे और कहने लगे कि भर्इ, तुमने शैंकी को क्या कह दिया था। वो मेरे पास कलकत्ता आया था।
क्या….? आपके पास….! मैंने तो कुछ भी नहीं कहा। चाचू ने बताया कि शैंकी कहा कि मणि दी का मन करता है कि वह मुझे स्कूल ले जाए और मुझसे बातें करे पर मैं स्कूल तो नहीं जा सकता और मीठी-मीठी बातें भी नहीं कर सकता इसलिए आप मुझे तोता बना दो जब भी दीदी स्कूल जाऐंगी मैं उड़ कर उन्हें स्कूल तक छोड़ने जाऊंगा और वापिस आ जाऊंगा। और शाम को ढ़ेर सारी बातें करेंगे…. तो, लो भर्इ यह तुम्हारा शैंकी अब मैंने उसे तोता बना दिया है। तभी तोता भी बोलने लगा, हैल्लो……………. मैं शैंकी हूं, मणि………. मैं शैंकी हूं। मणि उस तोते से मिल कर इतनी खुश हुर्इ और चाचू के हाथ से पिंजरा छीन कर अपने कमरे में ले गर्इ। मम्मी-पापा भी सारी बातें पीछे खड़े होकर सुन रहे थे। शैंकी के साथ मणि को खुश देखकर तीनों की आंखें ड़बड़बा आर्इ थी।
कहानी आपको कैसी लगी. जरुर बताईएगा !!!