मासूम बचपन आज सुबह एक जानकार अपनी छोटी बेटी को लेकर कही से आ रही थी. मेरे पूछने पर कि बिटिय़ा आज स्कूल नही गई इस पर उसकी मम्मी बोली क्या बताऊ.
महीने भर से बीमार चल रही है बहुत डाक्टरों को दिखा लिया किसी कि कुछ समझ नही आ रहा स्कूल भी नही भेज रही.
पता नही क्या हो गया. मेरा ध्यान उनकी बेटी पर गया. जब भी वो मुझे मिलती थी हमेशा मुस्कुराती रहती थी. नमस्ते करके उसने स्माईल तो दी पर बहुत चुप थी. उसने भी मुझे कहा कि पता नही आंटी मुझे क्या हो गया है.
मैने हंसते हुए कहा अरे कुछ नही हुआ है. अपनी ड्राईंग शाम को दिखाना कि क्या क्या बनाया है नया. गर्दन हिला कर वो आगे बढ गए पर मैं सोच रही थी कि बेशक बीमारी का समझ न आ रहा हो पर.. क्या हो गया? क्यो हुआ? सोच सोच कर मनोबल गिरने नही देना चाहिए
खासकर बच्चो के सामने तो ऐसी उदासी वाली बाते नही करनी चाहिए बहुत कोमल दिल होता है और किसी भी बात को दिल से जल्दी लगा भी लेते है… !! उन्होने हमें यही जताना चाहिए कि कुछ नही हुआ कोई फिक्र नही और ध्यान बंढाने की कोशिश करते रहनी चाहिए क्योकि बचपन बहुत मासूम होता है.
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