Monica Gupta

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July 15, 2015 By Monica Gupta

शौक, शोक, शेक और शक

dog photo

 

शौक, शोक, शेक और शक

Satire –  व्यंग्य

असल मे, वो क्या है ना हम चाहे कुछ भी हो पर स्टेट्स सिंबल बन चुका है कुत्ता पालना.. जिसे हम सभ्य भाषा मे पप्पी,डागी या मेरा बच्चा के नाम से पुकारते हैं.

अभी परसो ही जब मुझे प्रमोशन मिली और मैने सखी को यह खुशखबरी दी कि अब तो मुझे गाडी भी मिल जाएगी तो लम्बू जी यानि अमिताभ जी के स्टाईल मे कमर पर हाथ रख कर वो बोली वो सब तो ठीक है हंय….   पर क्या कुत्ता है तुम्हारे पास. बस इतना अपमान मै सहन नही कर सकी और ठान ली कि चाहे कुछ भी हो जाए कुत्ते ( ओ क्षमा करे) डागी को तो खरीद कर ही रहूगी.चाहे जो हो सो हो ..भई आखिर स्टेट्स सिंबल का सवाल जो ठहरा. आखिर वो अपने को समझती क्या है . हम भी कुत्ते वाले क्यो नही बन सकते.

यही सब विचारते भुनभुनाते घर पहुंच कर सोचा था कि किसी ना किसी पर गुस्सा जरुर निकालूगी और अगर कोई नही मिला तो कांच वगैरहा का गिलास ही पटक कर तोड दूगी पर पर पर तभी काम वाली बाई का मोबाईल पर मैसेज आया कि आज वो नही आएगी इसलिए ये प्रोग्राम भी कैंसिल करना पडा क्योकि झाडू जो खुद लगानी पडती. खैर खाली मुहं फूलाने से ही काम चलाना पडा.

उसी शाम को किट्टी पार्टी मे जाना था वहां सभी शायद किसी अंग्रेजी फिल्म या किसी हीरो की बात कर रहे थे. जैसे बाक्सर, हासा, एप्सो, ग्रेट्डेन, सेट्बर्नार्ड, जर्मन शेफर्ड् आदि .अब मै भी कहां  चुप रहने वाली थी.  मैं भी बोल पडी कि मैने भी देखा है बहुत खूब हीरो हैं और वाह वाह क्या पिक्चर है. मेरा बोलना ही था कि सभी चुप होकर मेरा मुहं देखने लगी और मिसेज शर्मा हंसती हुई बोली कि भई, कोई कुछ भी कहे आपका सैंस आफ हयूमर बहुत ही शानदार है. मै भी मंद मंद मुस्कुराने लगी वो तो बाद मे पता चला कि वो सभी कुत्तो की नस्ल के नाम थे.

खैर उसी समय मैने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए  कल तक एक कुत्ता मेरे भी घर की शोभा बढाएगा ही बढाएगा. दिखावे का शौक ऐसा चढा कि अगले दिन स्पेशल  दिल्ली गए  और अलग अलग नस्लो से दो चार हुए. ग्रेटडेन की खूंखार बाडी देखकर, उनका खाना पीना  और उसका रेट सुनकर पसीना ही छूट  गया यानि चक्कर खाकर गिरते गिरते बची. बहुतों को देखने के बाद यही फैसला किया गया कि हल्का सा पामेरियन ही ले चलते हैं पर बात पक्की होते होते यही फाईनल हुआ कि अल्सेशियन ही ले कर जाएगे.

हालांकि इसके खाने पीने, रहन सहन के बारे मे जानकर बार बार श्वास अटकने लगी पर शौक था इसलिए चेहरे पर मुस्कान लिए सब समझती रही. अगले कुछ ही पलों में चैक से भुगतान करने के बाद उसे गाडी मे लेकर हम घर लौट आए.

शाम को आते ही अपने फ्रैड सर्किल को न्यौता दे आई. वो अलग बात है कि  भारी भरकम आवाज मे उसके भौकने की आवाज सुन सुन कर सिर दर्द हो चला था. फिर इसका वो सब साफ करना जिसकी आदत ही नही थी और उसे वो सब खिलाना जो मैने कभी सपने मे भी नही सोचा था… लग रहा था बहुत जल्दी मेरा शौक शोक मे बदल रहा है.शाम को सभी सहेलियां अपने अपने पप्पी के साथ उससे मुलाकात करने आई थी.

दोपहर बाद इसका ट्रैनर भी आ गया कि ताकि हमे इसकी आदतो केर बारे मे सीखा सके.पर सच पूछो तो इस कुत्ते के ऐशो आराम देख कर मेरा पूरा शरीर शेक करने लगा है. नाश्ता, दोपहर का भोजन फिर कभी उसे सैर करवाना तो कभी उसके नखरे देखना. मेरा पूरे घर का बजट चार दिन मे ही बिगड चुका है. ट्रैनर का खर्चा देखकर हमने उसे बहुत जल्दी विदा कर दिया पर … पर … पर … कोई शक नही कि शौक के चक्कर मे सारा शरीर शोक मे है और घबराहट और डर के मारे शेक कर रहा है. अब मै उसे निकालना चाह रही हूँ पर इतने रुपए खर्च करके खरीदा था इतने मे कोई खरीदने को तैयार ही नही है.

उसे घर मे लाए आज 10 दिन हो चुके हैं मुझे शक है कि मै उसकी वजह से बहुत जल्दी पागल होने वाली हूं. रात के 12 बजे है और वो फिर भौंक रहा है पता नही उसे भूख लगी है या धूमने जाना है. बस अब तो जैसे भी हो…  इसे बाहर का रास्ता दिखाना ही पडेगा चाहे जो हो सो हो.!!!

Satire …   व्यंग्य

शौक, शोक, शेक और शक  ….कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईएगा …

 

 

 

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