Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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July 12, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

बच्चों की मनोरंजक कहानी – समझदार कौन

बच्चों के लिए अच्छी आदतें

बच्चों की मनोरंजक कहानी – समझदार कौन . Bachho ke Manoranjak Kahani – हमारी जिंदगी में बहुत तनाव है इसलिए कई बार कुछ हलका फुल्का पढ लेना चाहिए ताकि मन रिलेक्स हो जाए . एक ऐसी ही रोचक कहानी पढी …

बच्चों की मनोरंजक कहानी – समझदार कौन

एक राजा खुद को बहुत समझदार समझता था .एक बार उसने धोषणा कर दी कि मुझसे समझदार व्यक्ति खोज कर लाओ मैं देखना चाहता हूं कि मुझसे समझदार भी है कोई या नही … राजा अपने मंत्री को हुक्म देता है और मंत्री बहुत खोज करता है पर उसे कोई समझदार नही मिलता जो राजा को हरा दे … मंत्री की बेटी कहती है आज चिंता न करो …

एक दिन वो एक भोले व्यक्ति को लाती है और पिता को कहती है आप चिंता न करो … राजा के पास लेकर जाया जाता है राजा कहता है वो इशारे से बात करेगा …

राजा एक ऊंगली उठाता है कि सबसे समझदार में हूं इस पर वो दो ऊंगली उठाता है राजा सोचता है कि इसका मतलब है कि भगवान भी है समझदार. राजा फिर तीसरी उंगली ऊठाता है इस पर वो गर्दन न करके हिलाता है और अपनी कुर्सी छोड कर जाने को होता है

राजा खुश क्योकि राजा पूछ्ना चाह रहा था कि क्या कोई तीसरा भी समझदार है और वो मना कर देता है इशारे से और उठ जाता है राजा उसे खूब उपहार देकर विदा करते हैं मंत्र्री को समझ नही आता वो एकांत में पूछता है कि

राजा क्या कह रहे थे … वो बोला राजा ने इशारे से पूछा कि एक भेड चाहिए तो मैंने सोचा राजा बडे आदमी है तो 2 दे देता हूं पर जब राजा ने जब 3 का इशारा किया तो मैंने मना कर दिया .. … मैंने कहा कि 2 है इस पर राजा ने कहा कि मैं 3 भेड लूगा … तो मैंने मना कर दिया और खडा हो गया … इस पर मंत्री हंसता हुआ बोला कि कुछ नही होगा … और उसे वापिस गांव छोड आया..

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May 14, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

छोटी बाल कहानी – मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी

छोटी बाल कहानी – मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी – बच्चों की सोच होती है मम्मी बनना बहुत आसान है … मम्मी को काम ही क्या होता है सारा दिन टीवी देखना, तैयार होना और  बच्चों को डांटना … बस … मम्मी बनना बहुत आसान है … पर क्या वाकई … !! बहुत समय पहले मैने एक कहानी लिखी थी एक लडकी की सोच होती है कि मम्मी बनना बहुत आसान है पर कहानी के अंत में कह उठती है कि मुझे नही बनना मम्मी वम्मी…

छोटी बाल कहानी – मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी

मैं हूं मणि। मैं अभी-अभी रूपा और कुणाल के घर से अपने भाई के साथ लौटी हूं। वहां हम खूब खेले। इतना खेले कि समय का पता ही नहीं चला और जब समय देखा तो सिट्टी पिट्टी गुम… मम्मी तो डाटेंगी ही और पापा भी दफ्तर से घर लौट आए होंगे। घर का गेट खोलते ही शुक्र मनाया कि पापा अभी नहीं लौटे। मम्मी टेलीविजन देख रही थी। सच, कितने मजे है ना मम्मी के। सुबह से रात तक ना कोई पढ़ाई ना कोई स्कूल की टेंशन। मेरा तो दिमाग ही घूम जाता है पढ़ाई से।

ऊपर से जबसे गणित की नई अध्यापिका आई हैं रोज पहाड़े सुनाती है वो भी बीस तक। लिखने में तो मैंने रट्टा लगा रखा है पर सुनाने में…मेरी जान निकलती है। पापा को भी अपने पांव दबवाने का अच्छा बहाना मिल गया है।

मुझे पांव पर खड़ा कर लेते हैं और बोलते हैं कि पांव पर चलते भी रहो और पहाड़े भी याद करते रहो। सच, पढ़ाई ऐसी मुसीबत लगती है कि मेरा मन करता है कि मैं भी मम्मी बन जाऊं और सारा दिन शीशे के सामने बैठी बिंदी, लिपस्टिक लगाती रहा करूं। लेकिन ऐसा अभी होने से तो रहा क्योंकि मैं अभी पांचवी कक्षा में हूं।

हे भगवान…मैं कब बड़ी होऊंगी। सोचते-सोचते मैंने गणित की पुस्तक निकाली और तीन तीया नौ याद करने लगी। पर फिर मैं ख्यालों में खो गई। सच, मम्मी बनने पर मैं आराम से आठ बजे उठूंगी। उठते ही अखबार और चाय का गिलास लेकर बैठूंगी। अखबार पढ़कर नहाने जाऊंगी और फिर टीवी के आगे बैठ जाऊंगी। जब बच्चों के आने का समय होगा…

बच्चों का, मैंने सोचा बच्चे स्कूल से तब आएंगे ना जब मैं उन्हें सोते हुए उठाऊंगी-उसके लिए तो मुझे पांच बजे उठना पड़ेगा। क्योंकि पहले मम्मी मेरे छोटे भाई के लिए दूध की बोतल उबालकर, दूध गर्म करके उसे ठण्डा करती है फिर उसमें हल्की सी चीनी डाल कर छान कर उसे अपने हाथ से पिलाती है जिसमें लगभग बीस मिनट लगते हैं।

फिर बारी आती है मुझे उठाने की। भई, इसमें शर्म की कोई बात नहीं है कि मुझे उठाने में मम्मी को पूरे दस पंद्रह मिनट तो लग ही जाते हैं। मुझे पता है कि पहले पहल तो मम्मी कितना दुलार दिखाती है उठाने में लेकिन हद होती है ना जब मैं उठूं ही नहीं तो…और उठने के बाद तो जो अशांति होती है उसका तो क्या कहना।

पहले तो उठने के साथ चप्पलें नहीं मिलती फिर घमासान युद्ध होता है कि पहले बाथरूम कौन जाएगा या फिर बाशबेसिन के आगे खड़ा होकर पहले ब्रश कौन करेगा क्योंकि पापा को भी समय से आफिस पहुंचना होता है। खैर, हमारे तैयार होने केे बाद मेरे कमरे की तुलना किसी भूकंप ग्रस्त क्षेत्र के घर से की जा सकती है। अब वो काम मम्मी का होता है। मनु भईया को गोद में लिए वो सारा काम निपटाती है। मेरे वापिस आने पर वो कमरा जो दमक रहा होता है उसमें फिर से भूूकंप के झटके लगने शुरू हो जाते हैं।

स्कूल की दिनचर्या व स्कूल बस में दिप्पी के साथ हुई सारी बातें ए टू जेड मम्मी को बतानी होती है जिन्हें वे बहुत ध्यान और धैर्य से सुनती हैं और खाना लगाते-लगाते उस सुंदर से कमरे को बिखरता देखती हैं। मम्मी को पता है कि बच्चों से बार-बार-बार  करने का कि कमरा साफ रखो या चीजों को ठीक से रखो…कोई फायदा नहीं है।

करीब आधे घंटे में वो कमरा फिर से हमें साफ मिलता है। फिर स्कूल का होमवर्क, फिर मनु का किसी भी समय रोना या कुछ तोड़-फोड़ करना जारी रहता है। शाम होते ही मम्मी फिर से दूध लेकर मेरे पीछे पड़ जाती है। पिछले महीने तक तो मैं मम्मी की निगाहों से बचकर दूध बाशबेसिन में गिरा रही थी किंतु एक दिन मेरी चोरी पकड़ी गई।

अब तो मम्मी दूध खत्म होने तक मुझ पर नजरें गड़ाए रहती है। दूध पीते समय बस एक श्रृंगार रस को छोड़ कर मेरे चेहरे से सभी रस टपकते रहते हैं। खैर हर रोज मेरी पसंद और पापा की पसंद का खाना बनाया जाता है। सभी की पसंद अलग होने के बावजूद भी मम्मी सभी का ख्याल रखती है। किसी को निराश नहीं होने देती।

मनु को गोद में लिए-लिए अपने बालों का जूड़ा बनाकर सारा दिन काम में जुटी रहती है। जिस दिन काम वाली बाई नहीं आती उस दिन भी मम्मी किसी से कुछ नहीं कहती। पर फिर भी अपने लिए श्रृंगार और टीवी देखने का समय पता नहीं कैसे निकाल लेती हैं।

मुझे याद है एक दिन मम्मी को मनु को लेकर डाक्टर के पास जाना पड़ा था। मैंने घर साफ करने की कोशिश भी की थी लेकिन वो कहते है ना…जिसका काम उसी को साजे…बस, मैं कुछ नहीं कर पाई थी, हां, उस समय मैं पहाड़े लेकर जरूर बैठ गई थी याद करने और मुझे चार का पहाड़ा याद भी हो गया था।…बड़ी भूल कर रही हूं, मैं तो बच्ची ही ठीक हूं।

इतना पहाड़ जैसा काम करने से बेहतर तो यही है कि मैं पहाड़े ही याद कर लूं। सच में…मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी। पापा शायद मुझे आवाज लगा रहे हैं। मणि जल्दी आओ, जरा मेरे पांव पर खड़ी होकर मुझे जोर से पहाड़े तो सुनाओ कि कितने याद हुए। मैं किताब लेकर खुशी से पापा के पास भागी कि चलो मैं अभी मणि ही हूं…मम्मी नहीं।

 

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‘‘मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी’’

April 25, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

बच्चों की मनोरंजक कहानी – चॉकलेट की बेटी

बच्चों की मनोरंजक कहानी – चॉकलेट की बेटी

बच्चों की मनोरंजक कहानी – चॉकलेट की बेटी – chocolate सभी बच्चों को अच्छी लगती है … कितनी खिला दो पर कभी मन नही भरता … पर आपने कभी सुना है कि कोई बच्चा ये कहे कि मुझे चाकलेट नही खानी मुझे दूध दो , खाना दो,  दाल दो,  सब्जी दो पर  चॉकलेट नही खानी … .. नही … पर ऐसा हुआ था …

बच्चों की मनोरंजक कहानी – चॉकलेट की बेटी

सच में ऐसा हुआ पर कहानी में … एक कहानी बहुत समय पहले मैने लिखी थी… चॉकलेट की बेटी … बहुत सारी मम्मियों  की और कुछ नन्न्हें दोस्तो की फरमाईश थी कि बच्चों की कहानी  सुनाओ … तो मैं आपको सुनाती हूं  कहानी chocolate की बेटी ..

कहानी है 10 साल की मणि की … बहुत शरारती है … मम्मी की बेटी या पापा की बेटी नही बल्कि चॉकलेट की बेटी है …

 

 

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March 31, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

पशु प्रेम पर बच्चों की कहानी – गाय के बारे में शिक्षाप्रद कहानी

 Art of Public Speaking in Hindi

पशु प्रेम पर बच्चों की कहानी  – गाय के बारे में शिक्षाप्रद कहानी – Moral Stories For Kids In Hindi – पशु पक्षियों का महत्व हमारी जिंदगी में बहुत है. पशु और पक्षी हमारे मित्र समान ही हैं. पशु पक्षियों के प्रति हमारा व्यवहार बहुत अच्छा होना चाहिए.

पशु प्रेम पर बच्चों की कहानी – गाय के बारे में शिक्षाप्रद कहानी

थोडी देर पहले कुछ बच्चों की बाहर से आवाजें आ रही थी … मैं  देखने के लिए बाहर आई तो देखा कि पांच सात बच्चे एक गाय को तंग कर रहे हैं एक बच्चा जोर जोर से  पूंछ खींच रहा था बाकि सब जोर जोर से हंस रहे थे …

मैं बोल पडी अरे क्या कर रहे हो … और बच्चे आवाज सुन कर भाग गए … और दूसरी तरफ गाय चुपचाप चली गई …

जब गाय जा रही थी तो मुझे याद आई मेरी एक कहानी जो मैने बहुत समय पहले लिखी थी … चलिए आज मैं आपको वही कहानी सुनाती हूं

कहानी का नाम है गाय को रोटी …

 

‘‘गाय को रोटी’’  मैं हूं मणि। अभी अभी चौथी कक्षा में हुई हूं। आप सोच रहे होंगे कि मेरे तीसरी कक्षा में कितने नम्बर आए। असल में हमें नम्बर नहीं ग्रेड मिलता है। मुझे ‘‘ए’’ग्रेड मिला था। नई-नई कॉपी, किताबें, नया स्कूल बैग बड़ा अच्छा लग रहा था। कुछ दिनों बाद छुट्टियां शुरू हो गई। मम्मी ने बताया कि वो दादा जी की बहन यानि पापा के बुआ जी गांव जाएंगे। मैं गांव कभी नहीं गई थी। पर गांव के लोग कैसे होते हैं, मुझे अच्छी तरह से पता है।

 

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गांव के भोले भाले बच्चों पर मैं खूब धाक जमाऊंगी। अगले दिन सुबह-सुबह ही हमने गांव जाना था। मैंने तीन चार सुंदर-सुंदर ड्रैस, उसी से मेल खाते रंग-बिरंगे चश्मे, सैडि़ल और छतरी भी अटैची में रख लिए। शाम होते-होते हम गांव पहुंच गए। गांव का वातावरण शहर से एकदम अलग था।

खुल्ले-खुल्ले घर, घरों में हैंडपंप, चौड़े-चौड़े रास्ते….सब बहुत अच्छा लग रहा था। घर के बाहर कितना भी,कैसे भी खेलो, किसी गाड़ी या स्कूटर का डर नहीं। घर में तो मैं छोटी सी जगह में ही बैडमिंटन खेलती हूं पर यहां तो जगह ही जगह थी।

पापा की बुआ यानि दादी जी के गांव में मेरे बहुत सारे दोस्त बन गए। बबीता, मोहन, कर्ण, सुनीता और रेखा से तो मेरी जल्दी ही अच्छी दोस्ती हो गई थी।

पहले पहल तो वो सब मेरे चश्मे और छतरी से दूर भागते रहे, पर दोस्ती हो जाने के बाद उनका डर दूर भाग गया। मैंने अपनी सब चीजें उनको इस्तेमाल करने के लिए भी दीं। वो सब बहुत ही शरीफ बच्चे थे लेकिन मैंने दो ही दिन में उनको शरारती बना दिया।

दादी जी पशुओं और पक्षियों को बेहद प्यार करती थीं। पक्षियों को दाना डालना और गाय को गुड और रोटी देना कभी नहीं भूलती थी।

हर सुबह और शाम, दिन छिपने से पहले एक गाय हमेशा आती थी। एक दिन उस गाय को रोटी खिलाते-खिलाते दादी जी ने बताया कि चाहे कुछ भी हो जाए, यह गाय यहां गुड़ और रोटी खाने जरूर आती है।

दादी जी की बात गलत साबित करने के लिए मैंने एक दिन एक तरकीब बनाई। मोहन कुछ पटाखे ले आया और शाम को गाय जब रोटी खाने आई तो मैंने चुपचाप उसकी पूंछ पर पटाखे बांध दिए। दादी जी गाय को रोटी देकर अंदर चली गई।

माचिस मुझे जलानी नहीं आती थी तो मोहन ने ही मेरी मदद की। आग लगते ही पटाखे फटफट करके जलने लगे। धागा ठीक से नही बांधा था इसलिए पटाखे जमीन पर ही गिर गए पर शायद एक पटाखा गाय को लग गया था और वो घबरा कर भाग गई पर इसकी सजा हमें बहुत बड़ी मिली। मोहन को तो उसी समय उसकी बहन ले गई और मुझे कमरे में बंद कर दिया गया

अगले दिन मौसम बहुत अच्छा था और मेरा मन कहीं बाहर जाने को कर रहा था। दादी जी सो रही थी। मम्मी पापा भी पास वाले गांव में किसी से मिलने के लिए गए हुए थे। मुझे बबीता ने अपने घर का पता बताया था और आने के लिए भी काफी बार कहा था।

वो कह रही थी कि उसके घर के पास बहुत सारे खेत हैं। वहां खेलने में बहुत मजा आएगा। मैंने सोचा कि चुपचाप निकल जाती हूं और दादी जी के उठने से पहले ही वापिस आ जाऊंगी। मैं बबीता के बताए रास्ते पर दौड़ पड़ी। दिन का समय था इसलिए मुझे डर भी नहीं लग रहा था पर अचानक देखते ही देखते आसमान में बादल इतने ज्यादा हो गए कि अंधेरा सा हो गया।

बरसात भी शुरू हो गई। दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। मैं तो डर के मारे रोने लगी। जल्दबाजी की वजह से किस रास्ते से आई थी यह भी याद नहीं रहा। उधर जमीन पर बहुत पानी जमा हो गया था और पता ही नहीं चल रहा था कि कहां सड़क है और कहां नहीं।

दो तीन बार तो मैं बहुत बुरी तरह से गिरी। अंधेरा बढ़ता ही जा रहा था। मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था…हुंह, बड़ा समझती है अपने आपको।

अब जान निकल रही है। किसी को बता कर आती तो शायद कोई खोजता हुआ आ भी जाता। अब बैठ यहां और रो जोर से…और मैं जोर-जोर से रोने लगी। धीरे-धीरे बरसात कुछ कम हो गई थी। मैं एक पेड़ से चिपक कर बैठी हुई थी।

तभी मुझे किसी के चलने की आवाज आई। मैं बहुत बुरी तरह से डर गई। आवाज धीरे-धीरे पास आ रही थी। मैं आंखें बंद कर ली। फिर आवाज आनी बंद हो गई।

मैंने आहिस्ता से अपनी आंखें खोली तो देखा कि जो गाय रोज दादी जी के घर रोटी खाने आती थी, वही गाय मेरे पास खड़ी पूंछ हिला रही थी। वही पूंछ जिस पर मैंने पटाखे बांधे थे।

उसकी पूंछ पर अब भी जलने के निशान थे। अनायास ही मैं उससे लिपट गई। अब मेरा डर कुछ कम हो गया था। फिर उसने धीरे-धीरे चलना शुरू कर दिया। मैं भी चुपचाप उसके ऊपर हाथ रखकर चलती रही। कुछ ही देर में हम खेत वाले रास्ते से निकलकर घर वाले रास्ते पर पहुंच चुके थे।

अब मुझे रास्ता भी याद आ गया था। लेकिन मैं फिर भी गाय के साथ-साथ ही चलती रही। कुछ ही देर में हम घर पहुंच गए। घर के बाहर बहुत लोग खड़े थे।

दादी जी ने काफी लोगों को इकट्ठा कर रखा था। मेरे लिए सब परेशान हो रहे थे। मुझे देखते ही दादी जी की जान में जान आई। आंखों में आंसू लिए उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।

मैं भी उनसे गले लग कर रोने लगी। फिर मैंने गाय की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उन्हें सारी बात बताई कि किस तरह आज इस गाय की वजह से ही मैं घर वापिस लौट पाई हूं।

काले बादल अब धीरे-धीरे छंट गए थे। ठीक उसी तरह मेरे मन से भी अहंकार के बादल छंट गए थे। मैंने दादी जी से कहकर पशुओं के डाक्टर को बुलवाया और गाय के जख्मों पर दवाई लगवाई।

उस दिन के बाद से मैं भी दादी जी के साथ उस गाय को गुड़ और रोटी खिलाने लगी। मुझे यह सब बहुत अच्छा लगने लगा। शहर लौटते वक्त मैंने दादी जी से वायदा किया कि आगे से मैं कभी भी किसी भी पशु या पक्षी को तंग नहीं करूंगी, बल्कि उनकी ही तरह से सभी को प्यार करूंगी।

 

पशु और पक्षी का हमारे जीवन में महत्व – पशु पक्षी हमारे मित्र है – YouTube

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पशु प्रेम पर बच्चों की कहानी

March 19, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

हिन्दी बाल कहानी – कामकाजी मां और बच्चे की परवरिश

इंसान और भगवान

हिन्दी बाल कहानी – कामकाजी मां और बच्चे की परवरिश – hindi baal kahani  – माँ की ममता पर कहानी- क्या वाकई मां का काम करना बच्चे के लिए सुखद है या बच्चें को घर पर अकेले दिक्कत होती है एक बच्चे की सोच जताती कहानी

हिन्दी बाल कहानी – कामकाजी मां और बच्चे की परवरिश –

कहानी बच्चों की है

एक लडकी होती है उसका नाम मणि है वो 8 क्लास में पढती है स्कूल से वापिस उदास सी लौटती है बैल बजाती है मम्मी दरवाजा खोलती हैं वो पूछती है कोई बात बनी … मम्मी न की मुद्रा में सिर हिला देती है … असल में, मणि की सभी सहेलियो की मम्मी नौकरी करती है पर मणि की मम्मी सार समय घर पर रहती है और घर का ख्याल रख्ती है मणि को लगता है कि उसे आजादी नही मिलती है उसका कमरा एक दम साफ होता है और मम्मी आवाज देकर बुलाती हैं जल्दी आ जाओ आपके पसंद के राजमा चावल बने हैं …

वो हमेशा की तरह कमरा फैला कर खाने आ जाती है और उसका उदास चेहरा देख कर मम्मी कहती हैं कि कोशिश तो कर रही हूं जल्दी नौकरी मिल भी जाएगी … फिर खाना खाकर वो टीवी देखती हैं मम्मी बोलती हैं सो जाओ मैं एक घंटे में उठा दूंगी

hindi baal kahani

कल मेरी एक जानकर ने बताया कि उसने अपनी नौकरी छोड दी है और वो घर रह कर काम करेगी और बच्चों की तरफ पूरा ध्यान देगी ये सुनकर मुझे मेरी लिखी कहानी याद आ गई …कहानी बच्चों की है एक लडकी होती है उसका नाम मणि है वो 8 क्लास में पढती है स्कूल से वापिस उदास सी लौटती है बैल बजाती है मम्मी दरवाजा खोलती हैं वो पूछती है कोई बात बनी … मम्मी न की मुद्रा में सिर हिला देती है … असल में, मणि की सभी सहेलियो की मम्मी नौकरी करती है पर मणि की मम्मी सार समय घर पर रहती है और घर का ख्याल रख्ती है मणि को लगता है कि उसे आजादी नही मिलती है उसका कमरा एक दम साफ होता है और मम्मी आवाज देकर बुलाती हैं जल्दी आ जाओ आपके पसंद के राजमा चावल बने हैं … वो हमेशा की तरह कमरा फैला कर खाने आ जाती है और उसका उदास चेहरा देख कर मम्मी कहती हैं कि कोशिश तो कर रही हूं जल्दी नौकरी मिल भी जाएगी … फिर खाना खाकर वो टीवी देखती हैं मम्मी बोलती हैं  सो जाओ मैं एक घंटे में उठा दूंगी …

शाम को दोनो हमेशा की तरह धूमने जाते है और जब घर लौटते हैं तो पापा भी आ जाते हैं पापा बताते हैं कि   उन्हें टूर पर जाना है दिल्ली मणि खुश हो जाती है क्योकि वहां पर नोनू रहता है पापा ने बताया एक दिन वहां रुकेगें तब तुम नोनू से ढेर सारी बाते कर लेना … नोनू पहले उनका पडोसी था उसके पापा की बदली दिल्ली हो गई और अब वो वही पढ रहा था …

अगली सुबह वो दिल्ली के लिए निकल जाते हैं  दिल्ली पहुंच जाते हैं नोनू घर पर अकेला होता है … वो सभी को देख कर बहुत खुश होता है और मम्मी को फोन करके बताता  है कि मणि और अंकल आंटी आए हुए है …

मम्मी आफिस से 5 मिनट के आती हैं और बोल कर चली जाती हओं रात को बहुत जरुरी मीतिंग है … देर हो जएगी .. उसी बीच में गीतू के पापा आ जाते है … गीतू मणि को अपने कमरे में ले जाता है … मणि को नोनू बहुत उदास लगता है … वो जब उसकी कापी देख ती है तो वो सभी मे फेल होता है ..

मणि पूछती है कि क्या हुआ … क्योकि वो पढाई में बहुत अच्छा था… वो बोला कि मम्मी ने आते ही नौकरी ज्वाईन कर ली थी और बस सारा दिन व्यस्त रहती … दिक्कत किसी बात की नही है पर मुझे घर पर मम्मी का स्पोर्ट  चाहिए जो नही मिल रहा …

जब घर आते हैं तो मीटिंग , मोबाईल, लैपटाप पीछा नही छोडते … और रोने लगा … मणि ने उसे समझाया और फिर वो मिल कर टीवी देखने लगे .. अगले दिन मणि और उसके मम्मी पापा वापिस लौट रहे थे..

मणि कार में ही लेट गई और लेटते हुए सोच रही थी कि मम्मी उसका कितना ख्याल रखती हैं  … कमरा साफ करना , होमवर्क करवाना, सैर करवाने ले जाना  और पढाई करवाना… अगर मम्मी भी अफ़िस जाने लगी तो उसका हाल भी कहीं नोनू जैसा न हो जाए … हर रोज जब घर लौटेगी ताला खुद खेलेगी , खाना खुद गर्म करेगी … कैसे होगा सब … सोचते सोचते उसका घर भी आ गया … मम्मी कार  से उतरे गेट खोला और सामने लैटर वाक्स पर लैटर चैक की तो वो अचानक चिल्ला उठे … अरे वाह नौकरी मिल गई .. appointment letter आ या है … और मणि को बोले बेटा अब खुश हो जाओ … अब तुम्हारी मम्मी भी काम पर जाएगी … मणि जोर जोर से रोने लगी …

मम्मी प्लीज मुझे माफ कर दो प्लीज आप नौकरी मत करो आप मेरा ख्याल रखना मुझे नही करवानी नौकरी … मम्मी पापा दोनो हैरान कि हुआ क्या …

ये कहानी थी जो मैने लिखी थी … उस महिला के फैसले पर मुझे खुशी हुई  कि उसने अपने परिवार को प्राथमिकता देना जरुरी समझा वैसे आजकल घर पर रह कर भी बहुत काम किए जा सकते हैं क्योकि जब बच्चे छोटे होते हैं बच्चों की देखभाल करना उनअच्छे संस्कार बहुत जरुरी होता है जिनके लिए बहुत जरुरी न हो … उन्हें बच्चों का ख्याल रखना ही चाहिए  

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November 13, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ – लौट आई खुशी

बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ - लौट आई खुशी

बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ – लौट आई खुशी – बच्चों की छोटी कहानियाँ हमेशा आकर्षित करती है चाहे प्रेरक हो या मनोरंजक – बच्चे कहानी बहुत चाव से पढते हैं. नन्हें सम्राट नामक पत्रिका में प्रकाशित  मेरी लिखी पढिए एक मजेदार कहानी

बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ – लौट आई खुशी

कल दीवाली है पर आज मणि बहुत उदास है. मणि को क्या हुआ और वो उदास किसलिए है यह बताने के लिए आपको मैं लिए चलती हूं फ्लैश बैक में यानि कुछ समय पहले…

बात एक साल पहले की है जब दीपावली आने वाली थी और मणि को अपने अब्दुल चाचा का इंतजार था. मणि दूसरी क्लास में पढती है और अपने मम्मी पापा के साथ शहर में रहती है. उसके अब्दुल चाचा ( जोकि उसके पिता के बहुत ही अच्छे दोस्त हैं और वो उन्हें हमेशा चाचू कह कर बुलाती है) गाँव में रहते हैं पर हर त्योहार पर मिलने जरुर आते हैं जैसे मणि का परिवार ईद पर हर साल उनके गांव जाता है वैसे ही वो भी त्योहार पर शहर आते हैं. मणि को अब्दुल चाचा इसलिए भी अच्छे लगते हैं कि उन्हें बहुत सारी कहानियां सुनाते हैं खासकर परियों की, राजकुमारियों की और जादू की कहानियां वो बहुत शौक से सुनती है.

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 मणि के मम्मी पापा तो अपने अपने काम में व्यस्त रहते हैं और शायद उन्हें कहानियां आती भी नही हैं. हालाकि वो कॉमिक्स तो बहुत सारी लाकर देते पर मणि को कामिक्स पढ़ कर उतना आनन्द नहीं आता जितना कि कहानियां सुन कर आता इसलिए हर बार उसे चाचू के  आने का इंतजार रहता ।

उसे बहुत ही अच्छा लगता  जब पुरानी कहानियों में मेंढ़क किस करने से खूबसूरत राजा बन जाता था या फिर सिर्फ छूने से ही पत्थर परी बन जाती हर बार की तरह पिछ्ली दीपावली पर भी वो आए पर इस बार वो मणि के लिए बेहद खूबसूरत उपहार भी लाए.

वो लाए थे प्यारा सा सफेद पामेरियन कुत्ता. पहले तो मणि को उसे हाथ लगाते भी डर लगा जैसे ही वो भौं-भौं करता मणि की ड़र के मारे अंगुलियां मुंह में चली जाती पर कुछ ही घण्टों में वह उससे इतनी हिल-मिल गर्इ कि उठते बैठते, खेलने जाते, खाते पीते हर समय वो पूछं हिलाते मणि के साथ ही रहता. मणि ने उसका नाम प्यारु रखा  क्योकि वो था ही इतना प्यारा.

अब आप सोच रहे होंगें कि जब सब कुछ ठीक चल रहा था तो मणि इस बार उदास किसलिए है. जी बिल्कुल वही तो मैं बताने जा रही हूं  बेशक, प्यारु के साथ वो खूब व्यस्त हो गई थी पर कहानियां सुनने का शौक वैसे ही जारी रहा अब वो प्यारु को अपनी गोदी में बैठा कर अब्दुल चाचा से कहानी सुन रही थी.

बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ - लौट आई खुशी

दीपावली के बाद चाचा भी वापिस चले गए और मणि अपनी पढ़ार्इ और  प्यारु में मस्त हो गर्इ। समय बीतता रहा और कुछ समय पहले राखी गई और दीपावली आने वाली थी. हुआ ये कि एक दिन जब मणि स्कूल गर्इ हुर्इ थी उसके पापा दफ्तर जाने के लिए गैराज से कार निकाल रहे थे. अचानक सडक पर एक तेज गति से कार आई और प्यारु को टक्कर मार कर तेज रफ्तार से अपनी कार दौडा कर ले गया. मणि के पापा उसे तुरंत अस्पताल ले कर गए पर प्यारु को डाक्टर बचा नही पाए और प्यारु मर गया.

अब मणि के मम्मी-पापा दोनों उदास हो गए क्योकि मणि का वो सबसे अच्छा दोस्त था उन्हें सबसे ज्यादा मुश्किल यह हो रही थी कि वह मणि को कैसे समझाऐंगे कि प्यारु अब नही रहा.। उन्होनें अब्दुल को फोन किया और सारी बात बताई.

शाम को जब मणि स्कूल से घर लौटी तो उसे यही बताया गया कि गेट खुला रह गया और प्यारु कही चला गया. वो अपने आप आ जाएगा पर मणि ने जो रो-रो कर हाल बेहाल किया वो तो उसके पड़ोसी भी जान गए. उस दिन से मणि एकदम चुप सी हो गई थी. 

अब हम आते हैं आज पर यानि फ्लेश बैक खत्म हुआ. आज भी मणि उदास है क्योकि दस दिन होने को आए पर प्यारु वापिस नही आया. कल दीपावली है और अब्दुल चाचा का फोन आया कि वो आने वाले हैं पर मणि के चहेरे पर स्माईल नही है .असल में, प्यारु से वो इतना जुड गई थी कि अब उसके बिना उसका किसी काम में दिल ही नही लग रहा है

 मणि अपने कमरे की खिडकी से बाहर सडक पर झांक ही रही थी तभी बाहर एक कार आकर रुकी. मणि के देखा कार से अब्दुल चाचा उतरे. मणि उन्हें देखते ही बाहर बताने भागी कि प्यारु कही चला गया तभी मणि ने देखा कि उनके हाथ में एक छोटा-सा पिंजरा है और उसमे प्यारा-सा तोता है. मणि कुछ कहती इससे पहले अब्दुल चाचा बोले कि अरे प्यारु से क्या कह दिया था वो मेरे पास गांव आया था

 क्या….? आपके पास….!मैंने तो कुछ भी नहीं कहा”। चाचा ने बताया कि प्यारु गांव आया और उसने कहा कि मणि दी का मन करता है कि वह मुझे स्कूल ले जाए और मुझसे बातें करे पर  न तो वो स्कूल तो नहीं जा सकता है और न  मीठी-मीठी बातें कर सकता है इसलिए उसे तोता बना दो जब भी दी स्कूल जाऐंगी मैं उड़ कर उन्हें स्कूल तक छोड़ने जाऊंगा और छोड कर वापिस आ जाया करुंगा और फिर शाम को ढ़ेर सारी बाते किया करुंगा. तो,

लो भर्इ ये रहा तुम्हारा प्यारु अब वो तोता बन गया है. तभी तोता भी बोलने लगा, हैल्लो मणि दी मैं हूं आपका प्यारु… कैसी हो!! मैने आपको बहुत मिस किया.

मणि हैरान होकर तोते की ओर देखे जा रही थी. वो उसकी मीठी और प्यारी बात सुनकर इतनी खुश हुई कि अब्दुल चाचा से लिपट ही गई और फिर उनके हाथ से पिंजरा छीन कर अपने कमरे में ले गर्इ और बाते कर रही थी कि प्यारु अब कही मत जाना मुझे छोड कर.

कल दिवाली है हम खूब मस्ती करेंगें चल मुझे अपनी नई ड्रेस भी दिखाती हूं

मणि के मम्मी-पापा भी सारी बातें पीछे खड़े होकर सुन रहे थे। अब्दुल चाचा ने  सारी बात सम्भाल ली थी जिससे  मणि की खोई मुस्कान लौट आई. अब घर में खुशनुमा माहौल है और सब हसते मुस्कुराते दीवाली की तैयारी में जुट गए.

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बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ – लौट आई खुशी आपको कैसी लगी ?? जरुर बताईएगा !!

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