विचार शून्यता
अक्सर लेखकों, ब्लॉगर और कार्टूनिस्टों में विचार शून्य के लक्षण पाए जातें हैं. जहां कई बार विचारो की सुनामी आ जाती है तो वही कई बार विचारों का सूखा या अकाल भी पड जाता है इतना ही नही कई बार अचानक इतने मुद्दे आ जाते हैं कि दिमाग ही घूम जाता है किस पर लिखे या बनाए और कौन सा मुद्दा छोड दें …
वैसे कई बार जब विचार शून्यता होती है तो अलग अलग तरीके से माननीय लोग सोचते हैं.. जैसा कि कोई बाहर घूमने निकल जाते हैं कोई दीवार पर बस शून्य पर ही निहारता रहतें हैं , कोई टहलने लग जातें हैं , कोई टॉयलेट चला जातें हैं कोई स्नान लेते हुए सोचते हैं या फिर कोई कोई तो सो भी जाते हैं ताकि जब उठे तो विचार दिमाग में हो.
महिलाए भी अक्सर रसोई का काम करती, बर्तन साफ करती या आटा गूथती भी विचारों में खो जाती हैं और तब तक जुटी रहती हैं जब तक किसी विचार को पकड न लें और उसके बाद शुरु होता है लेखन या कार्टून बनाना..
मेरी पात्रा भी आज विचार शून्य की प्रक्रिया से गुजर रही है और चाय पीते पीते कुछ सोच रही है… देखते हैं कि क्या नया विचार कब तक निकल कर आएगा ..
वैसे आपका सोचने का तरीका क्या है जरुर बताईएगा..