(गूगल से साभार चित्र)
कविता- अलमारी
कमरे मे माँ की अलमारी नही
अलमारीनुमा पूरा कमरा है
जिसमे मेरे लिए सूट है,साडी है
सामी के लिए खिलौना है
इनके लिए परफ्यूम है
सन्नी के लिए चाकलेट है
एक जोडी चप्पल है
सेल मे खरीदा आचार,मुरब्बा और मसाला है
बर्तनो का सैट है
शगुन के लिफाफा है
जो जो जब जब याद आता है
वो इसमे भरती जाती हैं
ताकि मेरे आने पर
कुछ देना भूल ना जाए
कहने को तो ये अलमारी है
पर मां की आखों से देखों तो
किसी तिजोरी से कम नही
जिसमे बिटिया के प्यार को
सामान रुप में सहेज कर रखा है
ये अलमारी नही
अलमारीनुमा पूरा कमरा है
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