रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व – सबसे पहले मैं आप सभी से यह जानना चाहूगीं कि अपनी बात को दूसरो तक पहुचाने के कौन कौन से साधन होते हैं. फोन, मोबाईल , कम्प्यूटर, अखबार, टीवी…
जी बिल्कुल, और इसके साथ साथ एक और है और वो है किसी महिला को बता दें यानि tell a women बात अपने आप दूर बहुत दूर तक चली जाएगी.
रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व
डाक्टर इटेलिया ने मुझे महिला होने के नाते अपनी बात कहने का मौका दिया मैं उनका बहुत धन्यवाद करती हूं.
तो बात हो रही है महिलाओ की. आज हर क्षेत्र मे महिलाए आगे हैं. अगर रक्तदान की बात करें तो महिलाएं उसमे भी आगे हैं. बढ चढ कर आगे आती है पर जब होमोग्लोबिन चैक होता है तो नतीजा शून्य. अगर सौ महिलाए भी रक्तदान के लिए आती हैं तो मात्र 5 या 7 ही रक्तदान कर पाती हैं बाकि एनिमिक होती हैं. अक्सर रक्तदान कैम्प में यह देखने को मिल ही जाता है और अगर आकंडो की बात करे तो दुनिया भर में 818 मिलीयन महिलाएं एनीमिया की मरीज हैं और जिसमे से 520 बिलीयन एशिया की महिलाएं हैं.
अखबार में आए एक सर्वे से यह पता लगा है कि देश की आधी महिलाए और 70% बच्चे एनीमिक है. उतर प्रदेश, बिहार, उडीसा, राजस्थान और झारखंड में तो हालत और भी ज्यादा खराब हैं.
ये एक कडवा सच है जिसे हमे स्वीकार करना ही पडेगा कि रक्तदान को लेकर जितनी जागरुकता आनी चाहिए वो नही आ पा रही है.
उफ!! महिलाए! बच्चे !!! कडवा सच !!!
वैसे कडवा सच पर एक प्रसंग भी याद आ रहा है. आप कहें तो मैं सुनाऊ. एक आदमी की पत्नी की मृत्यु हुई और उसने दूसरे शादी कर ली. उसका छ साल का एक बेटा था. शादी के कुछ समय बाद उसने अपने बेटे से पूछा कि नई मां कैसी लगी. इस पर बेटा बोला कि नई मां सच्ची है और पहले वाली मां झूठी. यह सुनकर पिता को हैरानी हुई. उन्होने जिज्ञासा वश पूछा कि वो कैसे तब बेटे ने बताया कि पहली वाली मां जब वो शरारत करता तो वो डाट्ती और गुस्से मे कहती कि खाना नही देगी. पर थोडी देर बाद गोद मे बैठा कर प्यार से पुचकार कर वो खाना खिलाती. नई मां भी उसकी शरारत पर यही कह्ती है गुस्सा होती है और कहती है कि वो खाना नही देगी और वो सच बोलती है वाकई में, वो खाना नही देती आज दो दिन हो गए मुझे खाना नही दिया.
बच्चे ने सच बोलना पर उसे सुनना और निगलना मुश्किल हो गया है ना !!
तो बात हो रही थी कडवे सच की. सोचने की बात यह है कि ऐसा क्या करें!!! ऐसा क्या तरीका अपनाए कि लोग रक्तदान की महत्ता को समझे और ज्यादा से ज्यादा आगे आए.
ये भी नही है अखबारो मे आ गया कि देश की आधी महिलाए एनिमिक हैं तो यह सुन कर हम सब रक्तदान करने लगेगें या फिर कांफ्रेस या मींटिंग मे सुनेगें कि रक्तदान जरुरी है करना चाहिए इससे शरीर भी स्वस्थ रहता है तो हम सब रक्तदान करने लगेगें.
हां, पर एक बात जरुर हो सकती है कि अगर रक्तदान की अपील ऐसा व्यक्ति करे जिसे लगातार रक्त की आवश्यकता पडती रहती हैं या उनका कोई रिश्तेदार संदेश के माध्यम से अपनी बात कहे तो जरुर एक बदलाव आ सकता है. कुछ दिनो पहले नेट के माध्यम से मैने कुछ मरीजो से बात की और उनके संदेश ब्लाग और सोशल नेट वर्किंग साईट पर डाला तो उनकी दिल से निकली बात का असर सीधा दिल पर हुआ और बहुत लोग उनका संदेश सुनकर रक्तदान के लिए तैयार हो गए. आप सुनना चाहेंग़ें.
पहला संदेश है संगीता वधवा का
35 साल की संगीता मुम्बई में रहती हैं अपनी पढाई पूरी करके यह आजकल हशू अडवाणी मैमोरियल फांऊंडेशन हैल्थ एड केयर थैलीसिमिया सेंटर में PRO और Counseller की भूमिका निभा रही हैं.संगीता थैलीसीमिया मेजर की मरीज हैं.
संगीता ने बताया कि जब वो 5 साल की हुई तब समझ आना शुरु हुआ कि कुछ समझ नही आ रहा कि यह हो क्या रहा है. संगीता की बहन भी मेजर की मरीज थी. उनके मम्मी पापा और भईया कभी एक अस्पताल तो कभी दूसरे अस्पताल खून के लिए भागते रहते. लोग आटा चीनी मांगने एक दूसरे के घर जाते है पर वो खून मांगने लोगो के घर जाते थे. एक समय ऐसा आया जब रिश्तेदार भी कतराने लगे कि कही खून के साथ साथ पैसा भी न मांग लें क्योकि खर्चा भी बहुत हो जाता था. जब दूसरे बच्चे पिकनिक पर जाते थे तब वो लोग ब्लड ट्रास्फ्यूजन के लिए होस्पीटल जाते. पढने की इच्छा होती तो लोग दबे स्वर मे पेरेंट्स को कहते कि क्या फायदा पढा के मर तो जाना ही है इन्हें … वो अक्सर पापा से पूछ्ती कि वो ही क्यो? तब पापा उसे समझाते कि वो भगवान के स्पेशल बच्चे हैं और भगवान हमारा टेस्ट ले रहा है. बिना धबराए उस टेस्ट मे हमें खरा उतरना है.
5 साल के बाद से और आज तक लगभग 700 बार खूब चढ चुका है. अगस्त 2010 में जब बडी बहन की डेथ हुई तब अचानक ऐसा महसूस होना शुरु हुआ कि सही जानकारी न होने के अभाव से उसकी डेथ हुई है. बस तब से एक जुनून एक आग सी दिल में भर गई कि कुछ भी हो जाए जनता को इसके बारे मे जागरुक करना ही करना है. एक संस्था बनाई FACE, FIGHT , FINISH के नाम से.
आज वो संगीता जो जीने की इच्छा खो चुकी थी आज उन लोगों की काऊंसलिंग कर रही है जो जीने की इच्छा छोड चुके हैं.तो क्या हम भी एक पहल ………………………………….!!!! .
अगला संदेश है जम्मू निवासी जगदीश कुमार का.
50 वर्ष के जगदीश कुमार जम्मू में रहते हैं. सीनियर लेक्च्चर हैं. हीमोफीलिया से पीडित जगदीश कुमार ने सन 94 में हीमोफीलिया सोसाईटी बनाई और उन्होने सैकेडो ऐसे मरीजो को गोद लिया हुआ है और उनकी देखभाल मे अपनी आधी तन्खाह खर्च करते हैं.
जगदीश कुमार ने बताया कि जब वो 9 साल के थे तब से उन्हे महसूस हुआ कि उनके शरीर के साथ कुछ न कुछ जरुर असामान्य है. 34 साल के होते होते उन्हें अपनी बीमारी का पता चल गया. इसी बीमारी के चलते उन्हें अपने तीन बेहद करीबी प्रियजनों को खोना पडा.
उनका कहना है
कि रक्त का कोई विकल्प नही. आज हम सब आपकी दया के मोहताज है. हमारे जीवन को चलाने के लिए आपके सहयोग की आवश्यकता है. अगर आज वो संदेश भेज पा रहे हैं तो उसके पीछे वो 248 लोग हैं जिनका खून इनकी रगो मे दौड रहा है. यू तो वर्ष चलते चलते रुक जाते हैं आपका खून मिले तो दौड लगाते हैं. कुदरत की देन कहे या कोई करिश्मा. बस आपके सहयोग से जीवन चला रहे हैं. अब आपको स्वैच्छिक रक्तदान की महत्ता समझनी होगी ताकि हम जैसे अनेको घरों के चिराग बुझने से बच जाए. दिल से निकली बात सीधा दिल पर ही लगती है. इसलिए जीवन मृत्यु के बीच मे झूलते ऐसे मरीज एक उदाहारण बन सकतेहैं.
इसके अतिरिक्त On line Competition भी करवा सकते हैं किसी तारीख विशेष पर यह प्रतियोगिता करवा कर जनता का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.Colourful posters बना कर भी आकर्षित किया जा सकता है.
अपना या अपनी संस्था का अच्छा सा प्रोफाईल बना कर भी लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है. ताकि जनता को लगे कि सही मायनो मे कौन किस तरह से और कितना काम कर रहा है और अगर वो भी इस कार्य का हिस्सा बनना चाहे तो बन सकें. उसमे अपनी उपलब्धियां और विस्तार से जानकारी होनी चाहिए.
एक ऐसी ही जानकारी को मैने भी कम्पाईल किया है. आईएसबीटीआई के स्वर्णिम 40 साल एक झलक.
जनता मे रक्तदान को लेकर भ्रांतियां बहुत हैं. डाक्टर आदि के साथ रुबरु वार्ता करवा कर या उन्हे ब्ल्ड बैंक का दौरा करवा कर उनकी भ्रांतियां दूर की जा सकती है. उपहार स्वरुप कुछ रक्तदान से जुडी समृति चिन्ह दें ताकि वो उसे हमेशा याद रखें.
दसवीं, बारहवीं के तथा कालिजो के छात्रो के बीच मे विभिन्न प्रतियोगिताए जैसे स्लोगन, निबंध या क्विज आदि करवा कर बच्चो को रक्तदान के प्रति आरम्भ से ही जागरुक किया जा सकता है.
होली इत्यादि पर रक्तदान करके लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.
अखबार में अच्छे कलरफुल लेखों के माध्यम से जागरुक किया जा सकता है और रक्तदान से सम्बंधित कार्टून बना कर भी लोगो मे जागरुकता लाई जा सकती है.
किसी की प्रशंसा करके भी उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है. जैसाकि ट्रांस्कान 2013 की इतनी खूबसूरत साईट बनाई है. इतनी मेहनत की गई है. वाकई मे पूरी टीम बधाई की पात्र है. किसी को उत्साहित करके भी हम …. !!!
जागरुक करने के लिए कोई ईवेंट कर सकते हैं , कुछ हट कर कर दिखा सकते हैं ताकि जनता के मन मे जिज्ञासा बनी रहे. जैसाकि पिछ्ले साल अखिल भारतीय तेरापंथी युवक परिषद ने रक्तदान कैम्प लगाया था.जो कि अपने आप में ही एक रिकार्ड है.
आईएसबीटीआई ने 12 अगस्त को एक विशाल ब्लड ड्राप बना कर एक कीर्तिमान कायम किया. आईएसबीटीआई सोच मे था कि कुछ नया कुछ हट कर किया जाए तभी उनकी मुलाकात ब्लड कनेक्ट एनजीओ से हुई. इसे आईआईटी दिल्ली के छात्रोने शुरु किया था. उन्होने सुझाया कि एक विशाल ब्लड् ड्राप बनाते हैं जिसमें युवाओ को खडा करेगे. इससे पहले यह वर्ड रिकार्ड साउथ कोरिया के नाम था. जिसमे 3000 लोग खडे थे. बस तब से संस्था इस ईवेंट मे जुट गई और यह सफल रहा. लाल कैप और लाल टीशर्ट पहने हरियाणा के कुरुक्षेत्र की ऐतिहासिक धरती पर इस विशाल ड्राप मे 3069 युवा खडे हुए जिन्होने या तो रक्तदान किया था या फिर रक्तदान प्रेरक के रुप मे काम कर रहे हैं.
अच्छा तो तब लगा जब यह ईवेंट खत्म हुआ और बाद मे भी बहुत लोग आ आकर पूछ्ने लगे कि रक्तदान कैम्प कहां लगेगा हम भी रक्त दान करके विशाल ड्राप का हिस्सा बनना चाह्ते हैं.
कोई शक नही कि आज हमारे सामने सोशल नेट वर्किंग का विशाल क्षेत्र खुला पडा है. फेसबुक, ब्लाग, ट्वीटर , गूगल प्लस वेब साईट ना जाने कितने आपशन है पर जरुरी है कि उसका इस्तेमाल कैसे किया जाए और उससे भी ज्यादा जरुरी है कि अपने भीतर की आग को, कुछ करने के जज्बे को जगाया जाए. खुद को उत्साहित किया जाए.
क्योकि ….
जीत की खातिर जनून चाहिए / जिसमे उबाल हो ऐसा खून चाहिए/ ये आसमां भी आएगा जमी पर / बस इरादों मे जीत की गूंज चाहिए!!!
धन्यवाद
जय रक्तदाता
मोनिका गुप्ता
(ये मेरी पीपीटी के अंश हैं जोकि सूरत ट्रांस्कान 2013 में बोली गई)
रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व कैसी लगी?? जरुर बताईगा !!