सोच
एक जानकार बहुत अमीर हैं और उनकी विशाल हवेली निर्माणाधीन थी. मैं वहां गई तो उन्होने मुझे कहा कि उपर तक जाकर सारा देख कर आओ. मेरे पूछने पर उन्होनें बताया कि सीढियों पर नही चढ सकते क्योकि घुटनों मॆ दर्द है लिफ्ट अभी लगी नही है. मैं सारा घर देख कर नीचे आ रही थी तो देखा कि पतले दुबले मजदूर कोई सीमेंट की बोरी लेकर उपर चढ रहे थे तो कोई दस दस ईटे … गजब की फुर्ती पाई थी उन मजदूरों ने.
बातो बातों में जानकार ने बताया कि कल मजदूर आपस मे बात कर रहे थे कि मालिक कितना अमीर है इतना आलीशान घर बनवा रहा है जबकि वो सोच रहे थे कि मजदूर कितने सुखी है सुबह से शाम तक आराम से काम करते हैं बीच में अपना टिफिन खाते हैं 1 घंटे की नींद लेते हैं और शरीर इतना मजबूत की भारी भारी सामान भी सीढियों पर ले जाए जबकि उन्हें स्वयं सीढी पर चढने के लिए सहारे की जरुरत होती है और काम का इतना तनाव रहता है कि नींद लाने के लिए भी गोली खानी पडती है. वो बता रहे थे कि उनके हिसाब से मजदूर ही ज्यादा सुखी है. हालाकि इनका इलाज चल रहा है पर यह बात भी शत प्रतिशत सही है कि ठीक होने के बाद भी वो इतने एक्टिव कभी नही हो पाएगें.
मुझे महसूस हुआ कि वो भीतर से बहुत दुखी है. असल में ये भी सच है कि जो हमारे पास नही होता अक्सर हम उसी की इच्छा रखते हैं. मजदूरों को अमीरी प्रभावित कर रही थी और जानकार को उन मजदूरों का बढिया स्वास्थ्य. देखा जाए तो परेशान हम सब ही है पर अगर सकारात्मक नजरिया रखेंगें तो जिंदगी ज्यादा अच्छे ढंग से जी पाएगे अन्यथा परेशान ही रहेगें… इतने मे मजदूरो की चाय बन कर आ गई और वो सब सुड सुड करके चाय की चुस्की लेने लगे … बाहर निकली तो आंटी खम्भों और दीवार की तराई यानि पानी दे रही थी ताकि वो मजबूत बनें और मैं सोच रही थी कि इतनी इमारते बन गई अब हम उन्ही को मजबूत बनाने के लिए पानी देते हैं जबकि पहले हरियाली के लिए पौधों को पानी दिया करते थे …