स्वच्छ भारत अभियान और हमारा समाज
कुछ देर पहले एक सहेली के घर जाना हुआ. उनका दस साल का बेटा स्कूल की पिकनिक से लौटा था. मेरी सहेली ने उसको कपडे दिए और उसकी यूनिफार्म तह करके रखने लगी अचानक जेब में कुछ मिला और चिल्ला कर अपने बेटे को आवाज दी. मैं भी सहम गई कि अचानक क्या हुआ. बेटा आया तो उसने डांटना शुरु कर दिया समझ नही आता कितनी बार समझाया है कि चिप्स, टॉफी और चॉकलेट के खाली पैकेट फेंक दिया करो जेब में भर भर कर मत लाया करो जेब खराब हो जाती है पर बेटा बहुत मासूमियत से बोला देखा था पर वहां कही डस्टबिन नही था तो क्या करता जेब मे ही डाल लिए कि घर आकर फेंक दूंगा.
अब मेरी सहेली ने मुझे कहा कि आप ही समझाओ भला ये कोई मतलब होता है… खाली लिफाफे कही भी फेंक दो. दो चार लिफाफों से क्या फर्क पडता है पर नही …मेरी कभी नही सुनता हमेशा ही ऐसा करता है…!! मैने उनके बेटे को अंदर जाने का इशारा कर दिया और सोच रही हूं कि कैसे इसे समझाऊ क्योकि इस समय मेरे पर्स में भी दो चिप्स के खाली पैकेट रखे थे. मार्किट से लिए थे खाने के बाद कोई डस्ट्बिन नही मिला तो पर्स में डाल लिए कि घर आकर डस्टबिन में फेंक दूंगी… !!
गंदगी ज्यादा न फैले इसके लिए मानसिकता मे सुधार के साथ साथ डस्टबिन की बहुत दरकार है… !!
Leave a Reply