बच्चे हैं तो पढार्इ है, पढार्इ है तो किताबे हैं, और अगर किताबे प्रेरक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक हैं तो कहना ही क्या।
वाकर्इ में, ऐसी किताबो से हमें बहुत कुछ सीखने और जानने का मौका मिलता है। असल में, देखा जाए तो हम सभी मे कोर्इ ना कोर्इ हुनर छिपा होता है पर कर्इ बार अपने माहौल, रहन सहन या परवरिश से हम खुद को कम आकंने लगते हैं और हमारे अंदर छिपी प्रतिभा वही दम तोड़ देती है जबकि इसी छिपी प्रतिभा के माध्यम से हम अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हो सकते हैं.
आज भी समाज में हमें अपने आस पास ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाएगें जिनके जीवन से प्रेरित हो कर हम बहुत कुछ सीख सकते है। उनको आदर्श मान कर उनका अनुकरण कर सकते है पर उसके लिए जरुरी है कि हम उनके बचपन और जीवन के बारे मे जाने कि ऐसा क्या है उनमे जो आज वो अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।
इन्ही सब बातों को ध्यान मे रख कर मैं कुछ चुनिंदा प्रतिभाओ से रुबरु हुर्इ। उनके बारे में विस्तार से जाना और यह जान कर बहुत हैरानी हुर्इ कि उन सभी ने हमारी तरह ही साधारण परिवारो में जन्म लिया। साधारण जीवन जीया पर अपने जीवन के मूल्यो को असाधारण बनाए रखा और आज उसी वजह से वो एक अलग मुकाम हासिल किए हुए हैं।
अब मुश्किल नही कुछ भी …
बेशक, यह किताब मैने बच्चो को प्रेरणा और सीख देने के लिए लिखी है पर मैने भी इन सभी शखिसयतो से मिलकर बहुत कुछ सीखा है। लिम्का बुक आफ रिकार्डस की सम्पादिका श्रीमति विजया घोष, काटूर्निस्ट संकेत गोस्वामी, माऊंट ऐवेरेस्ट फतह करने वाली सुश्री ममता सोढा, भारतोलन मे अर्जुन एर्वाड विजेता श्रीमति भारती सिंह, जिला उपायुक्त और रक्त दान के क्षेत्र मे अलग पहचान बनाने वाले डा0 युद्धवीर सिंह ख्यालिया , निर्माता, निर्देशक सिनेमेटोग्राफर और गायक श्री मनमोहन सिंह, मैनेजेमैंट फंडा के गुरू और लेखन के प्रति समर्पित श्री नटराजन रघुरामन, सुप्रसिद्ध कवि, लेखक प्रोफेसर अशोक चक्रधर, मशहर टेलीविजन अदाकारा सुश्री नेहा शरद जोशी, एक पैर से मैराथान मे हिस्सा ले रहे जाने माने पहले भारतीय ब्लेड रनर और जाबांज मेजर देवेन्द्र पाल सिहं।
अब मुश्किल नही कुछ भी प्रेरणादायक बाल साहित्य है.सन 2008 में प्रकाशित पुस्तिका को हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से अनुदान मिला.
ISBN -978-93-82197-47-5