इतवारी धूप ( कविता)
रोजमर्रा की भाग दौड में
अक्सर धूप नजर नही आती
पर
मेरे घर का है एक कोना
जंहा से इतवारी धूप छ्न छ्न कर है आती
उस कोने मे
किरणे
अपने कणो से अठखेलियां है करती
रिझाती, उलझाती, सहलाती
और
अपनी तपिश से
नई स्फूर्ति जगाती
खिला खिला रहता है
सर्द इतवारी धूप से वो कोना
क्योकि
रोजमर्रा की भागदौड में
अक्सर वो नजर नही आता ….!!!
इतवारी धूप