Monica Gupta

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July 13, 2015 By Monica Gupta

एलपीजी पर सब्सिडी

LPG by monic a gupta

 

एलपीजी पर सब्सिडी

लगभग हर रोज करीब चार हजार लोग छूट आधारित शाकाहारी तथा मांसाहारी भोजन का लुत्फ उठाते हैं। संसद की कैंटीन में तडक़ा मछली 25 रुपये में, सब्जियां 5 रुपये में, मटन करी 20 रुपये और मसाला डोसा 6 रुपये में मिलता है। सांसदों को ये इतनी सस्ती इसलिए मिलती हैं, क्योंकि इनके वास्तविक लागत मूल्य पर सब्सिडी सरकारी खजाने से दी जाती है

 

 

  | 4 PM | LATEST HINDI NEWS

प्रमोद भार्गव बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के आमंत्रण पर 1916 में महात्मा गांधी ने उसके समारोह में भागीदारी की थी। समारोह के मुख्य अतिथि वायसराय थे। वायसराय के उद्बोधन के बाद महात्मा गांधी को बोलना था। वे बोले, जिस देश की ज्यादातर आबादी की तीन पैसा भी रोजाना आमदनी नहीं है, किंतु वहीं देश के वायसराय पर रोजाना तीन हजार रुपये खर्च होते हैं। समाज में ऐसे लोगों का जीवित रहना बोझ है। अगर आज गांधी जी होते और जनता के धन से भोजन का स्वाद चख रहे सांसदों की उन्हें आरटीआई से सामने आई जानकारी मिलती तो क्या सांसदों को गांधी यही र्शाप नहीं देते? एक तरफ देश के जन प्रतिनिधियों पर रोजाना करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, उन्हें अनेक प्रकार की अन्य सुविधाएं नि:शुल्क दी जा रही हैं, बावजूद जनप्रतिनिधि हैं कि खुद तो ब्सिडीस का भोजन उड़ा रहे हैं, परंतु जो वास्तव में गरीब हैं, भूख की गिरफ्त में हैं, उनकी न तो गरीबी रेखा तय की जा रही है और न ही खाद्य सुरक्षा? सरकार संसद की रसोई से परोसी जाने वाली थाली में दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करती दिखाई नहीं देती? सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी सामने आने पर पता चला है कि हमारे माननीय सांसद गरीब के हिस्से का भोजन करके डकार लेने को भी तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि उन्हें न तो आहारजन्य विसंगतियों का आभास होता है और न ही अनाज के उत्पादक किसान की आत्महात्या से पीड़ा होती है? क्योंकि उन्हें तो सब्सिडी के भोजन से पेट भरने की छूट मिली हुई है। वह भी गुणवत्तायुक्त स्वादिष्ठ भोजन की। बावजूद खाद्य मामलों की समिति के अध्यक्ष व टीआरएस सांसद जितेंद्र रेड्डी का कहना है कि यह सब्सिडी बंद की गई तो किसी के पेट पर लात मारने जैसी घटना होगी। सांसदों और संसद में काम करने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को बेहद सस्ती दरों पर भोजन दिया जा रहा है। रोजाना करीब चार हजार लोग छूट आधारित शाकाहारी व मांसाहारी भोजन का लुत्फ उठाते हैं। संसद की कैंटीन में तडक़ा मछली 25 रुपये में, मटन कटलेट 18 रुपये में, सब्जियां 5 रुपये में, मटन करी 20 रुपये और मसाला डोसा 6 रुपये में मिलता है।

सांसदों को ये खाद्य सामग्रियां इतनी सस्ती इसलिए मिलती हैं, क्योंकि इनके वास्तविक लागत मूल्य पर क्रमश: 63 फीसदी, 65 फीसदी, 83 फीसदी, 67 फीसदी और 75 फीसदी सब्सिडी सरकारी खजाने से दी जाती है। पूड़ी-सब्जी पर तो यह सब्सिडी 88 फीसदी है। हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि अधिकतम गुणवत्ता के मानकों का पालन करके तैयार होने वाला यह आहार इतनी सस्ती दरों पर मामूली से मामूली ढाबे पर भी मिलना मुश्किल है? स्वयं सरकार द्वारा ही दी गई जानकारी से पता चला है कि मांसाहारी व्यंजनों के लिए कच्ची खाद्य वस्तुएं 99.05 रुपये में खरीदते हैं और माननीय सांसदों को 33 रुपये में परोसते हैं।

पापड़ की दर पर भी छूट दी जाती है। बाजार से पापड़ 1.98 रुपये प्रति नग की दर से खरीदा जाता है और एक रुपये में संसद में बेचा जाता है। यानी 98 प्रतिशत सब्सिडी पापड़ के प्रति नग पर दी जा रही है। कैंटीन में रोटी एकमात्र ऐसा व्यंजन है, जो लाभ जोडक़र बेची जाती है। प्रति रोटी लगत खर्च 77 पैसे आता है, जबकि इसे एक रुपये प्रति नग की दर से बेचा जाता है। हालांकि सस्ते से सस्ते ढाबे पर भी रोटी की कीमत 2 रुपये से लेकर 5 रुपये तक है। संसद की रसोई की ये दरें खाद्य समिति ने 20 दिसंबर, 2010 को लागू की थी, तब से लेकर अब तक इन दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। जबकि सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ती महंगाई के अनुपात में निरंतर बढ़ते रहे हैं।

वर्तमान में सांसद को प्रतिमाह लगभग एक लाख, 40 हजार रुपये मिलते हैं। इसलिए सांसद और संसद के अधिकारी व कर्मचारियों को सब्सिडी आधारित भोजन की व्यवस्था बंद करने की जरूरत है, लेकिन माननीयों के मुंह से निवाला छीनने की हिम्मत कौन जुटाए? बीते पांच सालों में सांसद 60 करोड़ 60 लाख सब्सिडी आधारित भोजन का आनंद ले चुके हैं। 2009-10 में यह छूट 10.04 करोड़ रुपये थी, तो 2010-11 में 11.07 करोड़ रुपये थी और 2013-14 में बढक़र 14 करोड़ रुपये हो गई। यह छूट 76 प्रकार के व्यंजनों पर दी जाती है। इस छूट का प्रतिशत 63 से लेकर 150 प्रतिशत तक है।

बीते पांच सालों में सांसद 60 करोड़ 60 लाख सब्सिडी आधारित भोजन का आनंद ले चुके हैं। 2009-10 में यह छूट 10.04 करोड़ रुपये थी, तो 2010-11 में 11.07 करोड़ रुपये थी और 2013-14 में बढक़र 14 करोड़ रुपये हो गई। यह छूट 76 प्रकार के व्यंजनों पर दी जाती है। इस छूट का प्रतिशत 63 से लेकर 150 प्रतिशत तक है। Via 4pm.co.in

एलपीजी पर सब्सिडी किसलिए ??? आम आदमी ही क्यों ??

 

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