Monica Gupta

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August 3, 2015 By Monica Gupta

जब कार चलाना सीखा

car drive photo

 

जब कार चलाना सीखा

मुसीबत मोल ली मैने ..

जी हां … आजकल समय ही ऐसा चल रहा है.चारो तरफ टेंशन,परेशानी ही दिखाई देती रहती है. आमतौर पर हम इन तनाव या मुसीबत से छुटकारा पाना चाह्ते है पर दूसरी तरफ एक उदाहरण मै हू जोकि मुसीबत को खुद ही न्यौता दे आई और वो भी पूरे जोश के साथ पर अब कहने को कुछ नही बचा. बस चारो तरफ गहन अंधकार ही अंधकार है. खैर, इससे पहले आप माथे पर बल डाल कर ज्यादा सोचने पर मजबूर हो जाए मै आपको दुख भरी दास्तान सुनाती हूं.

बात ज्यादा पुरानी नही है बस पिछ्ले महीने ही ही है.एक दिन बाजार जाते समय मुझे एक सहेली मिली वैसे स्कूल टाईम मे वो नालायक नम्बर वन थी.पर पता नही आजकल उसे क्या हो गया है इतनी स्मार्ट इतनी स्मार्ट हो गई है कि बस पूछो ही मत.बाल कटवा लिए है धूप का चश्मा पहनने लगी है और सबसे बडी बात की कार चलाती है. बस यही मेरी दुखती रग है.

असल मे, मुझे कार चलानी नही आती. आज के समय मे कार ना चलाना आना हैरानी का विषय ना बने इसलिए मैने उसी समय घर आकर घोषणा कर दी कि कल से मै गाडी चलाना सीख रही  हूं. जो चाहे सो हो. छोटे बेटे ने तुरंत अग़ूंठा दिखा कर मेरा समर्थन किया जबकि 90% परिवार जनो की राय थी कि रहने दो क्या फायदा.

पर मै एक बार जिद कर जाती हू तो फिर अपने आप की भी नही सुनती बडे स्टाईल से डायलाग बोल कर इतराने लगी और कहा कि ठान लिया तो बस ठान लिया और अगले ही दिन ब्यूटी पार्लर मे जाकर छोटे छोटे बाल कटवा लिए और गोगल भी खरीद लिए. अब  भई स्टाईल भी तो मारना जरुरी होता है .जल्दी ही खोज शुरु हुई कार सीखाने वाले की और 15 दिन मे मै फराटे से  कार चलाना सीख गई हालाकि दो चार बार बहुत बुरी तरह बची भी हूं.अब सारी बाते क्या बतानी. आप खुद भी समझदार है….  है ना.

अब आप सोच रहे होंगे कि भई इसमे दुख भरी बात कहा है तो वही बताने तो जा रही हू.कि मुसीबत मोल ली मैने. छोटे छोटे कामो के लिए अब सब मेरा ही मुंह देखते है कि ग़ाडी भी है और ड्राईवर भी.चाहे बाजार से आधा  किलो आलू लाने हो कपडे प्रैस करवाने हो या राशन का सामान हो लाना हो .सब मेरे सिर पर ही आ गया कि कार है ना . पहले दुकान वाले  सामान  आदमी के हाथो भिजवा देते थे पर अब उनका एक ही जवाब होता है कि कार है ना आप ही आ जाओ. आदमी नही ना है. दुकान बंद करके आना पडेगा.वगैरहा वगैरहा.

घर पर किसी के जूते मे मोची से जरा सी कील ही ठुकवानी हो तो भी कार है ना. और तो और जो मेहमान सालों से हमारे यहां नही आए थे जबसे उन्हे पता चला कि मैने कार सीख ली है वो आने को तैयार है.हफ्ते दस दिन का कार्यक्रम बना कर आ रहे है. पहले उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाओ फिर आवभगत,जायकेदार व्यंजन बनाओ,सेवा करो और  फिर अलग अलग जगह सुबह से शाम तक  दिल्ली दर्शन  करवाओ शापिंग करवाओ और फिर रात को लजीज व्यंजन से स्वागत करो ताकि वो नाराज ना हो जाए.

पहले तो मात्र घर ही सम्भालती थी पर अब जबसे कार चलाना सीखा है बस मानो मुसीबत ही मोल ले ली है मैने.अब तो दोहरी भूमिका हो गई है.घर पर सब निश्चिंत होकर बैठे है और सभी खुश है कि अब तो दिक्कत की कोई बात ही नही है.पर मै सिर पकड कर बैठी हूं कि क्यो मैने कार चलाना सीखा और अपने पैरो पर खुद कुल्हाडी मार ली.बेटे ने जो उस दिन अगूंठा दिखा कर मेरी बात का समर्थन किया था  मुझे वो थम्स अप की बजाय  ठेंगा लग रहा है. कुछ भी कहो  इसमे अब कोई मेरी मदद नही कर सकता क्योकि यह मुसीबत खुशी खुशी मैने ही मोल ली थी… अब तो इसे भुगतना तो पडेगा ही पडेगा….

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य … जरुर बताईएगा 🙂

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