डांट – अविभावक – बच्चों की मानसिकता
पेरेंटिंग
क्लीनिक से बाहर निकलते हुए पिता अपनी दस साल की बच्ची को बहुत बुरी तरह डांट लगा रहे थे कि देख लिया हो गया न बुखार… हो गई मुसीबत.. कितनी बार समझाया कि ठंडा पानी मत पीया करो, बर्फ मत खाया करो… …पर तू समझती नही….वो चिल्लाए जा रहे थे और उनकी बीमार बेटी चुपचाप सिर झुकाए उनकी बाते सुन रही थी. वैसे अक्सर जब स्कूल का रिजल्ट आता है तब भी ऐसा बहुत बार देखने को मिलता है .. उस समय वो सभी के सामने बच्चों को बहुत गुस्सा करते हैं और कई बार तो पिटाई भी कर देते है..
अब प्रश्न ये उठता है कि क्या ये ही सही समय है डांटने का ??? और अगर नही तो बच्चों को डांटे या गुस्सा करें तो कब और कैसे ??
(तस्वीर गूगल से साभार)
इस बारे में फेसबुक पर मिली कुछ प्रतिक्रियाए इस प्रकार हैं…
(मीना कुमारी केरल में रहती हैं और होम मेकर हैं उनके अनुसार)
बच्चे के स्वभाव का स्वरुप समझ कर ही प्रतिक्रिया होनी चाहिये।बड़ों को अपने शब्दों और व्यवहार को बच्चों के सामने बहुत सोच समझ कर प्रस्तुत करना चाहिए। अगर बच्चों को प्यार की ललक होती है तो थोड़ा डर का अहसास दिलाना भी जरुरी है लेकिन सही औचित्य होना बहुत जरुरी है।कब क्या कैसे कहना चाहिये व्यवहार करना चाहिए ध्यान रखना जरुरी है। हम ये भूल जाते हैं बच्चों को कोसते कोसते हम कही न कही उसके ज़िम्मेदार होते हैं।
(अश्विन कुमार के अनुसार )
माँ बाप कुछ भी समझ कर या जान बूझ कर नहीं करते । उनकी प्रतिक्रिया स्वभाविक और प्राकृतिक होती है क्योंकि वह हमसे प्रेम करते हैं हमारी फ़िक्र करते हैं जब शरीर पर चोट होती है तो तुरंत प्रतिक्रिया होती है । माँ बाप को बच्चे के स्वास्थ्य और भविष्य की चिंता होती है। पंजाबी में कहते हैं मांवां दिया गालां घ्यो दिया नाळां । माँ की डांट के बाद मिलने वाला प्यार भी अतुलनीय होता है।
जिन बच्चों को माँ बाप की डांट नहीं मिलती वह असहनशील हो जाते हैं, जिंदगी में अन्य किसी से मिली डांट उन्हें विचलित कर देती है। मुझे याद है सफर के दौरान एक बजुर्ग महिला से डांट खाने के बाद उस युवक ने कहा था माँ याद आ गयी, माँ सी लगी। माँ की डांट ना खायी होती तो उनका निरादर कर देता ।
जाने माने मैनेजमेंट फंडा के जनक एन रघुरमन जी के अनुसार
I don’t think anything wrong in that altercation. The degree varies depending upon the economic strata. What you have cited is one such case from the not so poor but from the lower middle class that is trying to catch up the next level economically. Getting upset during children’s illness is very normal. The way it is expressed sets the tone for people like us to dissect it in public platform about a particular (economic) community.
My way of looking at it is every parent has a method to bring up their children; some have wrong results while some set a wrong perception in others. 99.9 percent parents does it out of love and that .1 percent is what is discussed in media!
कुछ दोस्तों ने फोन पर तो कुछ ने मैसेज के माध्यम से भी अपने विचार रखे.मेरे विचार से बेशक माता पिता का बच्चों को गुस्सा करने या डांटने का पूरा हक है पर जब बच्चा किसी दुख, tension या समस्या की घडी से गुजर रहा हो तो parents को थोडा संयम बरतना चाहिए और ज्यादा गुस्सा नही दिखाना चाहिए और खासकर दूसरों के सामने, बच्चे, जब अपने पेरेंटस से डांट खाते हैं या उनकी तुलना किसी दूसरे बच्चे से की जाती है तो उन्हें और भी ज्यादा गुस्सा आता है.
माता पिता बच्चे के रोल मॉडल होते हैं वो उन्ही से बहुत बाते सीखता है इसलिए कोशिश यही रहनी चाहिए कि बच्चों की नजरों में पेरेंटस की अच्छी छवि बनी रहे…
(तस्वीर गूगल से साभार)
अपनी बात रखने के और भी बहुत तरीके हैं वो अपना उदाहरण देकर समझा सकते हैं कि एक बार जब वो छोटे थे तब ऐसा ही हुआ था और तब उनके पापा ने कितना डांटा था… ऐसे उदाहरण देकर बच्चा समझ भी जाता है और माता पिता भी अपनी भावनाए व्यक्त कर देते हैं.
आज बच्चा बहुत भावुक और अधीर है और आज वो अपने पेरेंंटस के सामने चुप नही रहता और उल्टा जवाब भी दे देता है या कई बार गुस्से में वो खुद को कमरे में बंद कर लेता है या बिना बताए घर ही छोड कर चला जाए तो … ऐसी बातों से बचने के लिए बहुत समझदारी दिखाने की जरुरत है…
एक आम धारणा ये भी साबित करने की कोशिश की जाती है कि बच्चे हमेशा गलत और माता-पिता हमेशा सही होते है भले ही वह सही या वह गलत है। अकसर ऐसी स्थितियों में बच्चे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं..
इसलिए बच्चों को समझाने और अपना प्यार दिखाने के लिए कभी कभार बच्चों से भी सॉरी बोल दें तो ये पेरेंंटस का बडप्पन ही होगा …
वैसे आपके क्या विचार हैं इस बारे में जरुर बताईएगा..
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