देशद्रोही नारे और हमारा समाज
इंशा अल्लाह … इंशा अल्लाह…अफजल हम…. है …कश्मीर की… भारत की…तक..(मुझे तो ये नारे लिखने तक की हिम्मत नही ) घर के सामने से छोटे छोटे बच्चे खेलते बाते करते जा रहे थे और बातों बातों में ये नारे बोल रहे थे…
मैं गेट खोल कर बाहर आई और पूछा .. अरे !! ये क्या बोल रहे हो … एक दम से वो चुप हो गए फिर उनमे से एक हकलाते हुए बोला आंटीजी, आजकल सुबह शाम खबरों पर यही तो आ रहा है पापा और दादा जी यही सुनते रहते हैं…
और बच्चे तो आगे चले गए और मैं यह सोचते हुए घर के अंदर आ गई कि बच्चे गलत नही कह रहे क्योंकि पिछ्ले तीन चार दिनों से सभी न्यूज चैनल पर बार बार चिल्ला चिल्ला कर यही नारे बार बार न सिर्फ सुनाए जा रहे हैं बल्कि एंकर या आमंत्रित मेहमान बार बार बोल भी रहे हैं…!! क्या इतना बोलना काफी नही था कि जेएनयू मे देशद्रोही नारे लगे … क्या नारे लगे.. क्या ये बार बार बता कर हम खुद अपराधी या दोषी नही बन रहे… और बार बार धटिया नारे बोल कर हम क्या जताना चाह्ते हैं
इसी सोच में मैनें टीवी चला लिया.. अरे बाप रे !! न्यूज चैनल पर वही चिलमचिल्ली, वही घटिया नारे … !! और तुरंत टीवी बंद कर दिया… !!
देशद्रोही नारे और हमारा समाज के बारे में आपका क्या विचार है ??
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