पर्यावरण हमारा मित्र
बरसात की बूंदें धरा पर पडते ही सौंधी सौंधी मिट्टी की महक शायद महंगें से महंगे इत्र को मात देती है.
हाई वे पर जाते हुए बहुत वाहनों का आवगमन हो रहा था. एक वाहन गुजरा जिसमे फल( केला,किन्नू) भरे हुए थे. एक वाहन सामने से आता दिखा जिसमे बोरिया भरी हुई थी शायद उसमे चावल भरे हुए थे. वही छोटे छोटे ट्राली आ रहे थे जिसमे सब्जियां भरी हुई थी. देख कर मन मे अजीब सी खुशी हो रही थी कि धान्य से कितना समृध है हमारा भारत!!! पर तभी अचानक दनदनाते हुए पाचं ट्रक एक साथ ओवर टेक करते हुए निकल गए और उन्हे देखते ही मन मे भरी खुशी काफूर हो गई. असल में, उन ट्रक, ट्राली मे लकडी काट कर ले जा रहे थे. ऐसा महसूस हुआ मानो कोई हमारी आक्सीजन ही छीन कर ले जा रहा हो !!! हे भगवान!!! इतना ही नही जिस तरह से हाई वे चौडे होते जा रहे हैं और सडक किनारे लगे पॆड कटते जा रहे हैं निसंदेह दुखद है.
चिंता का विषय है. इसे सहेज कर रखना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए पर अफसोस हम जागरुक नही हैं … मुझे अच्छी तरह याद है हमसे स्कूल मे पौधे लगवाए गए. कोई बडा अधिकारी आ रहा था. हम सभी विधार्थियों ने मिल कर मैदान की सफाई की. धूमधाम से मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया और पौधे लगवाए गए पर तीन दिन के बाद एक अन्य कल्चरल प्रोग्राम होना था तो वहां दरिया बिछा दी गई और पौधे वौधे सब … !!!!!
ऊंची इमारते बनवाए चले जा रहे हैं पर जब बात पेड कटवाने या उखाडने की आती है तो हम नम्बर वन है. पर्यावरण शब्द का अर्थ है हमारे चारों ओर का आवरण। पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के आवरण को संरक्षित करें तथा उसे अनुकूल बनाएं। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं कृष्ण की गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत का लौकिक पक्ष यही है कि जन सामान्य मिट्टी , पर्वत , वृक्ष एवं वनस्पति का आदर करना सीखें। श्रीकृष्ण ने स्वयं को ऋतुस्वरूप , वृक्ष स्वरूप , नदीस्वरूप एवं पर्वतस्वरूप कहकर इनके महत्व को रेखांकित किया है।
paryavaran sanrakshan
बालू तुम्हारे उदरस्थ अर्धजीर्ण भोजन है , नदियां तुम्हारी नाडि़यां हैं , पर्वत-पहाड़ तुम्हारे हृदयखंड हैं , समग्र वनस्पतियां , वृक्ष एवं औषधियां तुम्हारे रोम सदृश हैं। ये सभी हमारे लिए शिव बनें। हम नदी , वृक्षादि को तुम्हारे अंग स्वरूप समझकर इनका सम्मान और संरक्षण करते हैं। भारतीय परम्परा में धार्मिक कृत्यों में वृक्ष पूजा का महत्व है। पीपल को पूज्य मानकर उसे अटल सुहाग से सम्बद्ध किया गया है , भोजन में तुलसी का भोग पवित्र माना गया है , जो कई रोगों की रामबाण औषधि है। विल्व वृक्ष को भगवान शंकर से जोड़ा गया और ढाक , पलाश , दूर्वा एवं कुश जैसी वनस्पतियों को नवग्रह पूजा आदि धार्मिक कृत्यों से जोड़ा गया। पूजा के कलश में सप्तनदियों का जल एवं सप्तभृत्तिका का पूजन करना व्यक्ति में नदी व भूमि को पवित्र बनाए रखने की भावना का संचार करता था। सिंधु सभ्यता की मोहरों पर पशुओं एवं वृक्षों का अंकन , सम्राटों द्वारा अपने राजचिन्ह के रूप में वृक्षों एवं पशुओं को स्थान देना , गुप्त सम्राटों द्वारा बाज को पूज्य मानना , मार्गों में वृक्ष लगवाना , कुएं खुदवाना , दूसरे प्रदेशों से वृक्ष मंगवाना आदि तात्कालिक प्रयास पर्यावरण प्रेम को ही प्रदर्शित करते हैं। वैदिक ऋषि प्रार्थना करता है- पृथ्वी , जल , औषधि एवं वनस्पतियां हमारे लिए शांतिप्रद हों। ये शांतिप्रद तभी हो सकते हैं जब हम इनका सभी स्तरों पर संरक्षण करें। तभी भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की इस विराट अवधारणा की सार्थकता है , जिसकी प्रासंगिकता आज इतनी बढ़ गई है। शेयर करें रेट करें Loading… See more…
खूबसूरत लहलहाती प्रकृति अपनी ओर अनायास ही आकर्षित कर लेती है और हम है कि इसे समाप्त करने मे जुटे हुए है.
अगर हम कुछ उपाय करना ही चाह्ते हैं तो ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए ….. जन्मदिन पर पौधे उपहार स्वरुप दें और सबसे जरुरी प्लास्टिक को न कहें … say no to plastic और यही बात अपने बच्चों को भी सिखानी है ताकि वो भी पर्यावरण की मह्त्ता को समझे और अपना अमूल्य योगदान दे. पेड पौधे लगा कर न सिर्फ फोटो करवाए बल्कि उसे सहेज कर भी रखें. पेड पौधे होगें तो तितली और पक्षी आएगें उनका कलरव . उनका चहकना हमारे दिलों में नई स्फूर्ति भर देगा.
पर्यावरण हमारा मित्र ही नही हमारा बेस्ट फ्रेंड होना चाहिए. लीजिए मैने तो एक तुलसी का पौधा लगा कर पर्यावरण दिन को मना लिया है और आपने ???