प्रेरक बातें
पॉजिटिव बातें हो प्रेरक बाते हमेशा अच्छी होती है चाहे हम उस पर ध्यान दें या न दें अक्सर जाने अनजाने भी हमें बहुत बातें ऐसी सीखने को मिल जाती हैं जिनसे जिंदगी में एक बदलाव लाया जा सकता है. ऐसे कुछ छोटे छोटे उदाहरण मेरे नजरिए से…
कई बार बात करते करते या फिर टीवी के माध्यम से हमें बहुत सीख मिल जाती है कुछ समय पहले टीवी पर अनुपम खेर का कार्यक्रम आ रहा था. वो बातों बातों में किसी को बता रहे थे कि एयर पोर्ट पर उन्हें कोई मिला और बहुत गर्म जोशी से मिला. अनुपम खेर उन्हें पहचान नही पाए कि ये है कौन पर अनुपम खेर ने उनसे पूछा नही बल्कि उससे दुगुने अपनेपन से गले मिले और हाल चाल पूछा बात करते करते उन्हें याद आ गया कि वो कौन था.. ऐसा अक्सर हमारे साथ भी हो जाता है कोई मिलता है बहुत गर्मजोशी से पर याद ही नही आता इसलिए उस समय ये पूछ्ने कि भई आप कौन है ?? मैं आपको कैसे जानता हूं …. हमें भी गर्म जोशी से मिलना चाहिए … देर सवेर याद आ ही जाएगा …!!
ऐसे ही एक बार बहुत साल पहले टीवी पर हेमा मालिनी का साक्षात्कार आ रहा था. उन्होने बताया कि हमें अपने बच्चे में अगर हमे कोई कमी लगती है तो बजाय दूसरों को बताने के बच्चों को ही बतानी चाहिए. एक बार वो अपनी किसी सहेली से अपनी बच्ची के बारे में बात कर रही थी . ये बात उनकी बेटी ने सुन ली और उनके जाने के बाद टोका कि अगर यही बात आप हमे बताते तो हम उसे सुधारते.इस बात ने भी बहुत असर डाला मन पर. वाकई में हमें कोशिश यही करनी चाहिए कि घर की बात आपस में ही सुलझा लेनी चाहिए.
एक बार जब मैं ज़ी न्यूज की ओर से उनसे साक्षात्कार ले रही थी और महिलाओं और फिल्म इंडस्ट्री के बारे में पूछा कि कितना सही है लडकियों या महिलाओं का इस तरफ रुझान तो उन्होने महिलाओ के बारे में बहुत बाते सांझा की. उन्होने बताया कि महिला कही भी काम करें चाहे आफिस में या फिल्मों में…. जरुरी बात ये है कि अपनी गरिमा बना कर रखनी चाहिए.
एक और उदाहरण है सचिन तेंदुलकर का..
शाबाश, वाह, बहुत खूब, क्या बात है, लगे रहो, शुभकामनाएं …. !!! बहुत अच्छा लगता है सुनना !!! पर अगर कोई काम अच्छा करे और यह शब्द उसे सुनने को न मिले तो यकीनन मन उदास हो जाता है और काम करने का उत्साह लगभग खत्म हो जाता है. मेरी सोच भी कुछ ऐसी ही है पर 17 नवम्बर को जब सचिन का स्टेडियम से भाषण सुना तब से मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो रहा है. सचिन ने भाषण के दौरान अपने कोच श्री रमाकांत आचरेकर के बारे मे बताया कि उन्होनें बहुत मेहनत करवाई. स्कूटर पर एक मैदान से दूसरे मैदान ले जाते पर पिछले 29 साल में उन्होंने एक बार भी कभी “वेल प्लेड” नहीं कहा। शायद उन्हें डर था कि मैं ज्यादा ही खुश न हो जाऊं और मेहनत करना न छोड़ दूं।’…
वाकई में, सचिन की यह बात बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही है. बेशक ,आगे बढने के लिए अपनो का साथ तो चाहिए ही होता पर इसके साथ साथ प्रोत्साहन भी बहुत जरुरी होता है पर सचिन ने इस बात को दिल से नही लगाया और मेहनत मे जुटे रहे. मेरी भी विचार धारा बदल रही है और अगर आप लोगों को भी किसी खास की शाबाशी नही मिल रही है. जिससे आपको बहुत उम्मीद है तो भी कोई बात नही. यकीन मानिए वो बेशक लफ्जों ना बोलें पर दिल से आपका बहुत भला चाह्ते हैं
तो है ना … अच्छी है ये बाते … अगर आप भी कोई ऐसी बात हमसे शेयर करना चाहें तो आपका स्वागत है …