पेरेंटस कृपया ध्यान दें. आज के समय में बच्चों की मानसिकता समझें अविभावक. अपने बच्चें की तुलना दूसरे बच्चे से करने की बजाय अपने बच्चे के गुणों को पहचाने और प्रोत्साहित करें.
बच्चों की मानसिकता समझें अविभावक
बच्चों की मानसिकता पर एक उदाहरण में देना चाहूंगी जो मेरे साथ हुआ .. बात कुछ दिन पहले की है… पिछ्ले चार पाचं दिन से एक महिला को देख रही थी कि सुबह सुबह अपने छोटे से बच्चे को लेकर घर के सामने से जाती है बच्चा शायद तीसरी क्लास में ही होगा … जब भी हमारे घर के आगे से गुजरती … उसे डांटती जाती है दो तीन बच्चों के नाम लेती जाती है कि उससे कम नम्बर लाया तो पिटेगा … उस जैसा बन कर रहा कर … बच्चा सिर झुका कर बस चलता ही रहता है …
मैंं उस समय पौधो को पानी दे रही होती थी. उसके जाने के बाद दो दिन से मेरे दिमाग मे यही चलता रहता कि पता नही हम तुलना किसलिए करते हैं … कभी भी तुलना नही करनी चाहिए क्योकि हर बच्चे मे अपनी खासियत है जोकि दूसरे बच्चे में हो ही नही सकती … और तुलना करके कडवाहट ही बढती है न कि कम होती है और मन में जो हीन भावना पैदा होता है वो अलग …
हर काम में तुलना करने से गलती निकालने से बच्चे न सिर्फ चिडचिडे हो जाते हैं बल्कि जिद्दी और गुस्सैल भी हो जाते हैं
आज फिर वो घर के सामने से जा रही थी और मैं घर का गेट खोल कर खडी हो गई और जब वो बच्चे को छोड कर वापिस आ रही थी तो मैने उसे रोक कर पूछा कि आप सुमीत की मम्मी को जानती हैं वो बोली कौन सुमीत ?? सुमीत शर्मा .. मैने कहा जी हां वही सुमीत जो आपके बेटे के साथ पढता है वो बोली जानती हूं तो मैने कहा कि उसकी मम्मी तो बहुत स्मार्ट है पर आप तो बिल्कुल स्मार्ट नही है इस पर वो बहुत बुरी तरह झेप गई … और गुस्से में बोली… मैं जैसी हूं अच्छी हूं आपको मतलब.. अचानक मेरी तंद्रा टूटी वो जा रही थी हमेशा की तरह बच्चे को गुस्सा करते हुए …( वो सब मेरा ख्याल था )
उस समय मैने उसके लौटने का इंतजार किया और उसके लौटते हुए पूछ लिया कि आपका बेटा कौन सी क्लास में है और उससे बात करने लगी कि बहुत प्यारा बेटा है बहुत बच्चे यहां से जाते हैं और कई बच्चे तो अपनी मम्मी से ही बतमीजी से बात करते जाते हैं पर आपका बेटा बहुत चुप रहता है बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं आपने …
बहुत प्यार मिलता होगा उसे घर में … मैने उसे ये भी कहा कि आजकल पेरेंटस में भी सब्र नही रहा बस काम्पीटिशन के चलते वो बच्चे से उम्मीद लगा बैठते है कि वो हर चीज में आगे रहे पर ऐसी सोच बिल्कुल गलत है… आप अपने बेटे को बस प्रोत्साहित करती रहिए यकीन मानिए उस जैसा बच्चा और कोई हो ही नही सकता …
उस समय वो स्माईल देकर चली गई उसके एक दो दिन बाद तक वो घर के आगे से जाती रही पर उसने बच्चे को गुस्सा नही किया और बच्चे से मुझे भी मिलवाया मैने भी उसे चॉकलेट दी … शायद वो समझ गई थी कि मैं क्या कहना चाह रही हूं …
वैसे आप कैसे पेरेंटस हैं ??? थोडे से प्यार. दुलार और विश्वास से आप अपने बच्चे का न सिर्फ दिल जीत सकते हैं बल्कि उनको प्रोत्साहित भी कर सकते हैं…
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