Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 17, 2015 By Monica Gupta

महिला दिवस

महिला दिवस ………….मेरी नजर में

 

cartoon oh no
8 मार्च ….  महिला दिवस यानि खूब गहमा गहमी का दिवस… बस इसे मनाना है … किसी भी सूरत में…..चाहे प्रशासन हो….या कोई संगठन, क्लब हो या कोई एन जी ओ….सब अपने अपने ढगं से मनाते हैं.

इस दिन जबरदस्त भाषण बाजी होती है .. महिलाओ को कमजोर बता कर उन्हे आगे आने के लिए उत्साहित किया जाता है. नारी सशक्तिकरण की याद भी उसी दिन आती है. दावे किए जाते है कि हमारे यहाँ कार्यक्रम मे 50 महिलाए आएगी तो कोई कहता है कि हमारे पास 100 आएगीं. हैरानी की बात…….आती भी हैं या भर भर कर उन्हें लाया जाता है.  उस दिन उनका पूरा समय भी लिया जाता है. कई बार उन्हे खुश करने के लिए उस दिन ट्राफी दी जाती है… आईए ….एक नजर डालते हैं…… 8मार्च की सुबह पर……
मिताली का अपने पति से जम कर झगडा हुआ…क्योंकि दिवस मनाने के चक्कर मे जल्दी जल्दी वो डबल रोटी जला बैठी और अंडा कच्चा ही रह गया ….पति महोदय बिना कुछ खाए द्फ्तर चले गए.

दीपा को महिला दिवस का कही से न्यौता ही नही आया था …..इस चक्कर मे घर मे काफी तनाव था …..दो बार अपने बेटे की पिटाई कर चुकी है…और चार बार फोन उठा कर देख चुकी है…पर घंटी है कि बज ही नही रही ..वो महिला दिवस को कोसती हुई ….बालो मे तेल लगा कर ….जैसे ही नहाने घुसती है….अचानक फोन बज उठता है और उसे आमंत्रण मिलता है कि कल तो फोन मिला नही …बस ..अभी आधे घंटे मे क्लब पहुचों…. आगे आप समझदार हैं…..कि क्या हुआ होगा ….

सरकारी दफ्तर मे काम करने वाली कोमल की अलग अलग तीन जगह डयूटी थी …उधर घर पर पति बीमार थे और लड्की के बोर्ड का पेपर था.. उसे सेंटर छोड कर आना था ….टेंशन के मारे उसका दिमाग घूम रहा था उपर से दफ्तर से फोन पर फोन आए जा रहे थे कि जल्दी आओ….
अमिता समय से पहले तैयार होकर खुद को बार बार शीशे मे निहार रही थी कि अचानक बाहर से महेमान आ गए …..वो भी सपरिवार …दो दिन के लिए ….उन्हे नाश्ता देकर जल्दी आने का कह कर वो तुंरत भागी … संगीता के पति का सुझाव था कि उनकी बेटी के शादी के कार्ड  वही प्रोग्राम मे बाटँ दे…… उससे चक्कर, पेटोल और समय बच जाएगा ……कार्ड निकालने के चक्कर मे वो बहुत लेट हो गई ….और वहाँ बाटंना तो दूर वहाँ लिफाफा ही किसी ने पार कर लिया ….
खैर , ऐसे उदाहरण तो बहुत है पर बताने वाली बात यह है कि प्रोग्राम मे सभी महिलाए मिलकर खुश होकर ताली बजा कर महिला दिवस का स्वागत कर रही थी …… वो अलग बात है कि उघेड बुन सभी के दिमाग मे अलग अलग चल रही थी.

चाहे वो घर की हो दफ्तर की हो या किसी अन्य बात की … महिलाए है ना….. चाह कर भी खुद को परिवार से अलग नही कर पाती….. शायद यह हमारी सबसे बडी खासयित है जोकि पूरे संसार मे कही और नही मिलेगी… हमारे देश मे हर परिवार का अपना रहन सहन है… अपना खान पान है….. परिवार जब शादी के लिए रिश्ता खोजता है तो उसके जहन मे होता है कि उसे कैसी लडकी चाहिए वो नौकरी पेशा हो या नही फिर बाद मे किस बात की तकरार.  ये तो हम महिलाओ की खासियत है कि घर और द्फ्तर या परिवार मे सही तालमेल रखती हैं.  आदमी महिला के खिलाफ कितना बोल ले पर उसके बिना वो अधूरा ही है… और यही बात हम महिलाओ पर भी लागू होती है .

कोई भी महिला आदमी के बिना अधूरी है तो फिर तकरार किस बात की है. क्यो अहम बीच मे आ जाता है ….. क्यों वो अपनी अपनी जिंदगी मे खुश नही रह सकते. प्रश्न इतना बडा भी नही है जितना लग रहा है .. इसका उतर हमे खुद खोजना होगा वो भी कही दूर जाकर नही बलिक अपने घर –परिवार मे .

मेरे विचार में बजाय मंच पर खडॆ होकर अपने हक की बात करने से या चिल्ला चिल्ला दुहाई देने से अच्छा है कि महिला को अपने घर की चार दिवारी मे परिवार वालो के बीच ही फैसला लेना होगा. अपना अच्छा बुरा खुद सोचना होगा.  माईक के आगे जोर जोर से दुहाई देने से बजाय खुद का मजाक बनने से कुछ हासिल ना हुआ है ना ही होगा. आप खुद ही नजर डाले कि बीते सालो मे 8 मार्च के बाद कितना और कहा कहा बद्लाव आया है तो सब  खुद ब खुद साफ हो जाएगा.
इसीलिए घर से अलग होकर या परिवार से उपर होकर फैसले लेने की बजाय परिवार के साथ चलेगें और अगर आपके अपने अपने परिवार मे जाग्रति आ गई तो हर रोज महिला दिवस होगा और बजाय लडाई झगडॆ के महिला और उसकी भावनाओ को समझ कर उसे ना सिर्फ घर मे बल्कि बाहर भी सम्मान मिलेगा ..जिसकी वो हकदार है ..नही तो इतने सालो से महिला दिवस मना रहे है ना .. बस आगे भी सालो साल मनाते ही रह जाएगे ..
तो .. 8 मार्च की सार्थकता तभी होगी जब हम सभी इस बात का गहराई से मथनं करे और जल्दी से जल्दी किसी निर्णय पर पहुचे ..

ये तो मेरी राय है आप इन विचारो से सहमत है या नही …. अपने विचार सांझा   जरुर करें ….

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