कई बार हम पूरा लेख लिख देते हैं पर उसका टाईटल समझ नही आता. कई बार टाईटल दिमाग में आ जाता है पर लेख क्या लिखे ये समझ के बाहर होता है. इस व्यंग्य को लिखने के बाद माथा पच्ची शुरु हुई कि क्या नाम दिया जाए. बहुत घोडे दौडाए पर जब बिल्कुल भी समझ नही आया तब टीवी चला लिया उन दिनों अब तक 56 फिल्म बहुत प्रचार मे थी. बस … मुझे भी नाम मिल गया … क्योंकि 35 व्यंग्य थे इसलिए नाम दे दिया “अब तक 35”
“अब तक 35” में मेरे लिखे 35 हास्य व्यंग्य हैं. ये मेरी चौथी किताब है. इसमें अधिकतर राष्ट्रीय समाचार पत्र जैसे “दैनिक भास्कर” के राग दरबारी कालम, “दैनिक जागरण “आदि तथा कुछ आकाशवाणी जयपुर और हिसार में प्रसारित हुए हैं. उन सभी को मिला कर इसे पुस्तक का रुप दिया है. सन 2009 में दिल्ली के शिल्पायन द्वारा प्रकाशित किताब में 103 पेज हैं.
उसी में से एक हास्य व्यंग्य आपके समक्ष है …
एक्सीडेंट हो गया ……!!!
जुल्फी मियां घबराए हुए चले आ रहे थे । चेहरा सुर्ख लाल, हाथ-पांव कांपते हुए मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि मियां, आज तो एक्सीडेंट हो गया . यार-दोस्त उनकी हालत देखकर घबरा गए । छोटू को चाय आर्डर किया और उन्हें कुर्सी पर बैठाकर खैर-खबर जाननी चाही कि आखिर हुआ कैसे कि इतने में सतीश बोल पड़ा, यार सड़क पर इतने गड्डें हैं, कोर्इ हाल है क्या, वहीं उलझ गए होंगे और एक्सीडेंट हो गया हेाना है ।
मनप्रीत ने अपनी राय रखी, ओये! तेनू की पता …. ऐ लोकल बसैं होन्दी हैं ना उसदे ऊपर लटक-लटक के जान्दें ने लौकी ……. मैं तां कहदां हां की जुल्फी मियां भी किसे बस इच लटक के जा रहे होंगे तैं उदैं विचों डिग पए होणगे ।
तभी रोनी ने टोका, हे मार्इप्री, मनप्रीत गुस्से से बोला, ओए नां ठीक लया कर … अंग्रेजी दा पुत्तर …….गल करदा है … मैंने बात गिड़ते देख उनकी सुलह करवार्इ और रोनी से पूछा तो उसने बताया कि वेरी सिम्पल, द ओनली रीजन इज मोबाइल यार ! पीपल टाक टू मच वार्इल ड्रार्इविंग, आर्इ थिंक दिस इस द ओनली रिजन आफ एक्सीडेंट ।
तभी तार्जन अपनी तातली आवाज में बोला, मु…….. मुझे पता है……… तोर्इ गाय तामने अचानक आ दर्इ होगी । औल तुल्फी मियां चलक पल गिल पले होंदे। तभी खुद को हीरो समझने वाला शहिद बोला, ओ कम ओन यार, यू नो, ये सब दोस्ती का चक्कर है । मोटरसाइकिल और स्कूटर या साइकिल चलाते समय एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं और गाना गाते सड़क पर अपना दुपहिया भगाते हैं । आर्इ थिंक, दिस इज द रिजन, फ्रेंडस ।
तभी कमल हकलाता हुआ बोला …..त ….त……त…..तुम…..स…. सब गलत हो…….! इ…….इतना ….स…. स….. सारा काफिला च…. च….. चलता ……. है ……. ब …..ब ….बस ……. किसी …….. ग….. ग….. गाड़ी…… ने ठोक दि…. दि…. दिया होगा ! बे…. बे…. बेचारे ….. जु….. जु…. जुल्फी मियां ……..! तभी मेरा ध्यान जुल्फी मियां की तरफ गया । चाय उनके हाथ में ज्यों की त्यों रखी थी और चाय में काली मलार्इ जम चुकी थी ।
किसी गहरी सोच में डूबे जुल्फी मियां ने फिर बताया कि उनका एक्सीडेंट हो गया । मैंने भी पूछा क्या कोर्इ शराब पीकर गाड़ी चला रहा था जो उसने टक्कर मार दी । उन्होंने न की मुद्रा में सिर हिलाया । इसी बीच में छोटू गर्म चाय का नया गिलास देकर चला गया था । मैंने फिर पूछा कि कहीं बंद फाटक के नीचे से तो नहीं निकल रहे थे कि ट्रेन आ गर्इ हो । उन्होंने फिर से न की मुद्रा में सिर झटक दिया । हम सब हैरान परेशान हो चुके थे पर जुल्फी मियां हमारी किसी भी बात से सहमत ही नहीं थे । हम आपस में बातें करने लगे कि आजकल बस या जीप के ड्रार्इवर के पास लाइसेंस तो होता नहीं है बस ड्राइवर बन जाते हैं और छोटे-छोटे बच्चे धड़ल्ले से स्कूटी, कार, मोटरसाइकिल चलाते हैं ।
तभी जुल्फी मियां ने चाय का गिलास मेज पर रखा और चिल्लाते हुए बोले नहीं, अम्मा यार, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । वो तो ….. वो तो….. राह से गुजरते वक्त चश्मेबददूर बानो हमें मिल गर्इ थी । हमारी उनसे और उनकी हमसे ….नजरें इनायत हुर्इ… और फिर चार हुई … बस समझो कि ऐसा एक्सीडेंट हुआ कि….. बस…..!! ये कहते हुए खुदा हाफिज करते हुए, मुस्कुराते हुए बाहर निकल लिए और हम सब अपना सिर पकड़ कर बैठ गए ।
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