काश मैं अध्यापक होता
वैसे बचपन से सपने सभी देखते हैं कि मै बडा होकर ये बनूगां या वो बनूगां. तो जनाब, मेरा भी बचपन से सपना था कि काश मैं अध्यापक बनूं इसलिए नही कि मै पढने मे बहुत होशियार था. असल मे, आप से क्या छुपाना. मैंं पढाई मे बहुत कमजोर था पर दिक्कत की कोई बात नही थी क्योकि हमारे सर जी टयूशन मे पूरी मदद करते थे और हम भी समय समय पर उनके घर का छोटा मोटा काम करके जैसे कि जन्मदिन पर उपहार ले जाना, कपडे प्रैस करवा करवाना, जूता ठीक करवाना ,दर्जी से कपडे लाना या गैस बुक करवाना और अक्सर अपना गैस सिलेंडर ही दे आना वगैरहा वगैरहा करके उन्हे खुश रखते और हमे जाने अनजाने पेपर की जानकारी हो जाती और बिना पढे ही पास हो जाते और तो और कई बार तो ऐसा भी हुआ कि जब पेपर चैक होने आते तो वो हमे पास बुला कर चुपचाप सारा पेपर लिखवा देते यानि पूरा सहयोग दोतरफा रहता.
शिक्षक की भूमिका
अब सर जी के इतने ऐशो आराम देख कर मन मे बचपन से ही इच्छा हिलोरे मारने लगी थी कि अगर कुछ बने तो टीचर ही बने और पूरी जिन्दगी आराम से बिताए क्योकि उन्हे ना तो स्कूल जाने की टेंशन और ना पैसो की क्योकि ट्यूशन से भरपूर कमाई थी.
क्या कुछ नही था उनके घर मे.सुख सुविधाओ का सारा सामान था.बच्चे अच्छे स्कूल के होस्टल मे पढ रहे थे . बस यही सब बाते दिल को छू गई और जब मैने अपनी दिल की बात सभी घर वालो को बताई तो घर के सभी लोग मेरा निणर्य सुन कर फूले नही समाए और जुट गए उसे पूरा करने मे.
अजी नही नही … पढाई और अच्छे अंक नही.बल्कि अच्छे सिफारिशी और खाऊ पीऊ नेता की तलाश में. बहुत जल्दी तलाश खत्म भी हो गई और कुछ सालो बाद मेहनत रंग लाई और मेरा सपना पूरा हुआ. पांच लाख रुपए देकर बात पक्की हो गई और मेरी पहली पोस्टिंग शहर से बहुत दूर के गांव मे सरकारी स्कूल के अध्यापक के तौर कर दी गई.
मै खुशी मे फूला ना समाया और अपना बोरिया बिस्तर लेकर नए सपने लिए गांव पहुंचा. सोचा था गांव के लोग स्वागत मे खडे होग़ें पर ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि कुछ लोग इस इंतजार मे खडे थे कि कब मास्टर आए और पढाना शुरु करे. खैर पहला दिन था ना सोचा धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा.
अगले दिन कक्षा लेते हुए मैने ट्यूशन का जिक्र क्लास मे कर दिया कि कोई भी आ सकता है. अगले दिन पूरा गांव स्कूल मे इक्क़ठा हो गया और धमकी भी दे डाली कि खबरदार आगे से ट्यूशन का नाम भी लिया.जो पढाना है जितना पढाना है स्कूल के समय मे पढाओ और फिर भी नतीजा अच्छा ना आया तो आपकी खैर नही….!
मैने बडी मुश्किल से थूक गटका और कक्षा मे चला गया. पढाते पढाते मै सोचने लगा कि शायद पिछले कुछ सालो मे समय बहुत बदल गया है. खैर मैने हिम्मत नही हारी. अगले सप्ताह मैने धोषणा कर दी कि आने वाली 16 को मेरा जन्मदिन है पर हाय रे यहां भी किस्मत ने साथ नही दिया.कक्षा मे खडे होकर सभी बच्चो ने ताली जरुर बजा दी पर किसी एक बच्चे की तरफ से उपहार ….अजी मतलब ही नही.
खैर, एक दिन मैने एक बच्चे से कहा कि अपने घर का 5 किलो शुद देसी घी लेकर आना क्योकि शहरो मे तो मिलावट होती है ना. लडका सुबह सुबह घी ले आया और पीछे पीछे उसके पिता डंडा ले कर पहुंच गए कि घी के पैसे अभी दे दो क्योकि अक्सर बाद मे उन्हे याद नही रहता. मेरा तो सिर ही घूम गया. मरता क्या न करता. उसी समय रुपए देने पडे वो भी शहरी रेट से ज्यादा. मेरे पूछ्ने पर वो बोले कि शुद्द घी है खालिस है तो पैसे तो यकीनन ज्यादा लगेंगे ही.
उधर स्कूल मे स्टाफ ना के बराबर था. लगभग 200 बच्चो के स्कूल मे एक मैं और एक दूसरे अध्यापक और एक चपडासी था. अक्सर सरकारी काम कभी गणना तो कभी किसी दूसरे काम से हमारी डयूटी लग जाती तो दूसरे टीचर की क्लास भी लेनी पडती और कई कई बार तो चपडासी भी बनना पडता.
कभी गलती से किसी बच्चे से पीने के लिए पानी मंगवा लिया तो अगले दिन पूरा गांव इक्ट्ठा हो जाता कि हमारे बच्चे यहां पढने आते है ना कि यहां के चपडासी हैं. मै स्कूल मे 5 मिनट कभी देरी से पहुंचता तो गांव वाले गेट पर ताला लिए खडे रह्ते कि ऊपर शिकायत करगें कि मास्टर देरी से आते है और धमकी देते कि अगर आगे देरी से आए तो स्कूल को ताला ही लगा देगें.
मेरे तारे पूरी तरह गर्दिश मे चल रहे हैं.कभी किसी बच्चे ने अच्छा काम किया और मैने प्यार से सिर पर हाथ फेर दिया तो गांव वाले भडक लाते है कि बच्चे को छेड दिया. मास्टर का करेक्टर सही नही है और अगर किसी बच्चे ने सही काम नही किया और मैने गुस्सा कर दिया तो भी मुसीबत खडी हो जाती कि मास्टर पिटाई करता है.
कुल मिला कर मै हैरान परेशान हूं कि मैने टीचर बनने का सपना क्यो देखा. बार बार खुद को चिकोटी काट रहा हूं कि काश यह सब सपना ही हो पर अफसोस यह सच है सपना नही.
अब मुझे कैसे भी झेलना ही पडेगा. काश मैं अध्यापक होता … की बजाय यह कहना ज्यादा सही है कि काश मै अध्यापक “ना” होता.
काश मैं अध्यापक होता आपको कैसा लगा … जरुर बताईएगा !!