Monica Gupta

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September 23, 2015 By Monica Gupta

सफलता की कहानी

 

ashok[1]

सफलता की कहानी

रक्तदान के क्षेत्र में एक प्रेरणा है अशोक कुमार

रक्तदाता श्री अशोक कुमार

रक्तदान से सम्बंधित एक कार्यक्रम चल रहा था. मीडिया, नेता, वक्ता, टीचर, डाक्टर आदि बहुत सज्जन मौजूद थे. सभी बहुत ध्यान पूर्वक कार्यक्रम सुन रहे थे तभी अचानक दरवाजा खुला और एक पुलिस वाले भीतर आए. उन्हे देख कर अन्य लोगो की तरह मेरे मन मे भी यही सवाल उठ रहा था कि यह यहां किसलिए आए हैं इनका यहां क्या काम है. इतने मे उन्हे स्टेज पर बुलाया गया. मैने सोचा कि स्पीच वगैरहा देकर चले जाएगे. पर स्पीच के दौरान सुना कि वो तो स्वयं रक्तदाता हैं और अभी तक 45 बार रक्तदान कर चुके हैं और 15 बार रक्तदान के कैम्प लगा चुके हैं. उनकी बातो से प्रभावित होकर मैने विस्तार से उनसे बात की.

सफलता की कहानी

उनका पूरा नाम है श्री अशोक कुमार. 3 सितम्बर सन 1972 मे जन्मे अशोक जी का जन्म हरियाणा के करनाल मे हुआ. पिता आर्मी मे थे. उन्होने सन 1962 और 1965 की लडाई भी लडी इसलिए बचपन से ही वो उनसे प्रेरित थे और बस एक ललक थी कि बडे होकर या तो आर्मी या पुलिस मे जाना है. कालिज मे जाने के बाद एनसीसी ज्वाईन कर ली थी. वैसे ना तो उन्हे सांइस और ना ही कामर्स का शौक था पर बडो के कहने पर उस विषय को लेना पडा. इससे पहले मैं कुछ और पूछती उन्होने बताया कि आज की तारीख मे उनके पास चार डिग्री बीकाम, एमकाम, एलएलबी और एलएलएम की हैं. फिर सन 98 मे वो पुलिस मे भर्ती हुए और आजकल हरियाणा के कुरुक्षेत्र मे वो फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट हैं.

रक्तदान के बारे मे अपने पहले अनुभव को उन्होने इस तरह से बताया कि सन 90 मे जब एनएसएस का कैम्प लगा था तब वो और उनके तीन चार दोस्त रक्तदान करने गए. तब अपने तीनो दोस्तो मे वो ही रक्तदान कर पाए और उनके दोस्त किसी ना किसी वजह से रक्त दान नही कर पाए. उस दिन इनमे एक अलग सा ही आत्मविश्वास आ गया और बस तभी से रक्तदान की शुरुआत हुई. एक और अच्छी बात यह भी हुई कि घर पर सभी ने शाबाशी दी और प्रोत्साहित किया. वैसे भी आर्मी मे समय बेसमय रक्त की जरुरत तो पडती ही रहती थी तब उनके पिता भी हमेशा आगे रहते. यही भावना उनके मन मे भी घर कर गई थी कि वो भी कभी भी जरुरतमंद को अवश्य खून दिया करेगें.

अब मेरे मन मे एक ही सवाल था कि पुलिस वालो के लिए अक्सर लोग बोलते है कि ये लोग तो खून पीतें हैं. इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि यकीनन बोलते हैं और कई बार दुख भी होता है पर खुद काम अच्छा करते चलो तो कोई परेशानी नही आएगी. एक बार का वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया सन 2010 मे जब उन्होने खून दान किया तो अखबार मे प्रमुखता से खबर छपी तो श्री सुधीर चौधरी (आईपीएस) ने भी यही बात की थी और शाबाशी भी दी थी कि बहुत अच्छा कार्य कर रहे हों. तब भी विश्वास को एक नया बल मिला था.

कोई मजेदार बात सोचते हुए उन्होने बताया कि जब भी वो कैम्प लगाते है कि जानी मानी शखसियत को बुलाते हैं. एक बार ( नाम नही बताया) जब उन्होने अपने कैम्प मे आने का निमत्रंण दिया तो पहले तो उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया पर बाद मे बोले कि उन्हे रक्त देख कर ही डर लगता है इसलिए वो नही आ पाएगे. पर बहुत प्रयास और समझाने के बाद वो आए और पूरे समय कैम्प पर ही रहे पर रक्तदान के नाम से आज भी कतराते हैं.

अशोक जी ने बहुत गर्व से बताया कि आज की तारीख मे लगभग 1000 पुलिस विभाग के लोग उस मुहिम से जुडे हैं और वो जब भी खुद कैम्प आयोजित करते हैं ज्यादा से ज्यादा पुलिस को जोडते हैं ताकि समाज मे फैली धारणा को वो बदल सकें. समाज सेवा मे मात्र रक्तदान ही नही वो भ्रूण हत्या, वृक्षारोपण, सडक दुर्धटना मे घायल लोगो की मदद करना और गरीब बच्चो को छात्रवृति भी प्रदान करवाते हैं. आज की तारीख मे अशोक जी के पास दो नेशनल एवार्ड हैं. 15 स्टेट एवार्ड ,13 जिले व प्रशासन की ओर से मिले सम्मान और 23 एनजीओ की तरफ से मिले विशेष सम्मान मिले है जोकि बहुमूल्य हैं. मैं उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत थी.

अंत मे जब मैने पूछा कि जनता के लिए क्या संदेश है इस पर वो बोले कि एक कविता लिखी हैं. ये बात फिर चौका गई क्योकि पहली बात तो वो पुलिस वाले फिर रक्तदाता और फिर अब कवि भी. अपना संदेश उन्होने कुछ इस तरह से रखा….

आओ मिल कर कसम ये खाए

खून की कमी से ना कोई मरने पाए

जात पात और मजहब से उपर उठ कर

इंसानियत की जोत जगाए

हम तो है भारत वासी देख का गौरव ऊंचा बढाए !!!

अशोक जी इसी तरह रक्तदान की मुहिम को आगे बढाते रहॆं. आईएसबीटीआई परिवार की ओर से ढेरो शुभकामनाएं !!!!

सफलता की कहानी आपको कैसी लगी ?? जरुर बताईगा !!

मोनिका गुप्ता

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