समय ही नही मिलता
समय ही नही मिलता… नाटक संग्रह है. इसमे लगभग सभी नाटक वो हैं जिनका आकाशवाणी जयपुर और आकाशवाणी रोहतक से झलकी रुप मे प्रसारण हो चुका है. उन्ही नाटक़ों को समय ही नही मिलता नामक किताब में पिरों दिया है. किताब का प्रकाशन सन 2009 में जयपुर के श्याम प्रकाशन द्वारा किया गया. इसमे कुल 91 पेज हैं और 14 नाटक है. नाटक संग़्रह को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुदान मिला.
नाटको मे पति पत्नी की नोंक झोंक है… मम्मी बेटे का वार्तालाप है कही हाय तौबा है यो कही प्यार का एक्सीटेंट …
आईए एक छोटी सी झलक पढें … नाटक ( झमेला नाम का)
ट्रिन ट्रिन
श्री मलिक- हैलो…. यस…. आर्इ.एम. मलिक….. स्पीकिंग
अरे….. आप रोर्इये मत….. हाँ…..हाँ……हाँ….. मैं अख़बार देखता हूँ….. (पन्ने पलटने की आवाज़) हाँ सेठ जी, पेज तीन पर दूसरा कालम…….हाँ…..हाँ……. ये तो आपका ही साक्षात्कार छपा है……..लेकिन……. हाँ…….. आप रोर्इये मत……. मैं आपको पढ़ कर सुनाता हूँ……… सेठ दीन दयाल की फैक्टरी ने लाखों का मुनाफ़ा कमाया। इस अवसर पर उन्होंने पार्टी आयोजित की…… सेठ जी……. यह तो सारा ठीक…… हाँ……. हाँ…….. पढ़ रहा हूँ………. हाँ……. उन्होंने पार्टी आयोजित की और डुगडुगी के एडिटर को बताया कि हर सफल आदमी के पीछे किसी और औरत का हाथ होता है……………………….
मलिक- हे भगवान …… ये क्या कर दिया एडिटर ने……….. और शब्द ग़लती से छप गया। सेठ जी…. आप रोर्इये मत……… मैं ………..मैं माफ़ी माँगता हूँ…….. क्या…….. सेठानी जी से …… हाँ…….. हाँ……. मैं उनसे भी माफ़ी माँग लूँगा…….. कल……… कल…….. मुझे खेद है कालम में मैं आपकी खबर दुबारा दूँगा कि हर सफल आदमी के पीछे किसी औरत का हाथ होता है और सेठ जी की सफलता के पीछे उनकी पत्नी का विशेष योगदान है। सेठ जी प्लीज रोर्इये मत…..
(फ़ोन रखता है) (खुद से) ये सम्पादक का बच्चा तो डुगडुगी की डुगडुगी बजवा कर ही रहेगा……!!
(दरवाज़े की घंटी बजती है)
श्री मलिक- ओह…. अब कौन आया !! मालिक…… ज़रा देखना……..!
मालिक- साहब……..! मैं आटा गूंथ रहा हूँ………. आप ही देख लो
(दूर से आवाज़ आती है)
श्री मलिक- गुस्से में…….. हूँ……. मैं रसोर्इ में जाकर देखता हूँ……… ये हमेशा आटा ही गूंथता रहता है…… जब भी देखो…… आटा गूंथ रहा हूँ…….. अरे……. तू यहाँ बैठा चाय पी रहा है…….. और मुझे कह रहा ……. मैं आटा गूंथ रहा हूँ……..
मालिक- अब साहब…… आप भी तो कितनी बार खाना खा रहे होते हैं और फ़ोन आने पर कहते हैं कि कह दे, साहब बाथरूम में हैं…… तो मैंने भी…..
श्री मलिक- चल….. बस….. अब चुप कर……. मैं ही खोल देता हूँ दरवाज़ा…..
श्री मलिक- अरे…….. चाची आप……..!!
चाची- हाय-हाय…….. ग़जब हो गया……… तेरा भार्इ यानि मेरा बेटा…… ये देख….. टेलिग्राम आया है……… पढ़ तो इसे…….
श्री मलिक- ऐ मेरे वीर, मेरे प्रिय, सीमा तुम्हे बुला रही है। दोनों बाँहे फैलाएं तुम्हारा स्वागत करती है तुम कब आओगे…. लेकिन चाची अपूर्व तो छुट्टियों में यहीं आया हुआ है ना……
चाची- हाँ…..हाँ….. अब इसके लछन तो देख…… हम यहां इस जवान के लिए लड़की देख रहे हैं और ये किसी सीमा से (ज़ोर से रोती है) अ ह ह ह…
इतने में बेटा आता है………।
माँ……माँ…….. पिताजी ने बताया कि फ्रंट से पत्र आया है……. जरा दिखाओ तो….. और…… तुम…… रो क्यों रही हो !
चाची- अपूर्व…… ये सीमा कौन है……!
श्रीमती मलिक- चाची………पूछो…….पूछो…….. इसके साथ अपने लाड़ले मलिक बेटे से ये भी पूछो कि यह रचना कौन है जिसे लेकर पूरे दिन दफ़्तर में बैठे रहते हैं (जोर से रोती है)
नौकर- मालकिन, हम धनिया को लेने जा रहा हूँ।
श्रीमती मलिक – ठीक है, जल्दी आ जाना।
श्री मलिक- अरे…….आर.यू……..ये तुम्हे क्या हो गया। कम-से-कम मुझसे तो पूछ लेती……•
(इतने में पी.के. की पत्नी भी आ जाएगी)
चाची- अपूर्व…. तुमसे तो मैं बाद में बात करती हूँ। आर्इ.एम. ये……..ये…….. मैं क्या सुन रही हूँ…….. कौन है ये रचना।
श्रीमती मलिक- चाची पता है……… पता है…….. पी.के. बहके साहब का भी कोर्इ चक्कर है किसी कल्पना के साथ (फिर ज़ोर से रोएगी)
श्री मलिक- गुस्से से……… चुप……… चुप……… बिल्कुल चुप……..।
यहां बैठो…….. आर.यू…. मैं क्या काम करता हूँ।
श्रीमती मलिक- आप सम्पादक हैं………. (नाक से सांस लेकर)
संपादक का काम होता है लेख यानि आर्टिकल, रचना को पढ़ कर उसे प्रकाशित करना……. ये कोर्इ वैसी रचना नहीं है जो तुम समझ रहे हो….
चाची का बेटा- और माँ……..मैं आपको भी बता दूँ कि यह सीमा हमारे देश की सीमा है, जिसके लिए हम जान लुटा देते हैं………. ना कि कोर्इ मेरी गर्लफ्रैंड़…. सीमा….
श्रीमती मलिक- ठीक है……… पर पी.के. बहके साहब की वो लड़की……..
श्री मलिक- कौन लड़की…….. ओ…….. कल्पना…….. अरे बुद्धु, कल्पना……. यानि सोच, इमेजीनेशन……… समझी।
क्या ? ? हाँ……
श्रीमती मलिक- मुझे क्षमा करें अब मैं शक नहीं करूंगी और प्रेम के साथ रहूँगी।
श्री मलिक- क्या ? ? ”प्रेम अब तुम मुझे छोड़ कर किसी प्रेम के साथ रहोगी……..।
श्रीमती मलिक- ये वो वाला प्रेम नहीं बलिक प्यार वाला प्रेम है।
(सब हँसतें हैं)
(दरवाज़े की घंटी बजती है)
श्रीमती मलिक- ये लड़की कौन है…….
मालिक- जी……… ए ही है हमार धनिया……..
श्रीमती मलिक- क्या ? ? ……..
(दोबारा घंटी)
श्रीमती मलिक- मालिक…….. ज़रा देखना……. कौन आया है……..
मालिक- मालकिन…….. हम ज़रा धनिया को काम समझा रहा हूँ….. आप ही देख लो ना।
ऐसे की कुछ मजेदार नाटकों का संग्रह है … समय ही नही मिलता
ISBN 978-93-80018-11-9