70th Independence Day
70 वर्षीया आजादी और मेरे मन की बात
70th Independence Day .. आजादी 70 जरा याद करो कुर्बानी.
आज हम आजादी के 70 वें साल को धूमधाम से मना रहे हैं पर यकीन मानिए अबकी बार वो फीलिंग नही आ रही जो अक्सर आया करती थी. एक समय था जब देश भक्ति के गीत सुनकर मन भावुक हो उठता था आज वही भावुक मन बहुत बैचेन है कि हमारे देश को ये हो क्या गया है.
वैसे, मेरे विचार से, मौजूदा सरकार की एक उपलब्धि तो जबरदस्त है और वो ये है कि उसने महंगाई तो नही पर उसका मुद्दा जरुर दबा दिया… असल में, जात पात, दलित, गौमाता, गौरक्षक, कश्मीर, आतंक आदि के मुद्दे इतने मुखर हो गए है कि बेचारा आम आदमी का सर्वप्रिय महंगाई वाला मुद्दा तो खिसक कर पीछे ही चला गया है. अब देखिए न बिजली, पानी, बेरोजगारी, महिला असुरक्षा, लूटपाट आदि के मुद्दे तो जस के तस हैं उसका तो क्या ही बोलना पर, सच पूछिए तो मौजूदा हालात को देखते हुए , जात पात, दलित, गौमाता, गौरक्षक, कश्मीर, आतंक जैसे मुद्दे मद्दे नजर रखते हुए मन में एक दहशत सी बैठ गई है कि ये हो क्या रहा है किस दिशा में जा रहे हैं हम…
समाज को पीछे धकेलने में ना सिर्फ नेताओ का बल्कि न्यूज चैनल का बहुत बडा हाथ है. 24 घंटे खबर… खबर और उसमे भी कभी एक मिनट 100 खबरें कभी झटपट 20 ,कभी नॉन स्टाप खबर, कभी सुपर फास्ट, कभी ताल ठोक के कभी जागो इंडिय़ा तो कभी गुड मार्निग खबरें … बेशक दिखा वही रहें हैं जो समाज में हो रहा है पर अपने अपने अंदाज और टीआरपी को ख्याल में रखते हुए बिल्कुल संवेदनहीन व्यक्ति की तरह …!!!
चैनल जब किसी पार्टी विशेष का हो तो उसी पार्टी के गुणगान करते नही थकता. और उनके द्वारा गलत काम को भी सच और अच्छा दिखाने का काम खूबसूरती से करता है पर इससे नकारात्मता बढती है और चैनल अपना विश्वास खो देता है.
वहीं दूसरी ओर जो उत्पाद प्रायोजक होते हैं बेशक वो भ्रामक ही क्यो न हो उसे विज्ञापन रुप में बढा चढा कर बार बार दिखाया जाता है और दर्शक भ्रमित होता रहता है .. होता रहता है.. इतना ही नही विज्ञापनों के माध्यम से अपने अपने राज्यों के भी बहुत गुणग़ान गाए जाते हैं पर हकीकत क्या है ये खबरों के माध्यम से पता चल जाता है क्योकि दिन भर चैनल उसी प्रदेश की खबर चलाएगा बहस करवाएगा, मुद्दा उछालेगा और साथ ही साथ उसी प्रदेश का तरक्की करने वाला विज्ञापन भी बार बार दिखाएगा…ऐसा होता है क्या ??
दर्शक क्या समझे … प्रदेश की जर्र जर्र अव्यव्स्था को देख कर रोए या विज्ञापन देख कर खुश हो.
राज्यों के भ्रामक विज्ञापन क्या सिर्फ चुनावी रोटियां या सियासी रोटियां ही सेकनें के लिए हैं असलियत में…
तभी तो मैं कह रही हूं कि आज हम आजादी के 70 वें साल को धूमधाम से मना रहे हैं पर यकीन मानिए अबकी बार वो फीलिंग नही आ रही. एक समय था जब देश भक्ति के गीत सुनकर मन भावुक हो उठता था आज वही भावुक मन बहुत बैचेन है कि हमारे देश को ये हो क्या गया है क्या बस देश में राजनीति ही सर्वोपरि हो कर रह गई है.
हर कोई लडने मरने, लूटपाट करने, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड में है रही सही कसर नेताओं की बदजुबानी पूरी कर रही है..
ऐसे में फिर कुछ अच्छा खोज रही हूं बेशक, 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के आसपास की छुट्टियां या महा सेल ऑफर या स्वतंत्रता दिवस पर कूपन लाओ और मुफ्त उपहार या छूट पाओ ऑफर आकर्षित तो कर रही है पर लाख कोशिशों के बाद खुशी नही आ पा रही..
वाकई आजादी के 70 साल या 70 वर्षीया आजादी जो भी कहें कह सकते हैं पर जरा याद करनी चाहिए उन लोगो की कुर्बानी जिन्होनें खुद को मिटा कर देश तो स्वतंत्र करवा दिया पर आज हम उसे सहेज कर रखने में नाकामयाब हो रहे हैं
अब तो बस एक ही उपाय है कि सोच समझ कर अपने मत का उपयोग करें और ऐसे नेता चुने जो वाकई देश हित की सोचें… !! देश हमारा है इसे हम सभी को मिल जुल कर आगे बढाना है.
आज के लिए बस इतना ही
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं के साथ…..
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