थैलेसीमिया की मरीज और उनकी सफलता की कहानी
Blood donation, रक्तदान , रक्तदाता या स्वैच्छिक रक्तदान की जब भी करते हैं तो thalassemia का जिक्र जरुर आता है. थैलेसीमिया और सफलता की कहानी भी जरुर पढनी चाहिए कि कैसे वो इससे जूझ रहे हैं.
आखिर क्या है thalassemia
थैलेसीमिया और सफलता की कहानी जानने से पहले जानना जरुरी है कि आखिर है क्या थैलेसीमिया… थैलेसीमिया एक आनुवशिक रक्त विकार है। इस रोग में रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य स्तर से कम हो जाता है। शरीर में ऑक्सीजन का सुचारु रूप से सचार करने के लिए हीमोग्लोबिन की जरूरत होती है। लाल रक्त कोशिकाओं की विकृति रक्त की लाल कोशिकाओं में विकृति आने के कारण थैलेसीमिया होता है।
मुम्बई में एक कार्यक्रम के दौरान 34 वर्ष की संगीता हरिदास वधवा से मिलना हुआ। उनके जोश और उत्साह को देख कर मन हुआ कि उनसे बात की जाए कि अखिर उनमे इतनी एनर्जी कहाँ से आई। उनसे बात करते अचानक मैं चौक गई । असल में, वो थैलीसीमिया मेजर की मरीज हैं।
मैने उनकी इस जिंदादिली को सलाम किया और उनके बारे में और बाते जानने की कोशिश की। संगीता ने बताया कि वैसे वो एक भाई और दो बहने हैं पर दो साल पहले यानि 27 साल की उम्र में उनकी बहन पायल की थैलीसीमिया की वजह से मृत्यु हो गई थी । विस्तार से उन्होने बताया कि उनके शरीर में आयरन की मात्रा बहुत बढ गई जिससे दिल का दौरा पडा और …………।। अपने दिल को मजबूत करते हुए उन्होने बताया कि यह उन्ही का सपना था कि थैलीसीमिया के मरीजो को लेकर एक समूह या एनजीओ बनाया जाए और देश भर में इसके प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाए और आज यहां इस कार्यक्रम मे अपनी बात रखने वो यहां अपने दोस्तों के साथ आई हुई है।
अपने बारे मे वो बता रही थी कि जब वो पाँच साल की थी तब उन्हे और उनके परिवार को पता चला कि उन्हे थैलीसीमिया है । तभी अचानक मैं पूछ बैठी कि ये तो जन्म के चार पांच महीने मे ही पता चल जाता है इस पर संगीत ने बताया कि तब यानि आज से 30 साल पहले ना तो इतनी जानकारी थी और ना ही टेस्ट इत्यादि की कोई सुविधा. 5 साल की उम्र में पता चला और डाक्टरों ने यह कह दिया कि वो बस 15 साल तक ही जिंदा रहेगी । खैर , मन को मजबूत करके वो पढ़ाई मे लगी रही हालांकि हर 15-20 दिन के अंतराल पर उन्हे खून चढ़ाया जाता था और समय ऐसे ही बीत रहा था।
जब 12वी क्लास पास कर ली और आगे पढाई का मन हुआ तो लोगो ने कहा कि क्या करेगी पढ़ कर कोई फायदा नही होगा शायद दूसरे शब्दो मे यही बताना चाहते थे कि उसका अंत बहुत नजदीक है । वो भी लोगों की बातों में आ गई और आगे की पढाई का विचार छोड कर अलग अलग जैसे स्पोकन इंगलिश, ब्यूटिशियन , कम्प्यूटर जैसे कोर्स में दाखिला ले लिया और कोर्स पूरा होने के बाद पिछडे वर्ग की महिलाओं और गरीब लोगों को अपने घर पर ही उसकी ट्रैनिंग देने लगी। उनके मम्मी- पापा का बहुत सहयोग मिलता रहा जिससे उनका मनोबल कभी नही गिरा ।
इस बीच दस साल बीत गए पर आगे पढ़ाई करने की इच्छा कम नही हुई फिर अपने मम्मी -पापा के सहयोग से उन्होने आगे दाखिला ले लिया और पढाई जारी रखी । आज वो थैलीसीमिया अभियान से जुडी जगह -जगह जाकर लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने में प्रयासरत है।
एक सर्वे के अनुसार संगीत ने बताया कि देश की जनसख्या के कुल मिलाकर 4 प्रतिशत लोग थैलीसीमिया से ग्रस्ति हैं और सही मायनो मे देखा जाए तो 1 प्रतिशत भी स्वैच्छिक रक्तदाता नही मिलते । सही रक्त ना मिलने से अनेक बीमारियां लग जाती है और इसी वजह से हम थैलीसीमिया के मरीज समय से पहले ही दम तोड देते हैं इसलिए रक्तदान के बारे मे भी लोगों को जागरूकता होनी बहुत जरूरी है। यह उनके भविष्य के लिए भी अच्छा है और उनके दिए गए रक्त से चार लोगों की जान बचेगी वो तो उससे भी ज्यादा पुण्य का काम है ।
यकीनन उनकी बात बहुत सही है और थैलीसीमिया के मरीज होने के नाते वो जितनी सही ढंग से अपनी बात कह पा रही थी वो सीधा दिल में उतर रही थी । उन्होने बताया कि साईप्रस जैसे देश में जागरूकता के चलते थैलीसीमिया का स्तर शून्य पा आ गया है तो हम अपने देश मे यह अभियान छेड़ कर इसे शून्य के स्तर तक क्यो नही ला सकते।
सच पूछों तो वो मुझे किसी देवदूत के कम नही लग रही थी जो इतनी परेशानियों और दुखों के बाद भी बस एक ही मिशन मे जुटी हुई हैं। इसलिए वो यूथ थैलीसीमिया एलाईस के साथ जुडी उसकी स्थापना की और बस एक ही मिशन लेकर चली कि Face, Fight & Finish.. लोग थैलीसीमिया को झेल रहे है इसका सामना कर रहे है इससे लड़ रहे है। पर इसे खत्म क्यो नही करने के लिए कदम उठा रहे जबकि जागरूकता लाने से यह हमेशा के लिए खत्म हो सकता है।
एक समय ऐसा था जब संगीता जिंदगी से हार गई थी पर उनके माता पिता ने हौंसला बढाया और आह संगीता अपने जैसे मरीजो का जो जिंदगी से हिम्मत हार गया है उन को परामर्श देकर उनमे नई रोशनी का संचार करती दिखाई देती है ।
मै कुछ पूछने को ही हुई थी। कि इतने में उस कार्यक्रम में उनकी स्पीच का समय हो गया और वो मन मे एक नया जोश भर कर सैकड़ो लोगों के सामने अपने विचार रखने के लिए स्टेज की तरफ चल दी और मै भी उनको शुभकामनाए देती हुई आगे बढ गई ।
इस छोटी सी मुकालात से एक बहुत बड़ी बात सीखने को मिली कि कभी भी हिम्मत नही हारनी चाहिए। दुःखों तकलीफो का सामना मजबूत होकर करेगें तो वे भी ज्यादा देर तक हमारे सामने टिक नही पाएगें। जैसे भी किसी ने सच कहा है कि हमे तक तक कोई नही हरा सकता जब तक हम अपने आप से ना हार जाए।
थैलीसीमिया जड से खत्म हो सकता है बस जागरुकता होनी चाहिए…
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