Monica Gupta

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September 11, 2017 By Monica Gupta 1 Comment

जब आवे संतोष धन

जब आवे संतोष धन –  jab aave santosh dhan – जब आवे संतोष धन – जीवन जितना सादा रहेगा तनाव उतना आधा रहेगा… और सादा रहने के लिए हमें क्या करना पडेगा …संतोष रखना पडेगा .. वो कहते भी हैं ना कि जब आवे संतोष धन  !! चलिए आज जानते हैं कि क्या हम संतोषी हैं या नही  कल्पना कीजिए कि आप  बहुत तेज धूप में जा रहे हैं संतोष धन के आगे सारे धन धूल के समान हो जाते हैं. कल्पना कीजिए कि आप  बहुत तेज धूप में जा रहे हैं और आपको एक छ्त मिलती है … तो आप उस छत का सहारा ले लेते हैं.. अब आपको दो विचार आते हैं

जब आवे संतोष धन

एक वाह.. !!  छ्त मिल गई आप कुछ देर खडे रहते हैं फिर पर अगले ही पल आपके मन में विचार आता है कि काश यहां पंखा लगा होता … अचानक वहां पंखा आ जाता है फिर कुछ पल बाद मन में विचार आता है काश यहा कूलर लगा होता … लीजिए कूलर भी हाजिर .. फिर विचार आता है कि काश ए सी लगा होता तो और आराम मिल जाता … चलिए ए सी भी लग गया फिर विचार आता है कि काश गर्मा गर्म चाय होती तो … फिर विचार  आता है कि काश खाना भी होता तो … यानि विचार आए चले जाते हैं वही …

दूसरी ओर बस यही मन में आता है धन्यवाद भगवान !! तेज धूप में आपने कम से कम छत तो दी … किस सोच के हैं आप अपने आपको पहचानिए … हमारी सोच होती तो है कि हमें संतुष्टि नही होती जबकि फायदा संतोष रखने में ही होता है …

 

 

जब आवे संतोष धन

इसी पर एक कहानी भी पढी थी नेट पर..  एक राजा को अपने दरबार के लिए राजपुरुष की जरुरत थी जो बुद्धिमान हो और समाज के कार्य में अपना योगदान दे सके. इसके लिए वो एक प्रतियोगिता करवाते हैं उसमे क्या करना था कि उन्होने अपने बाग में बहुत में बहुत सारी कीमती चीजे रखवा दी … और बोले कि जो भी अपने हिसाब से सबसे महंगी चीज लेकर राजा के सामने आएगा … उसे  राजपुरूष के लिए consider किया जाएगा। प्रतियोगिता आरम्भ होती है…

दूर-दूर से इस बार लाखों की तादात में प्रतियोगी आए..

सभी बाग में सबसे  महंगी वस्तु तलाशने में लग गए…  कोई हीरे-जवाहरात लाते, कोई सोना तो  कई लोग books, तो कोई भगवान की मूर्ति, और जो बहुत गरीब थे वे रोटी, क्योंकि उनके लिए वही सबसे अमूल्य वस्तु थी

सब अपनी क्षमता के अनुसार मूल्य को सबसे ऊपर आंकते हुए राजा के सामने उसे प्रस्तुत करने में लगे हुए थे..

तभी एक youth राजा के सामने खाली हाथ उपस्थित हुआ

राजा ने सबसे प्रश्न करने के उपरान्त उस youth से प्रश्न किया- अरे!  क्या तुम्हें बाग में कोई भी वस्तु अमूल्य नजर नहीं आई? तुम खाली हाथ कैसे आये हो?

राजा जी  मैं खाली हाथ कहाँ आया हूँ, मैं तो सबसे अमूल्य धन  लाया हूँ

राजा ने पूछा… तुम क्या लाये हो… मैं संतोष लेकर आया हूँ राजा जी उसने कहा

क्या संतोष ??

जी राजा जी ! इस बाग में बहुत सारी अमूल्य वस्तुएं हैं पर वे सभी इंसान को क्षण भर के लिए सुख  प्रदान करती हैं  इन वस्तुओं को प्राप्त कर लेने के बाद मनुष्य कुछ और ज्यादा पाने की इच्छा मन में उत्पन्न कर लेता है अर्थात इन सबको हासिल करने के बाद इंसान को ख़ुशी तो होगी लेकिन वह क्षण भर के लिए ही होगी… लेकिन जिसके पास संतोष का धन है, संतोष के हीरे-जवाहरात हैं वही इंसान अपनी असल जिंदगी में सच्चे सुख की अनुभूति और अपने सभी भौतिक इच्छाओं पर काबू कर सकेगा… youth ने शांत स्वर में उत्तर देते हुए कहा

राजा बहुत प्रभावित हुए और सैकडोंं  लोगों में चुना गया  राजपुरूष के लिए सम्मानित किया गया

इसलिए सबसे बेहतर संतोष धन है … वैसे  क्या सोचा आपने…

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Comments

  1. Ramachugh’ says

    November 23, 2018 at 7:12 pm

    Very. Nice. Story

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