Monica Gupta

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January 6, 2018 By Monica Gupta Leave a Comment

Sakat Chauth Katha – कैसे करें सकट चौथ – Sakat Chauth Vrat Katha – सकट चौथ व्रत की कथा

Sakat Chauth Katha – कैसे करें सकट चौथ – Sakat Chauth Vrat Katha – सकट चौथ व्रत की कथा – सकट चौथ का व्रत माघ माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन किया जाता है। इसे ‘तिल चौथ’ या ‘माही चौथ’ के नाम से भी जाना जाता है।

Sakat Chauth Katha – कैसे करें सकट चौथ – Sakat Chauth Vrat Katha – सकट चौथ व्रत की कथा

‘सकट’ शब्द संकट से बना है। गणेश जी ने इस दिन देवताओं की मदद करके उनका संकट दूर किया था। तब शिव ने प्रसन्न होकर गणेश को आशीर्वाद देकर कहा कि आज के दिन को लोग संकट मोचन के रूप में मनाएंगे। जो भी इस दिन व्रत करेगा, उसके सब संकट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। ‘वक्रतुण्डी चतुर्थी’, ‘माही चौथ’ अथवा ‘तिलकुटा चौथ’ सकट चौथ के ही अन्य नाम हैं

इस दिन संकट हरण गणेश तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।

इस दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। व्रती महिलाएं शाम को गणेश पूजन और चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही वह प्रसाद के साथ भोजन ग्रहण करती हैं। माना जाता है कि महाभारत काल में श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने सबसे पहले इस व्रत को रखा था। तबसे अब तक महिलाएं अपने पुत्र की कुशलता के लिए इस व्रत को रखती हैं।

इस व्रत की अनेक कहानियों में से एक कहानी कुछ इस प्रकार है..

एक बार विपदा मे  पडे देवता भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान के पास स्वामी कार्तिकेय तथा गणेश भी विराजमान थे। शिव जी ने दोनों बालकों से पूछा- ‘तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे?’ तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए खुद को देव रक्षा योग्य सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिव ने गणेश की इच्छा जाननी चाही।

तब गणेश ने विनम्रता से कहा- ‘पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।’ यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- ‘जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।’ यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेश  ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है, इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए।परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा- ‘माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं, इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं।’

गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकर जी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की और  आशीर्वाद दिया-

‘त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।’ तब गणेश ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया।

यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप यानि  (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण खुश हुए और भगवन को  प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।

सकट चौथ का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है।

एक अन्य कथा कुछ इस प्रकार है

पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा यानि भट्टी लगाई पर आंवा पका ही नहीं और बर्तन कच्चे रह गए। इसी तरह लगातार नुकसान होते देख वह राजा के पास गया। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राज पंडित ने कहा की हर बार आंवा लगते समय बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा ।

राजा का आदेश हो गया । बलि आरम्भ हुई । जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चो में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता ।

इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बूढी अम्मा  के लड़के की बारी आयी । बूढी अम्मा के लिए वही जीवन का सहारा था ।बेटे को भेजे जाने के गम में अम्मा बहुत दुखी हो गई वो भगवान गणेश की भक्त थी जब बेटा जाने लगा तो  अम्मा ने उसे सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा “भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना । ” बालक को आंवा में बिठा दिया गया और अम्मा  मन ही मन पूजा करने लगी ।

अगली सुबह कुम्हार ने देखा तो आंवा पका हुआ था और उस बालक के साथ साथ अन्य बालक भी सुरक्षित बाहर खडे हुए थे .. कुम्हार ये सब देखकर हैरान रह गया और उसने ये सारी बात राजा को बताई ….राजा ने बालक की माता को बुलाकर उनका पुत्र सौंपा और इस चमत्कार का कारण पूछा तो अम्मा ने बताया कि वो सकट चौथ के दिन भगवान गणेश का व्रत और पूजन करती थी। इस दिन के बाद से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है.

सकट चौथ का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है। मान्यता हैं कि विघ्नहर्ता गणेश जी इस व्रत को करने वाली माताओं के संतानों के सभी दुःख दर्द हर लेते हैं और उन्हे सफलता के नये शिखर पर पहुंचाते हैं।

हे विध्नहर्ता गणेश सभी की रक्षा करना और अपना आशीर्वाद सदा बनाए रखना

सकट चौथ व्रत की कथा

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