Monica Gupta

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March 25, 2013 By Monica Gupta Leave a Comment

Success story of Blood Donor

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सफलता की कहानी … !!!

 Success story of Blood Donor

वो दिन रात रक्त दान के प्रति लोगो को जागरुक करने की मुहिम मे जुटे थे पर लोगो की भ्रातियां, रक्तदान के प्रति नकारात्मक सोच पीछा ही  नही सोच रही थी. उन्ही दिनो की बात है जब वो एक बार कालिज के बच्चो को रक्तदान के लिए प्रेरित करके लौटे ही थे कि एक बच्चे की मम्मी का फोन  आ गया कि मेरे बच्चे को छोड दो.  बेशक आप एक हजार रुपए ले लो पर मेरे बच्चे को रक्तदान के लिए बिल्कुल मत कहना.

वही एक दूसरे उदाहरण में जब वो घर घर जाकर लोगो को रक्तदान के लिए लोगो को जागरुक कर रहे थे तब एक व्यक्ति हाथ जोड कर बोला कि मैं बाल बच्चेदार  आदमी हूं खून दान करके अपनी जिंदगी खतरे मे नही डाल सकता. एक अन्य उदाहरण मे तो और भी आश्चर्यजनक बात हुई. सुबह सवेरे एक प्रोफेसर साहब के पास फोन आया कि रक्तदान केंद्र मे खून की जरुरत है. उन्होने अपनी पत्नी को बताया कि वो खून दान कर के अभी वापिस आते हैं. जब तक वो रक्तदान केंद्र पहुंचे  तब तक एक अन्य व्यक्ति रक्तदान कर चुका था इसलिए प्रोफेसर साहब कुछ देर रुकने के बाद चाय ठंडा पी कर जब घर वापिस लौटे तब पत्नी ने उन्हे देखते ही कहा कि ओह … आप कितने कमजोर लग रहे हो!!! इस पर उन्होने मुस्कुराते हुए बताया कि खून दान तो उन्होने किया ही नही. यह सुनकर उनकी पत्नी बहुत झेप सी गई.

 

जरा सोचिए कि ऐसे वातारवरण मे लोगो मे जागरुकता पैदा  करना  कितना कठिन काम रहा होगा पर उनके भीतर  लग्न, जोश, जनून ने ऐसे मुश्किल काम को सम्भव कर दिखाया. भले आज वो हमारे बीच नही है सन 2011 की 20 अगस्त को वो पंच तत्व मे विलीन हो गए पर रक्त दान के क्षेत्र मे जो मिसाल कायम कर गए वो एक मील का पत्थर बना खडा सभी का पथ प्रदर्शक कर रहा हैं.

 

रक्तदान के क्षेत्र मे अपनी एक अलग ही पहचान बनाने वाली उस शख्सियत का नाम है स्वर्गीय श्री हजारी लाल बंसल. 22 सितम्बर 1935 को भटिंडा के कटार सिह वाला मे जन्मे और सन 1962 मे हमेशा के लिए रामपुरा फूल मे बस गए. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक जिंदगी ने एक ऐसा मोड लिया कि उनकी सोचने की दिशा ही बदल गई या ये भी कह सकते हैं कि जिंदगी को  एक नया मकसद मिल गया.

 

बात सन 1975 की है. उनकी बिटिया रजनी  की अचानक तबियत खराब हो गई  और उनके शरीर मे बस दो ग्राम खून ही रह गया. वो पहली बार था जब उन्होने  रक्तदान किया. हालाकि उनके एक अन्य रिश्तेदार ने भी रक्तदान किया पर खून और भी चाहिए था. वो खून के लिए इधर उधर बहुत भटके, घूमे  फिरे और खून नही मिल पाया फिर पीजीआई चंडीगढ ले जाया गया और ईश्वर का शुक्र रहा रहा कि उनकी बिटिया की जान बच गई और वो कुछ समय बाद सकुशल घर लौट आई. पर इस धटना ने हजारी लाल जी को बुरी तरह से झंझोर दिया और उन्होने निश्चय किया कि चाहे कुछ हो जाए रक्तदान की वो एक मुहिम चलाएगे. तब उन्होने अपने  जीवन को एक नई दिशा दी और उसी दिन से वो रक्तदान की मुहिम मे जुट गए. फिर झेलने पडी ढेरो नकारात्मकता और लोगो का रक्तदान के प्रति विपरीत रवैया. पर बस  एक अजीब सा जनून था जोकि उनके कमजोर नेत्र रोग के सामने भी कमजोर नही पडा. असल मे, जब वो दसवी कक्षा मे थे. तभी उन्हे नेत्र रोग हो गया था जिसकी वजह से लगातार उनकी नेत्र ज्योति क्षीण होती जा रही थी. दसवी कक्षा मे वो मात्र 50% ही देख पाते थे. धीरे धीरे यह ला ईलाज रोग बढता ही जा रहा था और जिंदगी के आखिरी 15 सालो मे वो पूरी तरह से नेत्र विहीन हो चुके थे और दूसरो की मदद के बिना कुछ् नही कर पाते थे. पर यह बात भी माननी पडेगी कि भले ही खुद वो बिना नेत्र ज्योति के रहे पर लोगो के दिलो मे रक्तदान के प्रति रक्तदान की ऐसी आलौकिक रोशनी जगा गए कि वो आज भी सभी का मार्ग प्रशस्त कर रही है.  Success story of Blood Donor

उनके सपुत्र श्री सुनील बंसल ने सारी जानकारी देते हुए बताया कि उनके पिता जी के बारे मे कुछ भी कहना सूरज को दीया दिखाने के बराबर है. पापा का जोश और जनून था जब हमारे गांव रामपुरा फूल मे 1 अक्टूबर 1978 को पहली बार रक्तदान कैम्प लगा. जिसमे पहली बार 46 रक्तदाताओ ने रक्तदान किया. उनके पिता ब्लड डोनर फांउडेशन के संस्थापक भी रहे. जब भी वो रक्तदान पर बोलते सभी चुप होकर बहुत गम्भीरता से उनकी बात सुनते और रक्तदान के प्रति प्रेरित होते. उनके पिता को सन 84 मे रेड क्रास सोसाईटी ने और 1996 तथा 2008 मे इंडियन सोसाईटी आफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन ने भी विशेष रुप से सम्मानित किया था. सुनील जी ने बहुत गर्व से बताया कि आज उनके गांव रामपुरा फूल मे शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदाता हैं. दूर दराज जानी मानी संस्थाए यहां रक्तदान कैम्प लगाती है और खून की वजह से कोई व्यक्ति की जान जाए ऐसा कभी नही हुआ. आज वो स्वय भी रक्तदान के प्रति लोगो को प्रेरित करने मे दिन रात जुटे हैं और खुद 34 बार रक्तदान भी कर चुके है.

वाकई मे , हजारी लाल जी के बारे मे जान कर बहुत खुशी हुई. इसी दौरान रजनी जी जोकि इस मुहिम  का कारण बनी. उनसे भी बात की. रजनी जी ने बताया कि हर कोई चाहता है कि वो बीमार ना पडे पर मेरा बीमार पडना मेरे पापा की जिंदगी मे एक नई क्रांति ले आएगा यह कभी नही सोचा था. खुद नेत्र ज्योति ना के बराबर होते हुए भी लोगो को रक्तदान के क्षेत्र मे राह दिखाई. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे पिता की बेटी हूं. उनके जज्बे के आगे मैं नत मस्तक हूं.  

यकीनन श्री हजारी लाल बंसल जी का नाम रक्तदान के क्षेत्र मे अग्रणी रहेगा. आईएसबीटी आई परिवार की और से उन्हे सादर श्रधांजलि!!!Success story of Blood Donor!!!

 

 

मोनिका गुप्ता

सिरसा


हरियाणा

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