Monica Gupta

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June 16, 2015 By Monica Gupta

जवाब लाजवाब

जवाब लाजवाब

उफ़………….. इनकी हाजि़र जवाबी

हाजिरजवाबी अनूठी कला है, जब इसमें हास्य व्यंग्य का मिश्रण हो जाए तो मजा दुगुना हो जाता है और अगर यह हास्य व्यंग्य विश्व प्रसिद्ध हस्तियों का हो तो कहना ही क्या……..।
इस लेख में हम कुछ विश्व प्रसिद्ध हस्तियों के चुटीले अंदाजो से आपको रूबरू करवा रहे हैं।

सरोजनी नायडू
भारत कोकिला सरोजनी नायडू को कौन नही जानता। एक प्रखर राजनैतिक कार्यकर्ता, संवेदनशील कवयित्री और देश की स्वतंत्रता ही जिनका उददेश्य था। वो समय-समय पर हल्की-फुल्की टिप्पणियाँ करने से बाज नही आती थी। एक बार वो किसी सम्मेलन में गर्इ। वहाँ फोटो खीचने के लिए फोटोग्राफरों की लार्इन लग गर्इ। तब उन्होनें उनसे कहा, चलो भर्इ, जल्दी करो। मैं सब ओर से एक जैसी ही हूँ, मोटी और गोल-मटोल।

मार्च 1947 में जब वो प्रथम एशिआर्इ संबंध सम्मेलन के प्रतिनिधियों की बैठक को संबोधित करने के लिए आमंत्रित की गर्इ तो हाल खचाखच भरा हुआ था। वो उठी। भीड़ का जायजा लिया और बोली कि इस अपार भीड़ को देखकर मैं इतनी भावुक हो उठी हूँ कि मेरे मुहँ से आवाज ही नही निकल पा रही है। किसी महिला के मुहँ से आवाज ना निकलना कोर्इ मामूली बात नही है।

एक बार एक राजनैतिक कार्य के सिलसिले में गोपाल कृष्ण खोखले श्यामवर्णी नायडू से मिले और सोचा कि उनके रंग पर उन्हें खिजाया जाए। अत: उन्होने मुस्कुराते हुए चुटकी ली,  क्या आप मृत्यु के इतनी निकट पहुँच गर्इ हैं कि उसकी परछार्इयों ने आपकी ऐसी रंगत बना दी है। सरोजनी उनका मतलब समझ गर्इ। मगर वह बिल्कुल नही झिझकी और हँस कर बोली,  नहीं मैं जीवन के इतने निकट आ गर्इ हूँ कि उसकी तपिश ने मुझे झुलसा दिया है।

विनोबा भावे
विनोबा भावे ने स्वयं को निर्धनों और शोषितो से जोड़े रखा। उन्होनें भूदान आंदोलन के जरिए सामाजिक सुधारो को नर्इ दिशा दी। सौम्य और मृदुभाषी विनोबा अपनी नपी तुली टिप्पणियों की बदौलत स्वयं को विवादो से दूर ही रखते थे। एक बार कुछ पत्रकार विनोबा जी का साक्षात्कार लेने उनके आश्रम गए। विनोबा जी ने उनका सत्कार किया और पत्रकारों के प्रश्न का जवाब  देने के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने माँग रखी कि पहला प्रश्न वो पूछेंंगें। पत्रकार सोचने लगे कि आखिर विनोबा जी के मन में क्या है। तब विनोबा ने उनसे पूछा कि वो किस भाषा में अपने दिए गए प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा करतें हैं। पत्रकार जानते थे कि आचार्य भाषाविद हैं। उन्होनें निश्चय किया कि भाषा के चयन का निर्णय वे खुद ही लें। पर सभी पत्रकार जड़वत रह गये जब आचार्य ने उत्तर दिया कि उनकी नजर में सर्वोतम भाषा मौन भाषा है। और शांत भाव से आश्रम में टहलने लगे।

सर सी.वी. रमन

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सर सी.वी. रमन को कौन नही जानता। उन्होनें प्रकाश के संगठन और व्यवहार पर नया सिद्धांत खोज निकाला, जिसे रमण प्रभाव के नाम से जाना गया। इस विशिष्ट खोज की 25वीं जयंती के अवसर पर वो पैरिस गए हुए थे। वहाँ कुछ फ्रांसीसी वैज्ञानिको ने इस मौके पर भव्य समारोह का आयोजन किया। वर्दी में सजे-धजे बैरे अतिथियों को मनपसंद पेय पेश कर रहे थे। एक बैरा रमण के पास आया और उसने शैम्पेन भरे गिलासो की ट्रे उन की ओर बढ़ा दी लेकिन रमण ने उसे नही लिया। बार-बार उन्होनें विनम्रता से इंकार किया कि वह पीते नही है लेकिन फिर सोचने लगे कि उन्हें इस इंकार का कोर्इ कारण अवश्य बताना होगा। इसी उधेड़बुन में लगे थे कि जल्दी ही उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिल गया। उनके पास खड़ी एक महिला ने अपने साथी को बताया कि यह प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर सी.वी. रमण हैं। यह रमण प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। बस, यह बात सुनकर जो दोस्त उन्हें पीने के लिए बार-बार आग्रह कर रहे थे, वह उनकी ओर मुडे़ और बहुत सौम्यता से बोले,  मित्रों, आपने अल्कोहल पर रमण प्रभाव अवश्य देखा होगा पर मैं आपको रमण पर अल्कोहल प्रभाव देखने का अवसर कभी नही दूँगा। उनके इस विनोदपूर्ण जवाब  से लोगों में हँसी के फव्वारे फूट गये।

अल्बर्ट आइंस्टीन

 

albert einstein photo

Photo by Smithsonian Institution

अल्बर्ट आइंस्टीन भौतिकी के क्षेत्र में हुए सभी आधुनिक विकासों के श्रेय के हकदार हैं। अपने बारे में उन्होंनें कुछ पत्रकारों और फोटोग्राफरों के बारे में कहा कि वो अजायब घर में रखने लायक वस्तु हैं। वह मुख्यधारा से छिटक कर बाहर गिर गए हैं। फोटोग्राफरों द्वारा विभिन्न मुद्राओं में तस्वीरें खींचने के बाद उनसे उनके व्यवसाय के बारे में पूछा गया तो उन्होंनें तपाक से जवाब दिया कि वो तो माड़ल का काम ही कर रहें हैं, तरह-तरह के पोज़ में फोटो खिचवा कर। उनसे जब उनकी खोज के बारे में जनप्रतिक्रिया की राय पूछी गयी तो उन्होंनें कहा कि अगर मेरा सिद्धांत सफल रहा तो जर्मन दावा करेंगें कि मैं एक जर्मन हूँ। और सिवस कहेंगें कि मैं एक सिवस हूँ। किन्तु यदि असफल रहा तो सिवस कहेंगें कि मैं जर्मन हूँ और जर्मन कहेंगें कि मैं एक यहूदी हूँ।
एक बार आइंस्टीन के बेटे ने उनसे पूछा कि वो इतने प्रसिद्ध कैसे हैं। इस पर उन्होंनें कहा कि  बेटे, एक बार एक अंधा कीड़ा फुटबाल पर चलने कि कोशिश कर रहा था उसे यह नही मालूम था कि वो गोल है। मगर इस मामले में मैं भाग्यशाली निकला, यह बात मेरे ध्यान में आ गर्इ।
एक बार आइंस्टीन ने फोटोग्राफर ए.डब्लयू रिचडऱ्स से मजाक में कहा  मुझे अपने चित्रों से नफरत है। यदि इनकी वजह न होती…….. फिर अपनी मूँछों पर हाथ फेरते हुए बोले कि इनकी वजह न होती तो वो………. एक औरत नज़र आते।

जवाब लाजवाब

अलैक्जैंड़र फ्लेमिंग
पेनिसलिन की खोज के लिए प्रसिद्ध अलैक्जैंड़र फ्लेमिंग मितभाषी व्यकित थे। एक बार वो बंदरगाह के निकट होटल में ठहरे जहाज को पानी में तैरते देख रहे थे। उन्हें वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन भूख तेज़ लगने के कारण वो भोजनकक्ष की ओर चल पड़े। तभी सामने से दो पत्रकार आ रहे थे। उन्होंनें अदब से नमस्ते करके यह पूछना चाहा कि जब एक महान वैज्ञानिक नाश्ते के लिए जा रहा हो तो उसके मन में क्या विचार उमड़ते हैं। फ्लेमिंग ने भी अपनी मुद्रा गम्भीर कर ली और बोले कि विचार तो बहुत उमड़ते हैं। पत्रकार भी अपने पैन लेकर तैयार हो गए कि शायद कोर्इ ऐसी बात सुनने को मिले जो कल की सुर्खियाँ बन सकें। फ्लेमिंग ने कहा कि वो वाकर्इ में इस समय विशेष बात ही सोच रहा हूँ। यह खबर आपके लिए किसी वरदान से कम नही होगी……..। लेकिन जल्दी ही उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उत्तर मिला, मैं एक विशेष बात सोच रहा हूँ कि मैं नाश्ते में कितने अंडे़ खाँऊ……… एक या …… दो………

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