Monica Gupta

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June 18, 2015 By Monica Gupta

वो तीस दिन

वो तीस दिन

वो तीस दिन ” मेरा पहला बाल उपन्यास और अब तक की सातवीं प्रकाशित किताब है. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया की ओर से प्रकाशित बाल उपन्यास सन 2014 में प्रकाशित हुआ.

बाल उपन्यास की मुख्य पात्रा है कक्षा दस ने पढने वाली मणि. जोकि किसी भी बच्चे की तरह बेहद शरारती चुलबुली है पर कक्षा दस की परीक्षा खत्म होने के बाद नतीजा आने से पहले तीस दिनों में ऐसा क्या होता है कि मणि के एक जबरदस्त बदलाव आ जाता है…

कहानी बेहद रोचक, मनोरंजक और शिक्षाप्रद है.

इसकी एक छोटी सी झलक ….

वो तीस दिन
मै हूँ मणि। आज मेरी दसवीं क्लास की बोर्ड़ परीक्षा का आखिरी दिन है। हे भगवान! कितनी टेन्शन थी ना………। आज पता है मैं घर जाकर सबसे पहले क्या करूंगी। शर्त लगा लो आप लोग बता ही नहीं सकते। मैं सबसे पहले टेलिविज़न चलाऊंगी और दो महीने से जो पिक्चरें मैंने नहीं देखी वो देखूंगी और अपने मोबार्इल पर आए मैसेज पढूंगी। पता है पिछले दो महीनों से मम्मी-पापा ने मुझे कुछ भी नहीं करने दिया बस…………..पढ़ार्इ………..पढ़ार्इ………पढ़ार्इ……… इस करके………. आज मैं ढे़र सारी मनमानी करने वाली हूं।
उफ……….शुक्र है………. आज आखिरी पेपर उम्मीद के अनुसार ठीक ही हो गया अब तो जल्दी थी घर पहुंचने की। मैं रास्ते में जा रही थी कि मेरे सामने वाली सड़क पर एक स्मार्ट सी युवती, छोटे-छोटे बालों वाली, आंखों में धूप का चश्मा लगाए, बैग कन्धे पर लटकाए सड़क पार कर रही थी कि शायद उसका पांव फिसल गया या पता नहीं………..क्या हुआ………पर वो बहुत बुरी तरह से गिर गर्इ। पता नहीं उसे देखकर मेरी बहुत बुरी तरह हंसी निकल गर्इ और मैं ठहाका लगाती ताली बजाकर हंसती हुर्इ आगे बढ़ी। उधर वो तुरन्त उठी मेरी तरफ देखा फिर अपने कपड़ों को झाड़ा और ऐसे चल दी मानो कुछ हुआ ही ना हो। मैं हंसती हुर्इ आगे बढ़ी। सामने से पुनीता आ रही थी उसने बताया कि वो आज से ही ब्यूटीशियन का कोर्स ज्वाइन कर रही है और उसकी बहन कुकिंग का। मैंने मुंह बिचका लिया और बोली भर्इ मैं तो आराम करूंगी और टेलिविज़न ही देखूंगी। उसको बाय बोलकर मैं घर की ओर बढ़ गर्इ। दूसरी तरफ से गीता मैड़म आ रहे थे………मैंने उन्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया क्योंकि देखती तो उन्हें नमस्ते करनी पड़ती………….कौन करे नमस्ते…………..यही सोचती हुर्इ मुंह दूसरी तरफ करके मैं आगे बढ़ गर्इ।

घर पहुंची तो मम्मी छोले-भठूरे बना रहीं थीं। मैं बिना हाथ धोए और बिना कपड़े बदले रसोर्इ में घुसी और प्लेट लगाने लगी। मम्मी ने हमेशा की तरह टोका और और ड़ांटा और मैंने भी हमेशा की तरह उनकी बात अनसुनी कर दी और गर्मागर्म भठूरे का पहला निवाला आदत के अनुसार मम्मी को खिलाया और फिर खुद खाया। मम्मी गरमा-गर्म भठूरे उतारती रही मेरी प्लेट में ड़ालती रही और मेरे पेपर के बारे में पूछती रही कि कितने नम्बर आ जाएंगे। मेरा पूरा ध्यान टेलिविज़न पर आ रहे धारावाहिक पर केंद्रित हो चुका था इसलिए मैंने मम्मी को साफ तौर पर कह दिया कि आज का पेपर ठीक हो गया और आज पढ़ार्इ के बारे में कोर्इ बात मत करना। आज मैं सिर्फ टी.वी. देखूंगी और मोबार्इल पर आए मैसेज़ पढूंगी और आगे भेजूंगी। इतने में लार्इट चली गर्इ। मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर सोचा चलो समय का फायदा उठाती हूं और मैसेज पढ़ती हूं। बाप रे………बीस मैसेज़ थे।

woh tees din by monica gupta

ये किताब आप नेशनल बुक ट्रस्ट की साईट से ओनलाईन भी खरीद सकते हैं ..

http://www.nbtindia.gov.in/books_detail__10__nehru-bal-pustakalaya__1676__wo-tees-din.nbt

 

tees din

ISBN 978-81-237-7087-1

आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है …

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