रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें – “Exploring motivational factors for altruistic blood donation” – निस्वार्थ भावना से रक्तदान के लिए प्रेरित करने वाले कारण – *रक्तदान है तो गंभीर विषय पर मनोरंजक ढंग से या कुछ इस ढंग से अपनी बात रखी जाए कि लोगो के दिल को छू जाए तब भी जनता में रक्तदान के प्रति जनता में जागरुकता आ सकती है.महिलाओ को रक्तदान की महत्ता समझा कर उन्हें प्रेरित करना…
रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें
जब मुझे यह विषय डाक्टर कंचन की ओर से मिला तो मैने तुरंत नॆट चला लिया और सोशल नेट वर्किंग साईट, फेसबुक और ब्लाग में खोजने लगी कि क्या क्या लिया जा सकता है
तभी मेरी नजर एक बात पर जाकर अटक गई. मै आपको जरुर बताना चाहूगीं. वैसे ये बात रक्तदान से सम्बंधित नही है. मैनें पढा कि घर पर कूडा कचरा वाला आया तो बच्चे ने मम्मी को आवाज देकर कहा कि मम्मी कूडे वाला आया है तब पता है मम्मी ने क्या कहा ? मम्मी ने कहा … नही बेटा ये तो सफाई वाला है कूडे वाले तो हम हैं जो हर रोज इसे कूडा देते हैं .बात मे बहुत दम था. मैं प्रभावित हो गई. उस महिला ने बहुत सही और समझदारी वाली बात कही. सच मानिए मुझे पहला पोईंट भी मिल गया.
जी हां, मेरा पहला पोईंट है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओ को रक्तदान की महत्ता समझा कर उन्हें प्रेरित करना.
रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें
हम सब जानते हैं कि खून की कमी में हम महिलाए अव्वल नम्बर है अपने शरीर का ख्याल न रखने में महिलाए अव्वल है वही दूसरी ओर अपने परिवार में सभी का ख्याल रखने मे भी अव्वल नम्बर पर हैं और तो और अक्सर जब रक्तदान की बारी आती है तो अपने पति और बच्चों को लेकर बहुत संजीदा हो जाती है.
इसी बात पर मुझे एक उदाहरण याद आ रहा है जोकि एक साक्षात्कार के दौरान रक्त दानी हजारी लाल बंसल जी के बेटे ने बताया. उन्होनें बताया कि एक महिला के पति जोकि प्रोफेसर थे उनके पास रक्तदान के लिए फोन आया. प्रो साहब ने पत्नी को बताया तो पत्नी का चेहरा उतर गया खैर पत्नी को नाराज करके वो घर से निकल गए.रक्तदान केंद्र गए तो एक व्यक्ति पहले ही वहां लेटा रक्तदान कर रहा था तो पति महाशय कुछ देर वहां बैठ कर बतिया कर चाय बिस्कुट खाकर आधे घंटे में घर लौट आए.
पत्नी जी बाहर ही खडी थी पति को देखते ही बोली ओह आप कितने कमजोर लग रहे हो चेहरा भी उतर गया है. आराम से आईए भीतर. पति ने जब समझाया कि ऐसी कोई बात नही उन्होने रक्त दिया ही नही सारी बात बताने पर पत्नी को बहुत झेप आई. यह किस्सा बताने का मतलब यही है कि महिलाओ के मन से वहम निकाल कर रक्तदान के लिए उन्हे प्रेरित करना होगा और अगर वो प्रेरित हो गई तो एक बात की गारंटी है कि किसी को भी जागरुक करने में अव्वल होंगीं अगर वो जागरुक हो गईं तो यकीनन देश से रक्त की कमी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.
*इसके साथ साथ हमेशा नए विचारो को महत्ता देनी चाहिए. युवा वर्ग को सुनना चाहिए. खासकर बच्चे भी स्मार्ट फोन की तरह बहुत स्मार्ट हो गए है. वैसे इसी स्मार्टनेस पर फिर एक छोटी सी कहानी याद आ रही है कि एक आदमी नाई से अपने बाल कटवा रहा होता है एक बच्चे को आता देख नाई आदमी से कहता है कि आपको कुछ दिखलाता हूं फिर नाई ने बच्चे को अपने पास बुलाया और अपने एक हाथ में 10 रूपए का नोट रखा और दूसरे में 2रूपए का सिक्का, तब उस लड़के को बोला “बेटा तुम्हें कौन सा चाहिए?” बच्चे ने 2 रूपए का सिक्का उठाया और बाहर चला गया।
नाई ने कहा, “मैंने तुमसे क्या कहा था ये लड़का कुछ भी नही जानता, बुद्दू है अगर समझदार होता तो दस रुपए ही उठाता. बाल कटवाने के बाद जब वो बाहर निकला तो उसे वही बच्चा दिखा जो आइसक्रीम की दुकान के पास खड़ा आइसक्रीम खा रहा था।“ उस आदमी ने बच्चे से पूछा कि उसे दस और दो रुपए मे फर्क नही मालूम बच्चे ने अपनी आइसक्रीम चाटते हुए जवाब दिया, “अंकल जिस दिन मैंने 10 रूपए का नोट ले लिया उस दिन खेल खत्म। अगर मै 10 रुपए ले लूंगा तो आगे से वो मुझे आगे से कभी नही देंगें. बहुत समझदारी थी उसकी बात में. तो पोईंट यही है कि युवाओ के नए नए विचारो को अपनाना चाहिए. इसी कडी स्कूलों मे काम्पीटिशन और क्विज शो करवाए जाए या आन अलईन प्रतियोगिताए करवाई जाएं ताकि बच्चे रक्तदान की महत्ता को जाने.
*इसी संदर्भ में अलग अलग जगह जाकर रक्तदान प्रदर्शिनी का आयोजन किया जाए ताकि अन्य राज्यो क्या हो रहा है हमॆं जानकारी मिलती रहे और हम उससे बेहतर क्या अलग और नया कर सकें.
*जनता और ब्लड बैंक के बीच सीधा संवाद हो तो ना सिर्फ जनता जागरुक बनेगी बल्कि उसके ब्लड बैंक या रक्तदान से सम्बंधित जो भ्रंतियां हैं वो भी दूर होंगी जोकि बेहद जरुरी है और रक्तदान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.
*रक्तदान है तो गंभीर विषय पर मनोरंजक ढंग से या कुछ इस ढंग से अपनी बात रखी जाए कि लोगो के दिल को छू जाए तब भी जनता में रक्तदान के प्रति जनता में जागरुकता आ सकती है.
*इस क्षेत्र मे सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि हमें स्वैच्छिक रुप से रक्तदान और जनता को भी प्रेरित करते रहना चाहिए भले की कोई सराहे या न सराहे. बस अपने कार्य मे निस्वार्थ सेवा से जुटे रहना चाहिए. सेवा से याद आया कि क्या आप जानते हैं कि “मैन आफ द मिलेनियम” कौन हैं. नही जानते !!! अच्छा रजनीकांत के बारे मे कितने लोग जानते हैं ह हा वो शायद सभी जानते हैं
मै आपको बताना चाहूगी कि रजनीकांत भी उन्हे अपना पिता मानते हैं. अब सोचिए कितने दमदार होंगें वो व्यक्ति. उनका नाम है पी. कल्याण सुंदरम. लाईबरेरी सांईस में गोल्ड मेडलिस्ट सुंदरम दक्षिण भारत के तमिलनाडू मे रहते हैं और पिछ्ले 30 सालो से अपनी सारी कमाई सामाजिक कार्यो मे लगा रहे हैं और रिटायर्मेंट के बाद जब पेंशन के दस लाख मिले तो वो भी समाज सेवा मे लगा दिए. अमेरिका सरकार ने उन्हे मैन आफ द मिलेनियम से नवाजा और 30 करोड रुपए भी दिए. वो भी इन्होने सेवा मे लगा दिए. आपके मन मे यह प्रशन भी आ रहा होगा कि खुद कैसे जीवन यापन करते तो एकाकी जीवन जीने वाले सुंदरम पार्ट टाईम वेटर का काम करके अपना खर्चा चलाते हैं. ऐसे व्यक्तित्व प्रेरणा का स्रोत्र बनते हैं इसलिए हमे ऐसे लोगो से कुछ सीखना चाहिए और बस निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहनी चाहिए.
*कुछ ऐसे मरीज जिन्हें रक्त की जरुरत समय समय पर पडती रहती है ऐसे मरीजो के संदेश जनता तक पहुंचाने से भी लोगो में रक्तदान की भावना बढती है. जम्मू निवासी हीमोफीलिया के मरीज जगदीश जी हैं वो शिक्षक है और अपनी आधी तन्खाह हीमोफीलिया के मरीजो पर खर्च करते हैं वहीं मुम्बई से संगीता हैं जो थैलीसीमिया का सामना बेहद बहादुरी से कर रही हैं उन्होने थैलीसेमिया की वजह से अपनी बहन को खोने के बाद फेस, फाईट और फिनीश के नाम से इस बीमारी को जड से ही खत्म करने पर सराहनीय कार्य कर रही है यकीनन ऐसे लोगो के उदाहरण उनकी अपील भी नई दिशा दिखा सकती है.
*जो लोग इस क्षेत्र मे अभूतपूर्व काम कर रहे हैं उनसे जुडे रहना चाहिए और दूसरो को भी उनके बारे मे बताते रहना चाहिए. चाहे कोई व्यक्ति विशेष हो या पूरी टीम. व्यक्ति विशॆष की अगर मैं बात करु तो मैं कुछ ऐसे नाम जरुर लेना चाहूगी जोकि रक्तदान के क्षेत्र मे एक मिसाल है. दिल्ली डाक्टर संगीता पाठक, चंडीगढ से डाक्टर रवनीत कौर, श्री राकेश सांगर (पंचकुला) , ब्लड कनेक्ट टीम (नई दिल्ली) , श्री राजेंद्र महेश्वरी (भीलवाडा), श्री दीपक शुक्ला(जलगांव) , डाक्टर सोनू सिह (दिल्ली), जगदीश कुमार (जम्मू) संगीता वधवा(मुम्बई) और बेहद सराहनीय कार्य कर रहें हैं. ये वो नाम हैं जब भी विभिन्न राज्यों से मेरे पास जब भी रक्त की जरुरत के लिए फोन आए और मैने इन लोगों को सम्पर्क किया तो इन्होने तुरंत अरेंज करवा दिया और मरीज को नया जीवन मिल गया . ना जाने कितने परिवारो के लिए ये हीरो और हीरोईन हैं और इन सबसे उपर मेरे जीवन साथी संजय जी जिन्होनें मुझे हमेशा प्रेरित किया कि अगर रक्तदान नही कर सकती तो कोई बात नही लोगो को जागरुक और मदद तो कर ही सकती हो.ऐसे व्यक्तित्व का हमेशा हमे धन्यवादी होना चाहिए.
*और जैसाकि मैने शुरु में बताया था कि डाक्टर कंचन का फोन आते ही मैने नेट देखना शुरु किया. असल में, नेट के माध्यम से भी हमे रक्तदान के क्षेत्र मे ना सिर्फ देश की बल्कि विदेशो की भी नई नई जानकारी मिलती रहती है इसलिए सोशल नेट वर्किंग साईटस भी देखना बहुत जरुरी है.
*अपना या अपनी संस्था का अच्छा सा प्रोफाईल बना कर भी लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है. ताकि जनता को लगे कि सही मायनो मे कौन किस तरह से और कितना काम कर रहा है और अगर वो भी इस कार्य का हिस्सा बनना चाहे तो बन सकें. उसमे अपनी उपलब्धियां और विस्तार से जानकारी होनी चाहिए.
*होली, जन्मदिन, सालगिरह इत्यादि कुछ खास दिनो पर रक्तदान करके लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.
*अखबार या अन्य पत्र पत्रिकाओं में रक्तदान से सम्बंधित अच्छे रंगीन लेखों के माध्यम से जागरुक किया जा सकता है.
* रक्तदान से सम्बंधित कार्टून बना कर भी समाज मे जागरुकता लाई जा सकती है.
*जागरुक करने के लिए कोई ईवेंट किया जा सकता हैं , कुछ हट कर कर दिखा सकते हैं ताकि जनता के मन मे जिज्ञासा बनी रहे. जैसाकि सूरत के अखिल भारतीय तेरापंथी युवक परिषद ने रक्तदान कैम्प लगाया था. जो कि अपने आप में ही एक रिकार्ड है. आईएसबीटीआई ने भी पिछ्ले साल 12 अगस्त को एक विशाल ब्लड ड्राप बना कर एक कीर्तिमान कायम किया. और इस तरह जैसे हर साल आईएसबीटीआई कांफ्रेस आयोजित करती है ऐसे की करती रहे ताकि नई नई बाते पढने सुनने और जानने का अवसर मिलें
और सबसे जरुरी बात यह कि हमें खुद को टटोलना है लोगों की बातों मे आए बिना खुद को जागरुक बनाना हैं क्योकि
मसला ये भी है इस बेमिसाल दुनिया का
कोई अगर अच्छा भी है
तो वो अच्छा क्यूँ है !!!
Transcon 2014 पटियाला के दौरान मेरे लेक्कचर के कुछ अंश ….