रक्तदान और युवा – रक्तदान पर मैनें दिल्ली रोहिणी क्राऊन प्लाजा में ट्रास्कान 2015 के दौरान अपने विचार कुछ ऐसे व्यक्त किए. विषय था….सोशल मीडिया के मद्देनजर युवा रक्तदाताओं को कैसे जोडे …
रक्तदान और युवा
Recruiting Young Donors- Focus on Social Media
“वसुधैव कुटुम्बकम” बहुत समय पहले सुना करते थे अर्थात पूरी धरती एक परिवार है मैं अक्सर सोचती थी कि सारी धरती एक परिवार कैसे हो सकती है दुनिया इतनी बडी है कोई कहां तो कोई कहां ऐसे में एक ही परिवार कैसे हो सकता है पर जब से सोशल मीडिया फेसबुक, टवीटर, गूगल सक्रिय हुआ और देश क्या विदेश की भी सभी जानकारी मिलने लगी. विचार सांझा होने लगे. तब लगा कि अरे वाह, जो हमारे पूर्वजो ने उस समय कहा था वो तो आज साकार हो रहा है.
सोशल मीडिया से हमारा जुडे रहना और भी सार्थक हो जाता है अगर हम नोबल cause के लिए जुडे … और रक्तदान जैसा कोई नोबल cause और हो ही नही सकता.
ये सच है कि रक्तदान पुण्य का कार्य है पर सोचने वाली बात ये है कि युवाओं को इससे कैसे जोडे. यूथ इसलिए भी क्योकि वो सोशल नेट वर्क पर बेहद सक्रिय है और दूसरी वजह ये भी है कि वो समाज के लिए कुछ करना चाहता है.
अब जरुरत इस बात की है कि हम कुछ हट कर करें जिससे युवाओं में एक नया जोश पैदा हो… वैसे हट करने से याद आया आपने सैल्फी विद डोटर तो सुना ही होगा. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के अंतर्गत एक और अभियान चला कि गांव की जो बेटी सबसे ज्यादा पढी लिखी होगी वो 15 अगस्त को झंडा फहराएगी और मुख्यातिथि भी होगी उसके साथ आए माता पिता के लिए अलग बैठने की व्यवस्था की जाएगी.
इस अभियान को इतना पसंद किया गया कि अब तो गांव के वो लोग भी जो लडकियों को पढाना सही नही समझते थे उनकी मानसिकता भी बदल गई है. वो ज्यादा से ज्यादा लडकियों को पढाने के लिए आगे आ रहे हैं.
नेट के माध्यम से रक्तदान से जुडी खबर हट कर हों उनका उदाहरण सामने रखे तो भी जागृति आ सकती है… जैसा कि एक खबर पढी कि अहमदाबाद के रोहित उपाध्याय ने 100 बार रक्तदान किया.. शायद आपको इस खबर में कोई नयापन न लगे पर अगर मैं आपको कहूं कि वो रिक्शा चलातें है तो शायद कुछ हट कर लगे लेकिन अगर मैं आपको ये बताऊ कि वो मरना चाहते थे इसलिए रक्तदान करने गया था तो शायद आप भी चौंक़ जाएगें.
असल में, अहमदाबाद के राहुल उपाध्याय रिक्शा चलाते हैं वो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान हो गए थे और सुसाईड करना चाहते थे उन्हें लगता था कि रक्तदान करने पर आदमी मर जाता है इसलिए रक्तदान करने गए थे पर रक्तदान करके जब यह पता चला कि उन्हें तो कुछ हुआ नही और उन्होनें किसी की जिंदगी बचाई है तो उनकी सोच बदल गई और लगातार रक्तदान करने लगे…
एक अन्य उदाहरण है इंदौर के निवासी अशोक नायक का. पेशे से दर्जी हैं लोगो के कपडे सिलते हैं. रक्त के क्षेत्र मे नायक बनकर उभरे हैं. जब इनका अपना एक दोस्त खून न मिलने की वजह से दुनिया छोड गया तो इन्होने ये बात दिल से लगा ली और अपने छोटे से घर में, छोटा सा ब्लड काल सेंटर खोल लिया और नेट वर्क तैयार किया और उसी के माध्यम से लोगो को खन उपलब्ध करवाने लगे .
मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता जैसे महानगरों में इनकी अपनी रक्तदाताओं की सूची है और जैसे ही जरुरतमंद का फोन आता है रक्तदाता वहां हाजिर हो जाता है. अब इन्होने प्रशासन की मदद से रक्तदाता वाहिनी सेवा भी शुरु की है जो की खास तौर पर महिलाओ के लिए है. तो है ना ये मिसाल.
देश में ननद भाभी का झगडे अक्सर हम सुनते हैं पर भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने किया रक्तदान भी एक मिसाल बन सकता है राजस्थान के बासवाडा के हमीरपुर गांव में ये मिसाल देखने को मिली जब गर्भवती भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने रक्तदान किया.
शादी जैसे पावन दिन पर भी दुल्हे का रक्तदान करना युवाओ के लिए मिसाल बन सकती है. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर निवासी अमर सिह ने शादी वाले दिन कुछ हट कर करने की ठानी और शादी के दिन कुछ मीठा हो जाए सोच कर शादी वाले दिन ही रक्तदान किया और मिसाल कायम की.
युवा हीरो को बहुत फोलो करते हैं आमिर खान, अमिताभ बच्चन साहब या जान एब्राहिम आदि अगर इनकी फोटो या खबर दिखा कर उन्हें मोटिवेट किया जाए तो यकीनन सकारात्मक असर पडेगा.
विभिन्न धर्मों के लोग जब रक्तदान करते हैं तो प्रेरणा बन जाते हैं. श्वेताम्बर जैन साध्वी का रक्तदान करना अपने आप में एक मिसाल है.
युवा शक्ति को तरह तरह के इवेंट के माध्यम से भी प्रोत्साहित किया जा सकता है जिसमें एक है युवाओ को लेकर विशाल रक्त बूंद यानि ब्लड ड्राप बनाना जैसाकि आईएसबीटीआई द्वारा किया गया विशाल आयोजन था.
युवाओं को खास दिन पर रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है जैसाकि होली, 15 अगस्त, कुछ लोग दिन खोजते है तो कई लोग कोई न कोई दिन खोज निकालते हैं रक्तदान करने के लिए अब जैसाकि आदिवासी दिवस शायद हमने कभी सुना भी नही होगा पर देखिए बढ चढ कर रक्तदान हुआ इस दिन भी…
एक अन्य मिसाल अपना खून नेगेटिव होते हुए सोच पोजेटिव रखी और नेगेटिव ब्लड ग्रुप की लिस्ट तैयार कर ली जोकि हरदम रक्तदान के लिए तैयार रहते हैं .. जज्बा हो तो ऐसा
जिन मरीजों को लगातार रक्त की जरुरत पडती है अगर वो ही अपना संदेश दें कि रक्तदान कितना अमूल्य है तो भी युवा प्रभावित हो सकते हैं. जैसाकि जम्मू में रहने वाले हीमोफीलिया से पीडित जगदीश कुमार जिन्हे अभी तक लगभग 200बार खूब चढ चुका है या थैलीसीमिया की मरीज संगीता वधवा ,मुम्बई में रहती है
अभी तक 800 बार खूब चढ चुका है और ना सिर्फ थैलीसीमिया पर काम कर रही है पर खुद भी जीने की इच्छा छोड चुकी संगीता उन लोगो की कांऊसलिंग करती है जिन्होनें जिंदगी से हार मान ली है. संगीता आजकल थैलीसिमिया को खत्म करने के लिए Face , Fight और Finish पर जबरदस्त काम कर रही है.
सोशल मीडिया पर भी सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रेरित किया जा सकता है एक मेरी युवा जानकार थी. फेसबुक पर ज्यादा समय रहती थी पर कमेंट कम मिलते थे. बहुत मायूस थी और बातों बातों में उसने अपनी प्रोब्लम बताई.
मैने उससे पूछा कि रक्तदान कराते हुए की फोटो डालो बहुत कमेंटस मिलेगें उसने बोला कि रक्तदान तो कभी किया नही तो मैने कहा कि कर के देख लो … दो दिन बाद जब मैने उसका प्रोफाईल देखा तो 100 लाईक्स थे और पचास से ज्यादा कमेंटस थे और तो और फैंड रिक्वेस्ट भी आनी शुरु हो गई थी. अब उसने ये अभियान नियमित करने की ठान ली है.
युवाओ को बैट्ररी का उदाहरण देकर भी समझाया जा सकता है कि जिस तरह मोबाईल की बैट्टरी डाऊन हो जाती है और हमे चार्ज करना पडता है ठीक वैसे ही इंसानो की बैट्री भी कभी कभी डाऊन हो जाती है और चार्जर रुपी खून से उसमे जान डालनी पडती है..
प्रधान मंत्री मोदी जी ने भी युवा शक्ति को रक्तदान के लिए प्रेरित किया और विश्व रक्तदाता दिवस पर टवीट किया कि रक्तदान समाज की बडी सेवा है आज हम रक्तदान के महत्व के बारे में अपने संकल्प को दोहराते हैं मेरे युवा मित्रों को इस सम्बंध में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.
W H O जैसी बडी संस्थाए भी प्रेरणा बन सकती हैं जैसाकि हाल ही में विश्व रक्तदाता दिवस पर कैम्पेन लांच किया गया जिसका थीम था
( मेरे जीवन को बचाने के लिए धन्यवाद )Thank you for a saving my life.
जो इस क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहे हैं उनकी सराहना होनी भी बहुत जरुरी है ताकि उनका मनोबल बना रहे. जैसाकि डाक्टर संगीता पाठक, डाक्टर रवनीत कौर, सोनू सिह, ब्लड कनेक्ट की पूरी टीम, श्री राजेंद्र माहेश्वरी, श्री दीपक शुक्ला, श्री मंजुल पालीवाल जब मैने इनको रक्त की जरुरत के लिए फोन किया समझिए टेंशन खत्म हो गई और मरीज को नया जीवन मिल गया.
जनता को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए और यह डर निकाल देना चाहिए कि अकेले हम से नही हो पाएगा…. और फिर भी हिम्मत हार जाए तो दशरथ मांझी को याद करिएगा जिन्होने अकेले अपने दम पर पूरा पहाड तोड कर रास्ता बना लिया था. उनके किए कार्य की तुलना आज ताजमहल से हो रही है.
तो जैसे मैने आरम्भ मे ही कहा था वसधैव कुटुम्बकम सारी धरती एक परिवार है और हमे हमें अपने परिवार की रक्षा करनी है मिलजुल कर कदम बढाने होंगें और उनके लिए एक ही बात कहना चाहूंगी कि “
“मंजिल मिले या न मिले ये तो अलग बात है
पर हम कोशिश भी न करें ये तो गलत बात है ”
जय रक्तदाता
मोनिका गुप्ता