पाप- पुण्य और आम इंसान
कुछ समय पहले एक समारोह मे एक दम्पति मिले थे. उन्होने मुझसे पूछा था कि क्या मैं किसी जरुरतमंद को जानती हूं तो अचानक मुझे माली की याद आई. बहुत गरीब पर मेहनती है. बहुत घरों में वो और उसकी पत्नी मिलकर काम करतें हैं. उसके चार बच्चे हैं मैने तुरंत ये सोच कर कि माली की मदद हो जाएगी उसका नम्बर दे दिया. उस महिला ने मुझे बताया कि हमारा ये शौक है जिनको भी जरुरत होती है सौ-पचास रुपए देकर मदद कर देते हैं और फोटो करवा कर सोशल नेटवर्किंग पर डालते हैं और खूब कमेंटस आ जाते हैं भलाई की भलाई हो जाती हैं और कमेंट्स अलग से… !!!
मुझे पता नही पर मुझे उनकी बातों में दिखावा ज्यादा लगा …लगा कि ये मात्र दिखावे के लिए ही ऐसा कर रहे हैं. भला पचास रुपए में कैसे मदद की जा सकती है..और चलो माना कि मदद कर भी रहे हो तो फोटो खिंचवा कर साईटस पर दिखावा करने का क्या औचित्य.. बेशक, माली गरीब है पर वो खुद्दार भी है ऐसे में कही उसके आत्मसम्मान को चोट न पहुंचे. अचानक मैनें उस महिला को कहा कि ओह !! याद आया माली ने तो अपना नम्बर बदल लिया था. ये अब उसका नम्बर नही. मैं उससे नया नम्बर लेकर दे दूगीं …!! और आगे बढ गई.. !!!
पाप करना बुरा है पर पुण्य का अहंकार ….. और भी ज्यादा बुरा है… बेशक, मदद एक पैसे की भी करना बहुत बडी बात होती है पर उसका बेवजह गुणगान करना अच्छी बात नही है .. ये दिखावा ज्यादा लगता है और इस तरह का दिखावा किसी की भावनाओ को भी आहत कर सकता है…
पाप- पुण्य और आम इंसान
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