कैसे आएंगे अच्छे दिन – जिस तरह से हम अपने पर्यावरण को लेकर जागरुक नही है .. पराली जला रहे हैं डीजल, पटाखे जलाने से भी प्रदूषण फैलता जा रहा है और स्मॉग बढता ही जा रहा है ..
कैसे आएंगे अच्छे दिन
मेरी सहेली मणि आज किसी शादी में गई हुई थी. हफ्ते भर से तैयारी मे लगी थी और आज इतनी जल्दी वापिस भी आ गई… मेरे पूछ्ने पर बताया कि जिनकी शादी थी उन्होने इतने पटाखे चलाए इतने पटाखे चलाए कि सांस लेने मे दिक्कत होने लगी और उसे वहां से वापिस आना पडा… बहुत गुस्सा आ रहा है पहले ही इतना प्रदूषण है और उपर से खेतो में पराली जलाई जा रही है … पेड वैसे ही नही रहे … ध्यान तो रखना पडेगा … अन्यथा प्रदूषण का प्रभाव …..
वैसे बात सिर्फ इसी की नही है सडक पर वाहन चलाते समय मोबाईल पर बात करते जाते हैं कोई एक्सीडेंट हो तब जाकर समझ आता है और तो और मेरी जानकार ने पानी की मोटर पर सायरन लगवाया है
कई बार पानी की टंकी ओवर फ्लो कर जाता है ऐसे में सायरन से पता लग जाता है बहुत अच्छा प्रयास है पर वो बता रही थी कि लोग उसका मजाक उडाते है और सायरन वाली आंटी नाम रख दिया अब बताईए …
हम कितने जागरुक है वैसे मैने भी कल इसी बारे मे नेट पर लिखा पढा कि पर कि
बिजली मैं बचाऊँगा नहीं, पर बिल मुझे कम चाहिये,-
पेड़ मैं लगाऊँगा नहीं, मौसम मुझको नम चाहिये,
-बिना लिए दिए कुछ काम करूँगा नही , पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिये –
घर के बाहर कूड़ा फेकने से गुरेज नही करुंगा , पर शहर मुझे साफ चाहिये…
बहुत सोचने की जरुरत है … है ना …
Om Parkash Sharma says
तर्जनी को छोड़ अन्य तीन अंगुलियों पर ध्यान देने से अच्छे दिन आ सकती हैं । आत्म निरीक्षण जरूरी । स्वयं भी करें और दूसरों को भी करने की प्रेरणा दे।