ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ – बच्चों, समय हमेशा चलता ही रहता है, कभी नहीं रूकता। हमारे जीवन का चक्र भी ठीक वैसे ही घूमता रहता है। पहले हम छोटे-छोटे नन्हें बच्चे होते हैं फिर धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं। बच्चों, जीवन के इस क्रम में अनेंकों घटनाएं घटती रहती हैं लेकिन कुछ एक बातें ऐसी होती हैं जो हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव छोड़ जाती हैं या यूँ कहिए कि उनसे हमारा जीवन ही बदल जाता है।
ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ
बच्चों, मोहन दास कर्मचंद गांधी जिन्हें सभी बापू बुलाते हैं। पंडि़त जवाहर लाल नेहरू जोकि बच्चों के प्रिय चाचा हैं या फिर गोपाल कृष्ण, मदन मोहन मालवीय, इंंदिरा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, देशरत्न डा़0 राजेन्द्र प्रसाद और भी ना जाने ऐसे कितने महान लोग हुए जिन्होंने ना सिर्फ देश में बलिक विदेशों में भी अपना नाम कमाया। आज हम कुछ महान हस्तियों के बचपन में झांक कर देखते हैं कि क्या इनका बचपन भी हमारे-आपके जैसा था या कुछ हट कर था।
ऐसा था इनका बचपन – स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद
सबसे पहले हम बात करते हैं स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद के बचपन की। यह उन दिनों की बात है जब स्कूल के मुख्याध्यापक परीक्षा फल सुनाने के लिए खड़े हुए। उन्होंने सभी विधार्थियों के नाम बोले लेकिन एक विधार्थी अचानक खड़ा होकर बोला कि श्रीमान मेरा नाम तो नहीं बोला गया। इस पर अध्यापक बोले तुम जरूर फेल होगें। तभी तुम्हारा नाम लिस्ट में नहीं है। असल में, परीक्षा से पूर्व वह बालक मलेरिया से पीडि़त था। लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि मेरा नाम तो इसमें होना ही चाहिए। अब अध्यापक को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने उसे बोला, तुम जितनी बार बोलोगे, उतना ही तुम्हें जुर्माना देना पड़ेगा। लेकिन वह बच्चा बोलता ही रहा कि इसमें मेरा नाम तो होना चाहिए। जुर्माने की राशि 5 रू0 से 50 रू0 तक पहुंच गर्इ। बात जब बढ़ रही थी तभी लिपिक दौड़ता हुआ आया और उसने मुख्याध्यापक को बताया कि उससे गलती हुर्इ है। असल में, यह बालक कक्षा में प्रथम स्थान पर है और पता है यह बालक थे राजेन्द्र प्रसाद जोकि स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
मदन मोहन मालवीय का बचपन
बच्चों, मदन मोहन मालवीय के दिल में लोगों और जानवरों के प्रति बचपन से ही दया और करूणा थी। एक बार की बात है बचपन में उन्होंने देखा कि एक कुत्ता (जानवर) दर्द से कराह रहा है वह उसे तुरन्त जानवरों के ड़ाक्टर के पास ले गए किन्तु ड़ाक्टर ने कहा कि जो इसके कान में चोट लगी है ऐसे दर्द में तो कुत्ता पागल भी हो जाते हैं तो वह इन बातों में ना पड़े। किन्तु मालवीय ने ड़ाक्टर से दवा लेकर खुद ही उसे लगाने की सोची। दवा लगाते ही कुत्ता बैचेन हो उठा तब बालक मालवीय ने दवा का कपड़ा लकड़ी के साथ बांधा और दूर बैठे-बैठे ही वह उसे दवा लगाने लगे। दवा उसे को बैचेन तो कर गर्इ लेकिन धीरे-धीरे उसे आराम आने लगा। बड़े होने पर भी मदन मोहन मालवीय मानते थे कि प्राणिमात्र की सेवा ही भगवान की सच्ची पूजा है।
लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का बचपन
एक ऐसा ही किस्सा लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का है। उनके बचपन में एक बार उन्हें चोट लग गर्इ। वह जगह पक गर्इ और अनेकों घरेलू उपचार करने पर भी वह चोट ठीक ही नहीं हुर्इ। अन्त में एक वैध को दिखाया गया। पता है उन्होंने कहा कि अगर हम इस फोड़े पर गर्म करके लोहे को लगाऐंगे तो यह ठीक हो जाएगा। घर के सभी सदस्य तो ड़र गए लेकिन बालक वल्लभ ने हिम्मत नहीं हारी पता है वह सीधे लुहार के पास गया और उसे कहा कि गर्म-गर्म लोहा उसे लगा दे ताकि उसका फोड़ा दब जाए। लेकिन लुहार ने यह सोच कर मना कर दिया कि बहुत दर्द होगा और यह तो अभी बच्चा है। वल्लभ ने दो-तीन जगह और पूछा लेकिन सभी ने गर्म लोहा लगाने से इंकार कर दिया। पता है तब उस बालक ने क्या किया। बड़े साहस से गर्म लोहे की सलाख उठा कर अपने फोड़े पर लगा ली। इस बालक के साहस को देख कर सभी हैरान रह गए। यही बालक आगे चलकर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बना। स्वतंत्रता मिलने पर यह देश के प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधान मंत्री बने। तो बच्चों ये थे सरदार वल्लभ भार्इ पटेल।
गोपाल कृष्ण गोखले का बचपन
अब मैं आपको गोपाल कृष्ण गोखले के बचपन की घटना सुनाती हूं। यह बात उन दिनों की है जब गोपाल विधालय पढ़ने जाते थे। आचार्य जी ने उन्हें गणित का गृह कार्य करने को दिया। बालक गोपाल ने एक-दो प्रश्न के इलावा सभी हल कर लिए। अब बच्चों, जो आपसे सवाल नहीं निकलते तो आप अपने दोस्तों से पूछते हो। बस, इन्होंने भी अपने दोस्तों से पूछ कर हल कर लिए। अगले दिन विधालय में टीचर ने जब देखा कि ये तो सभी सवाल सही हैं तो उन्होंने बालक गोपाल की बहुत प्रशंसा की। इस पर गोपाल रोने लगे और पूछने पर उन्होंने सारी बात सच-सच बता दी कि यह उन्होंने स्वयं नहीं किए हैं, मित्र की सहायता से किए हैं। इस पर अध्यापक बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने सच बोलने पर बालक को शाबाशी दी। पता है, यही गोपाल कृष्ण गोखले महान देशभक्त और महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरू भी बने।
सुभाष चन्द्र बोस का बचपन
अच्छा बच्चों यह तो बताओ कि जय हिन्द का नारा किसने दिया था। सुभाष चन्द्र बोस ने। तो आओ अब मैं इन्हीं के बचपन का किस्सा सुनाती हूं। एक बार की बात है कि यह रात को सोने जब जा रहे थे तो पलंग की बजाय जमीन पर ही लेट गए। मां हैरान, उन्होंने पूछा कि क्या हुआ जमीन पर क्यों लेट गए। इस पर बालक बोला कि हमारे गुरू ने बताया है कि हमारे पूर्वज भी जमीन पर सोते थे।
मैं भी ऋषि, मुनि की तरह कठोर जीवन जीऊंगा। जब पिता ने यह बात सुनी तो उन्होंने कहा कि बेटे, सिर्फ जमीन पर सोने से ही कोर्इ महान नहीं बनता। खूब पढ़ार्इ करना और समाज की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। बस, यह बात बालक को इतनी जम गर्इ और बहुत मेहनत से उन्होंने आर्इ0ए0एस0 की परीक्षा पास की।
और बड़ा अफसर बनने का मौका मिला तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं चाहिए अंग्रेज़ो की नौकरी। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपना लक्ष्य तो बचपन में तय कर चुके थे। कठोर जीवन, उच्च शिक्षा, देश सेवा इन तीनों को कर दिखाया सुभाष चन्द्र बोस ने। बचपन में किए मजबूत संकल्प को इन्होंने खूब निभाया।
चन्द्रशेखर वैंकटारमन का बचपन
बच्चों अब मैं चन्द्रशेखर वैंकटारमन के बचपन की घटना बताती हूं। वैंकटारमन को वैज्ञानिक अनुसंधान के परिणामस्वरूप प्रकाश भौतिकी में नए अविष्कार करने के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला।
त्रिचनापल्ली का एक सीधा सा छात्र चन्द्रशेखर जब विधालय में दाखिला लेने पहुंचा तब उसकी भी परीक्षा ली गर्इ। विधालय के सभी अध्यापक उन्हें देखकर हैरान थे क्योंकि उन्होंने सभी जवाब सही दिए थे।
सभी अध्यापक और मुख्याध्यापक ने यह सोचा कि इस बालक को तो महाविधालय में दाखिला मिलना चाहिए। इस पर चन्द्रशेखर ने कहा कि वह एक-एक सीढ़ी चढ़ कर ही उन्नति के उच्चतम छोर तक पहुंचना चाहते हैं। छलांगे नहीं लगाना चाहते। वह पग-पग यानि कदम-कदम से ही आगे बढ़ना चाहतें हैं। उनकी बात सुनकर सभी हैरान रह गए। तो देखा ऐसे थे चन्द्रशेखर वैंकटारमन।
बच्चों, बचपन से ही कोर्इ महान नहीं हो जाता। सच्चार्इ के रास्ते में कांटे ही कांटे होते हैं। हां, अगर उन्होंने कंटीले रास्ते को पार कर लिया तो उन्हें खुशियां रूपी फूल ही फूल मिलते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बचपन
अच्छा बच्चों यह बताओ हे राम, भारत छोड़ो किसने कहे थे। जी……राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने। लेकिन पता है बचपन में वो भी बुरी संगति में पड़ गए थे। बीड़ी पीना, चोरी करना, झूठ बोलना और मांस खाना उनकी आदत बन चुकी थी। लेकिन कहीं ना कहीं उनके दिल में छिपी अच्छार्इयों ने उन्हें यह सब छोड़ने को मजबूर कर दिया।
मां से तो उन्होंने सारी बात कर ली। लेकिन पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी हिम्मत ही नहीं हुर्इ कि वह अपनी सारी गलितयाें की माफी मांग लें। उन्होंने पिताजी को पत्र लिख कर दिया। पत्र में उन्होंने सारी बातें लिख ड़ाली और पिताजी को पकड़ा दिया।
पिताजी पत्र पढ़कर रोते रहे किन्तु उन्होंने मोहन को कुछ नहीं कहा। बाप-बेटे का सारा गिला शिकवा आंसूओं में बह गया। और गांधी जी का नाम ना सिर्फ भारत में बलिक पूरे विश्व में आदर सहित लिया जाता है और लिया जाता रहेगा।
आइन्सटीन का बचपन
बालक आइन्सटीन जब जर्मनी के विधालय में पढ़ते थे तब अध्यापक उन्हें पढ़ा-पढ़ा कर हार जाते थे लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता था। उनकी अक्सर पिटार्इ भी होती थी। सभी उन्हें बु़द्धु कहते थे। एक बार तो कक्षा में उनकी इतनी पिटार्इ हुर्इ कि अध्यापक ने कहा कि भगवान ने तो इन्हें दिमाग हीं नहीं दिया है। बस, उस दिन उन्होंने स्कूल ही छोड़ दिया और घर पर रहकर खूब पढ़ार्इ की। मन को एकाग्र करके यह स्वयं पढ़ने लगे और इन्होंने गणित के नए-नए सिद्धांत खोजे। यही बालक बड़े होकर आइन्सटीन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन जैसा कोर्इ संसार में गणितज्ञ ही नहीं हुआ।
अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का बचपन
एक ऐसा ही किस्सा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का है। वह बचपन से ही बेहद परोपकारी थे। एक बार की बात है सुबह-सुबह का समय था। एक स्त्री रो रही थी उसका बच्चा नदी में गिर गया था। इतने में बालक जार्ज दौड़ता हुआ आया और छपाक से पानी में छलांग लगा दी। बहुत मेहनत के बाद वह बच्चे को निकालने में सफल हुए। और उस बच्चे को बहाव से बाहर निकालने में सफल हुए।
और उस बच्चे को पीठ पर बैठाकर उसे किनारे पर ले आए। महिला ने बालक को शाबासी दी। वही बालक बड़े होकर जार्ज वाशिंगटन के नाम से मशहूर हुए।
राष्ट्रपति गारफील्ड़ का बचपन
बच्चों, अमेरिका के एक अन्य राष्ट्रपति गारफील्ड़ भी हुए हैं। उन्होंने बचपन से बेहद गरीबी देखी। वह गांव से लकड़ी काट कर शहर बेचने जाते थे लेकिन पढ़ने की धुन सवार थी।
पता है, उन्हाेंने पुस्तकालय में सफार्इ कर्मचारी के रूप में भी काम किया लेकिन पढ़ने के शौक को कभी नहीं छोड़ा। स्कूली पढ़ार्इ, पुस्तकालय के अध्ययन, लग्न, परिश्रम से उन्हें दूसरी नौकरी भी मिल गर्इ। प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए यह अमेरिका के राज्य सभा के सदस्य चुने गए और अगले चुनाव में लोगाें के प्यार ने इन्हें राष्ट्रपति बना दिया।
ड़ा. हरगोबिंद खुराना का बचपन
9 जनवरी, 1922 में जन्में ड़ा. हरगोबिंद खुराना जोकि नोबेल पुरस्कार विजेता रहे। वह अपने पांच भार्इ-बहनों में सबसे छोटे थे। पढ़ार्इ में तेज होने के कारण उन्हें तीसरी कक्षा से छात्रवृति मिलनी शुरू हो गर्इ थी। पता है, जब उनकी माता जी रोटी बनाती थी तो वह रेस लगाते थे, देखते हैं मां, तुम्हारी रोटी तवे से पहले उतरती है या मेरा सवाल पहले हल होता है।
उड़नपरी पी.टी.का बचपन
उड़नपरी पी.टी. उषा को कौन नहीं जानता। खेल-मैदान की रानी उषा ने बचपन से बहुत मेहनत की। जब वह केवल ग्यारह वर्ष की थी तो वह खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने की खूब मेहनत कर रही थी। प्रतियोगिता शुरू होने के तीन दिन पहले ही उनके पांव में चोट लग गर्इ।
लेकिन चोट की चिंता किए बिना वह लगातार अभ्यास करती रही। अपनी कक्षा की सबसे दुबली-पतली ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया जब वह प्रथम आर्इ।
उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भारतीय खेलों में चमकता सूरज बन कर उभरी।
तो बच्चों, ऐसा था इनका बचपन। मेहनत, लग्न, जोश और परिश्रम से भरा। बस, मन में काम की लग्न हो और आंखों में सपने हो तो कोर्इ भी रास्ते में रूकावट नहीं बन सकता। बस……….अपने जीवन में एक लक्ष्य रखना चाहिए और उसी को पाने के लिए जुट जाना चाहिए। फिर देखना सफलता आपके कदमों में होगी।
ऐसा था इनका बचपन – आपको कैसी लगी कहानियां … जरुर बताईगा !!