मेरी सहेली मणि के घर पर कुछ काम चल रहा था. बहुत मजदूर कार्य मे लगे थे. कुछ कमी पडने पर वो जब और मजदूरों को लेने गए तो पता चला कि बहुत मजदूर रैली मे गए हैं. असल में, चुनाव होने वाले थे इसलिए हर पार्टी जुटी हुई थी ज्यादा से ज्यादा भीड जमा करने में …
इस दिन मात्र दो मजदूर ही काम करने घर आए. उनको चाय देने के दौरान , रैली के बारे मे मेरे पूछ्ने पर एक मजदूर ने बताया कि बहुत बसे भर भर कर जा रही है. 500 रुपए मिलेगें इसके साथ साथ टिफिन भी फ्री और टिफिन मे एक कूपन भी होगा जिसके पास कूपन निकलेगा उसे ईनाम भी मिलेंगा.
इस पर मैने पूछा कि वो रैली मे क्यो नही गए. मेरी बात सुनने पर एक मजदूर बोला कि आज तो वो 500 दे देंगें पर कल कौन देगा. वो तो बोतल लेकर पडे रहेंग़ें और दूसरा बोला कि हमारे मेहनत की कमाई ही सच्ची कमाई है.
शाम को अखबार मे पढ लेंगे कि रैली में क्या क्या हुआ. वोट तो अपनी सोच के हिसाब से ही देंगें जल्दी से चाय खत्म करके वह दीवार की चिनाई मे जुट गया.
मुझे वाकई में खुशी हुई कि कुछ लोग ऐसी सोच भी रखते हैं और अच्छी सोच रखते हैं. सारी उंगलियां बराबर नही होती.