(दैनिक भास्कर की मधुरिमा पत्रिका में प्रकाशित लेख )
वटसअप और मेरे मन की बात
माँ और बच्चे का रिश्ता बेहद खूबसूरत होता है. बच्चा भले ही पचास साल का हो जाए या 5 दिन का मां हमेशा मांं ही रहती है और उसके लिए बच्चा वही छोटा बच्चा.
धन्यवाद वटसअप का
आज की दौडती भागती जिंदगी में वटस अप एक आशा की किरण है. जो माँ और बच्चे का रिश्ता और गहरा कर देता है .. कैसे ?? आईए जाने
बात एक दिन पहले की है. जब मेरी थोडी तबियत ठीक नही थी इसलिए मैने बस वटस अप पर बच्चों का मैसेज चैक किया और ये भी देखा कि कब ऑनलाईन थे. दोनों बच्चें बाहर ज़ॉब करते हैं एक तसल्ली हो गई कि चलो दोनो अपने अपने काम पर हैं और मैने आराम करने की सोची. उस दिन बस तबियत ठीक न होने की वजह से मेरा वटसअप देखने का मन नही किया इसलिए सारा दिन उसे चैक नही किया.
उसी देर शाम मेरी मम्मी का फोन आ गया कि कहां हो ?? मैं अपनी तबियत का बताना नही चाहती थी क्योकिं फिर वो सोचती बहुत हैं (जैसा कि हर मां की आदत होती हैं) इससे पहले मैं कुछ कहती वो बोली कि सुबह से whatsApp पर देख रही हूं तुम आई नही क्या हुआ … Last seen बस सुबह का था .. सब ठीक तो है ना…
मैने बहाना बना दिया कि नेट नही चल रहा था और दो मिनट बाद बात करने के बाद फोन रख दिया. फोन रखते रखते मैं भावुक हो गई पता है मैं क्या सोच रही थी मैं सोच रही थी कि बेशक, मैं एक मम्मी हूं पर वो भी तो एक मम्मी हैं जिस तरह से मैं बच्चों का चैक करके कि उन्होने लास्ट कब देखा एक तसल्ली हो जाती है ठीक वैसे ही मेरी मम्मी को भी तस्ल्ली हो जाती होगी कि मैने कब आखिरी बार वटस अप देखा ..आखिर मैं उनकी बेटी जो ठहरी.. बेशक बात न भी हो पर इतना देखना ही बहुत होता है…
मैने वटस अप खोल कर दुबारा चैक किया तो दोनो बच्चों की स्माईल आई हुई थी और मैं भी अपनी खराब तबियत भूल कर उन्हें मैसेज करने लगी.
कैसा लगा आपको ये लेख … जरुर बताईएगा !!
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