स्वच्छता का महत्व
स्वच्छता की बात करने से पहले हमारे लिए सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि स्वच्छता का महत्व कितना आवश्यक है क्योकि स्वच्छता और पेयजल की कमी से 80 प्रतिशत बीमारियों पैदा होती है और हर साल विश्वभर में 5 साल से कम उम्र के 15 लाख बच्चे मौत का शिकार बनते है. निश्चित तौर पर यह आंकड़े चौका देने वाले है चाहे हैजा, टाईफाईड, पीलिया, पोलियो, अतिसार, चमडी का चाहे हैजा, टाईफाईड, पीलिया, पोलियो, अतिसार, चमडी का रोग या आखों की बीमारी हो सभी का कारण स्वच्छता का ना होना ही है.
स्वच्छता और गंदगी
स्वच्छता का महत्व समझते हुए यह जानना जरुरी है कि गन्दगी मुख्य रूप से हमारे शरीर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जल, मक्ख्यिों, खाने की वस्तुओं और अगुलियों के रूप में प्रवेश करती है। जिसे रोकना और स्वच्छता के प्रति जागरूक होना हमारा कर्तव्य है ताकि स्वस्थ और सुखी जीवन जी सक
सामाजिक प्रतिष्ठा आत्म सम्मान और सबसे ज्यादा महिलाओं और लड़कियों के आराम के लिए स्वच्छता के नियमों को अपनाना बहुत जरूरी है स्वच्छता रहने पर व्यक्ति की सेहत ठीक रहेगी वह हर रोज काम पर जाऐगा जिससे आय के साधन भी बढ़ेगे और जीवन का आनन्द भी लिया जाएगा।
सोच शौच की
शौच से होने वाली बीमारियों के प्रति लोगो की सोच ना के बराबर है. वो सपने में भी नही सोच सकते कि जो शौच वो घर से बाहर दूर खेत में करके आते है घर आकर वो ना सिर्फ उसे खाते है बल्कि दूसरों को भी खिलाते है.
असल में, होता इस तरह से है कि जब व्यक्ति खुले में मल त्यागता है तो मल पर ढेरो मक्खियां बैठ जाती है वही गन्दगी मक्खियां हमारे भोजन, कपड़े, शरीर ओर पानी पर बैठ कर अपने छः पैरो पर चिपकाए मल को कर उड़ जाती है और अनजाने में व्यक्ति कम से कम 10 से 20 मिली ग्राम मल खा जाता है एक मिलीग्राम मल में एक करोड़ विषाणु होते है और बीमार व्यक्ति के मल में तो असंख्य मात्रा में बीमारी पैदा करने वाले विषाणु जीवाणु, कृमि और उनके अण्डे मौजूद रहते है जिन्हे सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है।
खुले में पड़ा यह शौच पानी, सब्जी, गन्दे हाथो, मिटटी, मक्खी और छोटे-2 अद्वश्य जीवो के माध्यम से होता हुआ स्वस्थ व्यक्तिक पहुंच कर उसे ही अस्वस्थ बना देता है इसके कारण आंतो में कीड़े, पेचिश, दस्त, हैजा, टायफायड, हार्ट-अटैक जैसी गम्भीर और जानलेवा बीमारिया हो जाती है।
यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि पोलियो का एक मात्र कारण पोलियोग्रस्त व्यक्ति के मल से ही होता है ये विषाणु सबसे पहले बच्चो को ही अपना शिकार बनाते है।
आकड़े भी बताते है कि गांव के लगभग आधे से ज्यादा आबादी बाहर ही शौच के लिए जाती है। मानले कि अगर एक व्यक्ति एक दिन में 300 ग्राम शौच करता है और प्रतिदिन गांव का हजार आदमी शौच जाता है जब हम गांव की 1 महीने की शौच की गिनती करेगे तो हम पाऐगे कि हर मीने इस गाव में 30 टन (30 दिन 1000 व्यक्ति 300 ग्राम) (लगभग दो ट्रक) शौच की जाती है अगर हम एक साल का अनुमान लगाए तो इससे लगभग 24 ट्रक शौच के भर सकते है। और 10 सालों में 240 ट्रक शौच के भरे जा सकते है।
व्यक्ति द्वारा त्यागा हुआ शौच जानवरों के खुरो से, बच्चों की चप्पल से, टायरों से, मक्खियों द्वारा वापिस घर पहुंच जाता है और हमारे हाथ द्वारा खाने पीने की चीजो में शामिल हो जाता है इसलिए यह बताने में कोई संकोच नही है कि व्यक्ति शौच ना सिर्फ खाता है एक दूसरों को भी खिलाता है अगर शौच के प्रति इस सोच को जागृत कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर शौच के प्रति उसे इतनी घृणा हो जाऐगी और उसकी सोच बदलनी शुरू हो जाऐगी।
असल में, सदियो से खुले में शौच जाने की आदत को छुड़वाना बहुत मुश्किल है ऐसे में गांव के लोगों के पास ढ़ेरो प्रश्न होते है कि हम बाहर जाना किसलिए बंद करे, शौचालय बनवाना आसान नहीं है। जगह भी नही है, शौचालय बनवाने से उन्हे क्या फायदा होगा, और सबसे ज्यादा मुश्किल तो बुर्जुगो को समझाना है।
ऐसे में उनके प्रश्नों का उतर देना उन्हे समझाना बहुत जरूरी हो जाता है ताकि वो संतुष्ट हो जाए और स्वच्छता को अपना ले।
ज्यादातर लोगो की सोच होती है कि वो अपने जीने का तरीका क्यों बदले उससे उन्हे क्या फायदा होगा। तो उन्हे यही समझाना चाहिए कि अच्छी आदत और जीवन को सुखी बनाने के लिए, सम्मान जनक रूप से जीने के लिए और दूसरो के सामने उदाहरण बनने के लिए स्वच्छता को अपनाना ही होगा। इसे अपनाने से स्वास्थ्य सही रहेगा, बीमारियां होगी ही नही, खर्चा कम होगा और आय के साधन ज्यादा बनेगे।
सोच कैसी कैसी …
कई लोगो का मानना होता है कि सुबह सुबह सैर भी हो जाती है और शौच भी तो इसमें गलत क्या है ? ऐसे में अपनी बहू बेटियों की सुरक्षा का अहसास करवाना चाहिए उन्हे अहसास दिलाना चाहिए कि शर्म के साथ-2 समय का दुरूपयोग होता है। सड़क पर, खेतो में पड़ा मल पैरो व चप्पलों के सहारे घर तक आ जाता है वाशिश के मौसम में या देर सवेर जाने से जंगली जानवरों का निरन्तर खतरा बना रहता है।
बहुत लोग अडियल किस्म के होते है उनके अकसर यही प्रश्न होते है कि उनके पास तो जगह ही नही है या वो तो गरीब है वो इसे बनवाने के लिए रूपया कहा से लाऐगे ऐसे में उन्हे समाझाना चाहिए कि इसके लिए कोई बहुत ज्यादा जंगह की जरूरत नही होती या फिर पड़ोसी या ग्राम पंचायत जमीन दे सकती है ऐसे में सामुदायिक शौचालय का भी निर्माण करवाया जा सकता है या फिर शौचालय का उपरी ढाचा छत पर और गडडा नीचे आगन पर बनाया जा सकता है या फिर दोनों पड़ोसी उपरी ढा़चा अलग अलग बना कर गढ़ढा एक ही रख सकते है इसके साथ साथ पड़ोसी ग्राम हित में अपनी जमीन भी दे सकता है समाधान तो बहुत निकल सकते है बशर्त स्वच्छता को जीवन का महत्वपूर्ण अंग माना जाए
अब बात आती है उनकी गरीबी की बात घूम फिर कर पैसे की गरीबी की नही बल्कि मानसिकता की गरीबी है जिससे जानबूझ कर वो उतरना ही नही चाहते । गरीब लोग शादी के लिए बीमारी के लिए रिश्तेदार में कामकाज शुरू करने पर कर्ज ले सकते है पर शौचालय बनवाने के लिए सरकार का मुंह ताकते है।
शौचालय ना बनवाने की इच्छा वाले बहाने ढूढ ही लेते है मसलन वो कह देते है कि हम तो मजदूर आदमी है दिहाड़ी पर काम करते है इसे बनवाने में कितना समय लग जाऐगा या फिर पीने का पानी तो है नही इसके लिए कहा से लाऐगे या फिर बदबू की दुहाई देकर किनारा करना चाहते है।
ऐसे में हर बात का जबाव तैयार होना चाहिए. शौचालय बनाना मात्र आधे दिन का भी काम नही है जहां तक पानी की कमी की बात है जितना बोतल में वो भरकर बाहर ले जाते है उतना ही पानी लगता है।
स्कूली स्वच्छता
बच्चे नए विचारों को बहुत जल्दी ग्रहण करते है स्कूल ऐसी संस्था है जहां शिक्षको की मदद से बच्चो के आचार व्यवहार में बहुत जल्दी बदलाव लाया जाता है क्योंकि बच्चों पर अपने शिक्षकों का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ता है इसलिए उन्हे प्रेरित करके शिक्षा के माध्यम से खुले में शौच ना के लिए भली प्रकार समझाया जा सकता है इसके लिए विद्यालय में अभिभावक शिक्षक संध का गठन भी बहुत फायदेमंद रहेगा।
स्कूली बच्चों का योगदान
अगर सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में बच्चों और स्कूली अध्यापको की बात नही की जाऐगी, तो यह अभियान अधूरा ही रहेगा। अक्सर स्कूली बच्चें अपने अध्यापकों से बहुत प्रेरित होते हैं। अध्यापकों ने स्वच्छता की गम्भीरता को समझते हुए सुबह प्रभात फेरी, रैलियाँ और नारे लगवाएं ताकि बच्चें अपना संदेश घर लेकर जाएँ।
बच्चों के माध्यम से स्वच्छता अभियान बहुत जल्दी फैलता है क्योंकि बच्चें जब सुबह स्कूल जातें हैं तो आसपास उन्हीं जैसे बच्चें शौच के के लिए बैठे मिल जाते हैं जिससे उन्हें बहुत बुरा लगता है और दूसरी बात स्कूल के मैदान में ना तो खेल सकते थे और ना ही भागदौड़ कर सकतें थे क्योंकि वहाँ पड़ी शौच उनके पाँव पर लग जाती थी और जूते, चप्पल के सहारे वो कक्षा तक आ जाती और वहाँ मक्खियाँ ड़ेरा जमा लेती। जहाँ एक ओर बदबू से उनका बैठना मुहाल हो जाता वही दूसरी ओर जो खाना मिड़ डे़ मिल के रूप में परोसा जाता, वहाँ भी स्वच्छता नही रहती। इन सभी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता अभियान स्कूली बच्चों से आरंभ किया जाना चाहिए
महिलाओं का योगदान
बाहर शौच जाने से महिलाए सबसे ज्यादा पीडित हैं क्योकि दिन भर शौच जा नही सकती और इसलिए अंधेरे में जाना पडता है जहांं जानवरों का खतरा है वहींं आदमियों से भी खतरा बना रहता है … हर रोज कही न कही की खबर छ्पती रहती है कि फलां महिला के साथ बलात्कार हुआ … फलांं बच्ची के साथ बलात्कार हुआ .. इसलिए चाहे वो अनपढ हो, धूंधट निकालती हो. अपनी किस्मत पर रोने से बेहतर है कि घर मे ही शौचालय बना कर इस्तेमाल किया जाए और शर्म के साथ साथ बीमारियों से भी बचा जाए.
वृद्धों का योगदान
बेशक, गाँव के बडे बूढों को समझाना किसी चुनौती से कम नही … उनकी मानसिकता बदलनी बहुत जरुरी है… और अगर वो समझ गए तो यकीन मानिए गांव स्वच्छ हो गया… !! उन्हें अपने बच्चों की सेहत का और महिलाओं की सुरक्षा का वास्ता देकर समझाया जा सकता है.
स्वच्छता के नारे – Monica Gupta
स्वच्छता के नारे / स्वच्छता पर नारे स्वच्छता हम सभी के लिए बेहद जरुरी है जानते हैं हम सब पर फिर भी मानते नही है और गंदगी फैलाए चले जाते हैं. read more at monicagupta.info
स्वच्छता अभियान अगर एक जन आंंदोलन के रुप में चले तो कोई ताकत स्वच्छता आने से नही रोक सकती…
अगर आज आपने अपने पर्स से या बैग से कुछ निकाल कर सडक पर नही फेंका तो यकीन मानिए आपने आज स्वच्छता अभियान में बहुत बडा योगदान दिया है…
(तस्वीर गूगल से साभार)
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