विश्वास कैसे करे ये सब जानकर – कई बार घर पर मांगने वाले आ जाते हैं तो कई बार गूंगे बहरे… और वो इशारों से बताते हैं कि वो गूंगे बहरे हैं और पास आने का इशारा करते हैं और एक कागज भी दिखाते हैं जो सरकार की तरफ से होता है …
विश्वास कैसे करे ये सब जानकर
जिस पर लिखा होता है कि ये गूंगा है … तो मन पसीजना स्वाभाविक है पर अब शायद ऐसे लोगो को देने का मन न करे… हुआ ये कि एक खबर देखी ऐसे ही बच्चे की .. वो गूंगे, बहरे बनने का नाटक करता और चोरी करते ना जाने कितने मोबाईल और पर्स उसके पास से मिले… उनका पूरा गिरोह है और गिरोह में उसके ही परिवार के लोग शामिल हैं … अब बताईए किस पर और कैसे करें विश्वास ???
अचानक कहानी हार की जीत की याद आ गई … कि लोग विश्वास करना छोड देंगें … बहुत साल पहले हमारे पाठय क्रम में ये थी …
अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड़गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, “बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?”
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।
अब समझ से बाहर से कि जो लोग वाकई में अपाहिज हैं उनकी मदद के लिए हम कैसे आगे आएगें … विश्वास जो उठ गया कि पता नही सच है या झूठ …
विश्वास कैसे करे ये सब जानकर
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