जिंदगी का कड़वा सच ये भी – कड़वी बाते लेकिन सच्ची बाते – मन को नियंत्रित करने का एक तरीका ये भी – सच – कई बार कडवी दवाई पिलानी पडती है .. .
जिंदगी का कड़वा सच ये भी – कड़वी बाते लेकिन सच्ची बाते
कल मार्किट से लौटते हुए एक सहेली मिली … वो अपनी मम्मी के खाने पीने की आदत से बहुत परेशान थी .. बोली बहुत शौक है मानते ही नही इस वजह से तरह तरह की बीमारियां लग गई हैं …अब लगता है कि गुस्सा होना ही पडेगा … कि खाने पर कंट्रोल रखो नही तो अस्तपताल में भर्ती करवाना पडेगा.
सही बात है कई बार जब आराम से कोई बात न समझे तो कडवी बात कहनी ही पडती है …
इसी बारे में एक कहानी याद आई … नेट पर पढी थी कि एक सेठ होता है खूब चटोरा … उन्हें खट्टी चीजें – खट्टा दही, खट्टा मट्ठा, अचार आदि खाने की बुरी आदत थी। वह खांसी के उपचार के लिए कई वैद्यों के पास गया। सभी ने उसे खट्टी चीजें न खाने की सलाह दी ताकि उनकी दवाऐं कुछ असर दिखा सकें परंतु सब बेकार…
हार कर वो एक बुजुर्ग वैद्य के पास जाते हैं वैद्य ने उसे दवाऐं दी और सेठ अपनी आदत के अनुसार खट्टी चीजें खाता रहा। कुछ दिनों बाद जब वह वैद्य के पास पहुंचा तो वैद्य ने उसका हालचाल पूछा। उसने कहा – ” कुछ खास फायदा नहीं हुआ।” फायदा तो होना चाहिए तीन फायदे होने चाहिए वैद्य ने उससे कहा – सेठ ने व्यग्रता से पूछा – “कौन से तीन फायदे?” वैद्य ने उत्तर दिया –
पहला यह कि तुम्हारे घर में कभी चोर नहीं आयेंगे
दूसरा यह कि तुम्हें कुत्ता नहीं काटेगा
तीसरा यह कि तुम बूढ़े नहीं होगे
सेठ ने फिर पूछा – “ये सब तो अच्छी बात है परंतु इनका खट्टी चीजों से क्या संबंध?”वैद्य ने उत्तर दिया –
“यदि तुम खट्टी चीजें खाते रहोगे तो तुम्हारी खांसी कभी ठीक नहीं होगी। तुम दिन-रात खांसते रहोगे तो चोर तुम्हारे घर कैसे आयेंगे?
और खांसी से तुम इतने कमजोर हो जाओगे कि बिना छड़ी की सहायता के तुम चल भी नहीं सकोगे
तुम्हारे हाथ में छड़ी देखकर कुत्ते तुम्हारे पास नहीं फटकेंगे। कमजोरी के चलते भरी जवानी में ही मर जाओगे इसलिए तुम बूढ़े ही नहीं होगे।
““जो व्यक्ति अपने खान-पान को लेकर लापरवाह है, वह कभी भी बीमारियों से मुक्त नहीं हो सकता।”
कड़वा सच – सुधर जाओ – जीवन का एक सत्य – zindagi ka sabse bada sach
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