Letter from didi
दीदी की चिठ्ठी
कैसे हो? बहुत अच्छी बात है कि आप पढाई मे जुटे हो. अच्छे नम्बर लेकर नई क्लास मे भी तो जाना है. है ना. फिर सपना भी तो होगा किसी का डाक्टर बनने का तो किसी का इंजीनियर बनने का.
साकार करें अपना सपना
पता है, आज मुझे नेहा जिंदल मिली. नेहा ने हाल ही मे सिविल सर्विसिस की परीक्षा दी थी और अब जो गुजरात मे जज बन गई हैं. नेहा से मैने उनके बचपन के बारे मे पूछा तो उन्होने मुस्कुराते हुए बताया कि बचपन मे वो बहुत ही ज्यादा शरारती और पढाई से जी चुराती थी. मम्मी कहती पढो तो ही पढती थी नही तो खूब मस्ती और धमा चौकडी ही करती. पर मन मे बस एक ही बात थी कि बडे होकर कुछ बनना है.पर क्या बनना है ये समझ नही आ रहा था.
मम्मी पापा कहते जो विषय अच्छा लगे उसमे ही पढाई जारी रखो. दसवीं क्लास मे आने के बाद मन हुआ कि डाक्टर ही बन जाऊ पर बाद मे चाचा जी ने सुझाव दिया कि वकालत करो और जज बन कर दिखाओ. फिर उन्होने पंजाब यूनिवर्सिटी ज्वाइन कर ली. बस वही से उन्हे अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया. कुछ अच्छे दोस्तो की संगत मिली और पढाई के प्रति रुझान बढता ही गया. बस फिर एक ही सपना आखोँ मे बस गया कि चाहे कुछ हो जाए जज बन कर दिखाना है. नेहा ने बताया जब वो छोटी होती थी तो मम्मी पापा से पढाई ना करने पर डांट पडती पर अब डांट इसलिए पडने लगी कि वो बहुत ज्यादा पढाई कर रही हैं.
कई कई बार तो उन्होने दिन मे 17 धंटे भी पढाई की है. आज उसी मेहनत लग्न और जोश का नतीजा है कि उन्होने जो चाहा वो पा लिया है. आप नन्हे बच्चो को संदेश देते हुए नेहा ने कहा कि जिंदगी मे बदलाव आते रहते हैं पर एक समय आता है जब हमे लगता है कि हमने यह ही करना या बनना है. बस जीवन मे उसी निर्धारित लक्ष्य पर कायम रखते हुए दिन रात उसी मे जुटे रहना चाहिए. देर सवेर सफलता यकीनन हमारी कदमो मे ही होगी.
सच, नेहा मे बहुत सही कहा. अरे देखा, आपसे बात करते करते फिर समय का पता नही चला. अब मै चलती हूँ पर जाते जाते एक बात जरुर कहना चाहूँगी कि कोई भी विजेता उस समय नही बनता जब वो कोई काम्पीटिशन जीतता है बल्कि विजेता उन दिनो, धंटो,सप्ताह, महीनो, वर्षो मे बनता है जब वो उसकी तैयारी कर रहा होता है.
आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं…!!!
आपकी दीदी
मोनिका गुप्ता
उपर दी हुई चिठ्ठी में अलग विषय है
दीदी की चिठ्ठी कैसी लगी जरुर बताईएगा 🙂
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