क्लिक करिए और सुनिए स्वच्छता अभियान पर 4 मिनट और 35 सैकिंड की ऑडियो… मेरा अनुभव
स्वच्छता अभियान और मेरे मन की बात
बात स्वच्छता अभियान के दौरान की है. जब गांव गांव जाकर लोगों को जागरुक किया जा रहा था.लोगो को समझाया जा रहा था कि खुले मे शौच नही जाओ आसान नही था क्योकि सदियों से चली आ रही मानसिकता बदलना मुश्किल था.
एक बार महिलाओ को समझाने के बाद कि कोई अगर शौच के लिए बाहर जाए तो उसे रोको तो कुछ महिलाओं ने मुझे घेर लिया और बोली कि ठीक है निगरानी कर लेंगें पर हम को ये बता दो कि पैसा कितना मिलेगा… पैसा ??? किस बात का पैसा ??? इस पर वो बोली कि हम निगरानी करेगी.
सुबह शाम बच्चों बडो को बाहर शौच जाने से रोकेगी इसलिए..मैने उन्हे आराम से पूछा कि बताओ कितना पैसा चाहिए. कोई बोली पाचं सौ तो कोई बोली सात सौ रुपया महीना तो होना ही चाहिए. क्या ??? मैने कहा बस ?? 500 – 700 रुपए महीना. उन्होनें सोचा कि बहुत कम बोल दिया शायद तो एक खडी होकर बोली हजार मैडम जी हजार चाहिए. क्या ??? सिर्फ हजार !!!
सफाई की कीमत सिर्फ हजार रुपए. इस पर वो फिर सोचने लगी क्योकि शायद इतनी उम्मीद नही थी उनमे महिलाओं मे कानाफूसी होने लगी.मैने उन्हें शांत करवाया और बोला कि ये स्वच्छता अभियान है स्वच्छता अभियान … इस अभियान के अगर आप हजार क्या लाख भी मांगोगे तो भी कम है क्योकि ये जो काम आप लोग करने जा रहे हो यह अमूल्य है बहुमूल्य है इसकी कीमत का तो कोई अंदाजा ही नही लगाया जा सकता.
इस समय वहां पिन ड्राप साईलेंस थी. कोई सिर पर पल्लू डाले तो कोई नाक पर पल्लू रखे मेरी बात गम्भीरता से सुन रही थीं. मैने कहा अच्छा चलो एक बात बताओ … आपको ये पता है कि पहले हमारा देश आजाद नही था. बहुत लोगों ने कुर्बानी दी …
कुछ की आवाज आई कि म्हारा दादा म्हारा ससुर , तो कोई बोली म्हारे भी ताऊ, ने हिस्सा लिया था … मैने कहा कि अरे वाह !! ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप उस परिवार से हो … अच्छा ये तो बताओ कि क्या आपने कभी सुना कि जो लोग देश के लिए लडे. स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया उन्होने ये कहा हो कि हम इस लडाई मे तभी हिस्सा लेंगें जब आप हमें पैसे दोगे ..
सब हंसने लगी और बोली ऐसे थोडे ही न होता है बल्कि जिन जिन ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया उन्होनें अपने गहने, जेवर तक भी दान मे दे दिए थे. बिल्कुल … मैने कहा बस दिल में एक ही लग्न थी, जज्बा था और निस्वार्थ सेवा भाव था कि हर हालत में देश को आजाद करवाना ही है कितने लोग तो बेनाम ही रह कर देश के लिए लडे और जान कुर्बान कर दी कि देश को आजाद करवाना है और देखो सच्चे मन से देश के लिए लडे और आज हम आजाद है…
आज भी एक लडाई हमे लडनी हैं और वो लडाई है गंदगी के साथ …ताकि हमारी आने वाली पीढी स्वच्छता में सांस ले सके. उसका जड से सफाया करना है और उस्के लिए सभी का साथ चाहिए और निस्वार्थ सेवा भाव चाहिए और आप है कि पैसे मांग रहे हैं ..इन बातों ने उनको सोचने पर मजबूर कर दिया.
अचानक कुछ महिलाए बोल पडी … न जी हम कुछ नही लेंगें … सफाई रखेंगें और अपने गांव का देश मॆं नाम जरुर करेंगें … उस समय मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो मैने बहुत बडी लडाई जीत ली. बात गांव की नही बल्कि शहर की भी है अब तो जगह जगह शहर में भी गंदगी के ढेर दिखाई देते हैं…
प्रत्यक्षम किम प्रमाणम … आईए देखिए पहले गांव की क्या हालत होती थी और स्वच्छता अभियान के बारे में लोग की सोच क्या हो गई …
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गंदगी हम फैलातें हैं और दोष सरकार पर मढ देते हैं हम अपने कर्तव्य भूल जाते हैं अधिकार याद रखते हैं जबकि समाज के प्रति भी हमारे कुछ दायित्व हैं जिसको निभाना हमारा फर्ज है……….
वैसे स्वच्छता के बारे में आपकी क्या राय है ? जरुर बताईएगा …!!
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