Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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January 7, 2019 By Monica Gupta Leave a Comment

How to Be Mature – Mature कैसे बनें – How to Be Mature and Grow Up – Monica Gupta

How to Be Mature

How to Be Mature – Mature कैसे बनें – How to Be Mature and Grow Up – Monica Gupta –  आमतौर पर हम कहते मिल जाते है कि वो देखो कितना mature हो गया है वो या ये भी कहते मिल जाते हैं कि अरे mature हो जाओ… !! ये कैसे behave करते हो… responsible बनो  तो Mature कैसे बनें ?

How to Be Mature – Mature कैसे बनें –

देखिए जो maturity है ना इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं एक दस साल का भी mature हो सकता है वही 60 साल का भी immature… Maturity वो होती है कि हम खुद से और दूसरो से कैसे treat करते हैं कैसे सोचते हैं कैसे behave करते हैं अब प्रश्न ये उठता है कि कैसे बनें mature.. तो मैं आपको इस बारे में 5 बातें बता रही हूं.. इसे अपना कर हम हम अपनी personality  में बदलाव ला सकते हैं…

1.अपने goals Set करें और दृढ़ भी रहें

अगर हम mature होना चाहते हैं तो हमे हमारा एक goal सेट करना पडेगा.. और वो बिल्कुल clear और realistic हो और उसके बाद उस पर लगातार काम करना पडेगा… और उसे achieve करने के लिए पूरी मेहनत करनी पडेगी.. Never give up ये नहीं कि एक गोल बनाया कुछ दिन काम किया नहीं हो पाएगा चलो दूसरा गोल बनाते हैं.. चलो तीसरा गोल बनाते हैं..  उससे immaturity झलकती है.. एक ही बनाईए और लगातार उस पर जुटे रहें..

2. हमें सुनना ज्यादा चाहिए और बोलना कम चाहिए..

self-control होना चाहिए कि हमें कब और क्या बोलना है.. बात को अच्छी तरफ से सुनना आमतौर पर हम बातचीत में बीच में ही बोल पडते हैं.. बात काट देते हैं… बात को सही प्रकार से सुनना maturity की निशानी है… हम कई बार बहुत उतावले हो जाते है जैसे की कभी कोई कमेंट लिखा तो आपका जवाब नहीं आया क्या हो गया आप गुस्सा हो नाराज हो.. तो थोडी सी पैशंस रखनी चाहिए.. किसी भी बात पर ओवर रिएक्ट नहीं करना चाहिए… सिर्फ बोलने में ही नहीं बल्कि लिखने में भी अच्छे etiquette अपनाने चाहिए..

दूसरे लोगो के opinion का भी सम्मान करना चाहिए.. दूसरे की अपनी सोच है point of view अपने विचार हैं… तो उनके नजरिए को न समझना हमारी immaturity है.. अपनी अपनी चलाए जाना… कई बार समझदारी इस बात में भी होती है कि ज्यादा समझदारी न दिखाई जाए… accept कर लेना चाहिए कि सामने वाला जो कह रहा है कि चलो कोई बात नहीं… इसका मतलब ये भी नहीं होता कि हमने हार मान ली… तो ये बात भी अगर हम Develop कर लेंगें तो भी हम समझदार कहलाएगें..

3. कई बार हम जिंदगी में असफल हो गए तो दूसरा जिम्मेदार है…

इस तरह की शिकायत लगा देते हैं.. blame नहीं लगाना दूसरे पर.. खुद मेहनत कीजिए और comfort zone से बाहर आईए… मेहनत कीजिए… बार बार शिकायत करने से हमारी immaturity झलकती है.. अगर कोई हमें compliment देता है या हमें criticise करता है तो उसे maturity से स्वीकार करना चाहिए.. या बार बार दूसरे की बुराई करना दूसरे में नुक्स निकालना भी immature बनाता है… इस तरह की बातों को कई बार ये बहुत बचकानी लगती है… और हमारी immaturity झलकती है.. Avoid करना चाहिए

4.  तो खुद पर विश्वास रखिए..

self-confidence बनाएं अपनी strength को कभी भी underestimate नहीं कीजिए.. और ये तभी होगा जब हम अपने डर का सामना करेंगें… और ये तभी सम्भव होगा जब हम आशावादी होंगें… हमारी सोच पॉजिटिव होगी… जब ये फीलिंग हममे आ जाएगी तो लोग हमें mature कहने लगेंगें..

5. Mature लोगो की संगत में रहिए और mature topics पर बात कीजिए..

जैसे आज की खबर, राजनीति, पर्यावरण आदि पर ये नहीं कि किसी की चुगली कर रहे हैं, बुराई कर रहे है.. ऐसे विषयों पर बात करें जिनसे कुछ सीख सकें.. अच्छे बन कर रखिए,, नम्र बन कर रहिए और जो वायदा करे जो कहें उसे कर के भी दिखाएं… बजाय ये सोचने के कि लोग क्या कहेंगें लोग क्या सोचते हैं हम क्या सोचते हैं अपने बारे में ये ज्यादा जरुरी है..  Mature हम तब नहीं होते जब बडी बडी बाते करने लगते हैं बल्कि mature तब होते हैं जब छोटी छोटी बातें समझने लगते हैं…

How to Be Mature

January 5, 2019 By Monica Gupta Leave a Comment

Shanivar Vrat Katha – शनिवार व्रत कथा – Saturday Fast Story –

Shanivar Vrat Katha

Shanivar Vrat Katha – शनिवार व्रत कथा – Saturday Fast Story –  शनिवार का दिन अपने नाम के अनुरूप ही शनिदेव को समर्पित है। शनि अत्यंत विशिष्ट देव हैं। वे ग्रह भी है और देवता भी…. उनका प्रताप ऐसा है कि वे राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं…. श्री शनिदेव के पिताश्री- श्री सूर्यनारायण और छाया माताश्री हैं…

Shanivar Vrat Katha

आईए जानते हैं शनिदेव व्रत कथा.. हिंदु पौराणिक कथा के अनुसार एक समय स्वर्गलोक में ‘सबसे बड़ा कौन?’ के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुँचे और बोले- ‘हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है?’ देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए।

इंद्र बोले- ‘मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूँ। हम सभी पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी के राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं।

देवराज इंद्र सहित सभी देवता) उज्जयिनी नगरी पहुँचे। महल में पहुँचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुँच सकती थी।

अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- सोना, चांदी, कांसा, तांबा), सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए। धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवाकर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा।

देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- ‘आपका निर्णय तो स्वयं हो गया। जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वहीं सबसे बड़ा है।’

राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा- ‘राजा विक्रमादित्य! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगा।’

शनि ने कहा- ‘सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष (साढ़े साती) तक रहता हूँ। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है।

राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा। राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा।’

इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परंतु शनिदेव क्रोध के साथ वहाँ से विदा हुए।

राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे। उनके राज्य में सभी स्त्री-पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। उधर शनि देवता अपने अपमान को भूले नहीं थे।

विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्जयिनी नगरी पहुँचे। राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा।.

घोड़े बहुत कीमती थे। अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा विक्रमादित्य ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया।

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुए तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा।

तेजी से दौड़ता घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहाँ गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया। राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा। लेकिन उन्हें लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख-प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला।

राजा ने उससे पानी माँगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अँगूठी दे दी। फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से निकलकर पास के नगर में पहुँचा।

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया। उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्जयिनी नगरी से आया हूँ। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई।

सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और खुश होकर उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूँटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया।

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूँटी निगल गई।

राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूँटी ने हार को निगल लिया था। इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पाँव काटने का आदेश दे दिया। राजा विक्रमादित्य के हाथ-पाँव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया।

कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हाँकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा। शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई।

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी। उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा।

दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई। अतः उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया।

 

राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गए। रानी ने मोहिनी को समझाया- ‘बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है। फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?’

राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया।

आखिर राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा- ‘राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया।

मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है।’ राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की-

‘हे शनिदेव! आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना।’

शनिदेव ने कुछ सोचकर कहा- ‘राजा! मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करके मेरी व्रतकथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी।

प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पाँव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उसने मन ही मन शनिदेव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पाँव सही-सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई।

तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई।

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुँचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा। राजा ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था।

सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहाँ एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूँटी ने हार उगल दिया। सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्जयिनी पहुँचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें।

राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएँ शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं। सभी लोग आनंदपूर्वक रहने लगे

शनिवार के व्रत में पूजा के बाद शनिदेव की कथा अवश्य सुनें और दिन भर उनका स्मरण करते रहें, तो शनिदेव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं।

Shanivar Vrat Katha – शनिवार व्रत कथा – Saturday Fast Story –

तस्वीर- गूगल से साभार

कहानी – गूगल से साभार

January 4, 2019 By Monica Gupta Leave a Comment

How to Avoid Misunderstanding – रिश्तों में ग़लतफहमी – Relationship Tips in Hindi –

How to Avoid Misunderstanding

How to Avoid Misunderstanding – रिश्तों में गलतफहमी – Relationship Tips in Hindi – ग़लतफहमी कैसे avoid करें… हम सभी चाहते है कि एक दूसरे के साथ हमारा संम्बध मधुर हो.. पर कई बार कुछ ऐसी बात हो जाती है कि एक अच्छा खासा रिश्ता बिगड जाता है और दूरियाँ हमेशा के लिए बढ़ जाती हैं.. इसमें अहम रोल निभाती है  misunderstanding… ग़लतफहमी रखना ग़लती करने से ज्‍यादा खतरनाक होता है… तो इसे avoid कैसे करें…

How to Avoid Misunderstanding – रिश्तों में गलतफहमी – Relationship Tips in Hindi –

 

 हमारा रिश्ता चाहे किसी से घर पर हो, दोस्त के साथ हो या आफिस में हो.. कहीं भी हो पर एक छोटी सी ग़लतफहमी  रिश्ता हमेशा के लिए तोड़ सकती है.. तो ऐसा क्या करना चाहिए कि ग़लतफहमी हो ही ना.. यानि इसे avoid कैसे करें… इसके लिए मैं आपको बस 3 बातें ही बता रही हूं..

  1. सबसे पहली है कि सुनना है और वो भी ध्यान से.. सामने वाला क्या बोल रहा है उसे ध्यान से सुनना है या जो लिखा हुआ है उसे ध्यान से पढ़ना है और समझना है कि वो क्या कहना चाह रहा है… अगर हम ध्यान दे कर बात सुनेंगे तो ग़लतफहमी का कोई चांस नहीं रहेगा..

2.  फिर बात आती है कि समझना है…जो सामने वाला कह रहा है उसे समझना है कि वो क्या और किस तरीके से कह रहा है. जैसे मान लीजिए मैंनें एक सहेली को फोन किया कि मेरे घर लंच पर आना तो उसने बोला कि नहीं आ पाएगी… और हमारा फोन कट गया नेटवर्क नहीं था.. इस बीच में मैनें assume कर लिया कि उसमें तो बहुत अकड आ गई.. मैं उसे आगे से कभी नहीं बुलाऊंगी.. ये हो गई शुरुआत गलत फहमी की… तो assume नहीं करना बल्कि बात की तह तक जाना है

3. यानि Verify  करना है. यही है तीसरा point  कि Verify करें… हम अगर गलत फहमी पाल कर रखना चाहते हैं तो कुछ भी न करें पर अगर इसे avoid करना चाहते हैं तो Verify जरुर करना चाहिए कि असल में, हुआ क्या? या तो मैं फोन मिला लूं कि बात करते हुए फोन कट गया था जब मैं ये भी सोच सकती हू कि जब वो बात कर रही थी तो उसकी आवाज ज्यादा happy  नहीं थी…

कही कोई बात तो नहीं हुई.. तो बात पूरी तरह से जान कर ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए..  और जो भी doubts हैं उसे क्लीयर कर लेना चाहिए…

और Communicate करके बात की तह तक पहुंचा जा सकता है..

और हम जब भी बात करें सोच समझ कर बोले… कई बार हमारी body language या हमारी बात करने में tone से भी ग़लतफहमी हो सकती है… तो जब भी बात करें सीधे और स्पष्ट तरीके से करें.. ताकि गलत फहमी की कोई गुंजाईश ही न रहे…

क्योंकि एक बार हो गई और हमने clear  नहीं की और बहुत समय हो गया तो ego ही दीवार खड़ी हो जाती है…  जिसे दूर करना कई बार नामुमकिन हो जाता है…

ग़लतफहमी रखना गलती करने से ज्‍यादा खतरनाक होता है। तो इससे बचना चाहिए…

और वैसे जिंदगी बहुत छोटी है अगले पल का पता ही नहीं इसलिए लगे हाथ इसे clear कर लेना चाहिए..

और कई बार होता है कि गलत फहमी हो ही गई उसे दूर कैसे करें.. इस बारे में में भी जल्दी वीडियो बनाऊंगी पर फिलहाल तो यही कोशिश होनी चाहिए कि गलतफहमी हो ही न..

How to Avoid Misunderstanding

December 29, 2018 By Monica Gupta Leave a Comment

Parenting Tips for Teenagers – बच्चों की परवरिश कैसे करें

Parenting Tips for Teenagers

Parenting Tips for Teenagers – बच्चों की परवरिश कैसे करें –  Parents पूछ्ते हैं कि Teenagers को deal कैसे करें, कैसे handle करें… तो मैं उनसे कहती हूं कि Teenagers कोई situation नहीं है जिसे हम handle or deal करें… वो इंसान हैं person है और हमें Treat करना है वो भी प्यार से… respect से… Teenage बुरी नहीं है ….  ये Parents के लिए और साथ ही साथ बच्चों के लिए difficult टाईम होता है पर अगर हमने बच्चों को अच्छे से समझ लिया तो यकीन मानिए.. ये भी खूबसूरत बन सकता है… पर अब प्रश्न आता है कि कैसे ?? तो इसके बारे में मैं आज बता रही हूं 9 बातें..

Parenting Tips for Teenagers – बच्चों की परवरिश कैसे करें

1. पहला है बातचीत… communicate जब आमतौर पर हम teen से बात करते हैं तो जवाब होता है हां या न बस इतना ही इससे ज्यादा नहीं और अगर Parents बात करना शुरु भी करते हैं तो वो  किसी भी पल argument बन जाती है… तो क्या करना चाहिए ऐसे में

बात सुने.. हम अपनी चलाते हैं और सुनते नहीं है तो उनकी बात सुने.. बच्चा ये चाहता है कि उसे सुना जाए और समझा जाए ना कि सीधा ही जज बन कर अपना फैसला सुना दें..

उनके साथ समय बीताए. अगर समय बिताएगें तो बच्चे को समझ पाएगें.. उसके दिल में दिमाग में क्या चल रहा है बिना साथ बैठे समय बिताए हम नहीं पता लगा सकते..

हर समय बच्चे पर पहरा न रखे.. Privacy दें.. space दीजिए… आजादी भी दीजिए.. बार बार जासूसी करने से हम उन्हें खुद चिढा रहे हैं.. कौन है किससे बात हो रही है… बहुत ज्यादा और बार बार नहीं होना चाहिए..

teen एक half-grown adult है उसे guidance चाहिए वो दीजिए बात बात पर बजाय ये बताने की ये करो ये नहीं.. बातचीत के दौरान ही बताईए कि क्या सही है क्या गलत है..

एक अच्छे दोस्त की तरह बात कीजिए.. और अगर वो किसी वजह से गुस्से में है तो आप प्यर से संयम से बात कीजिए.. अकसर हम पेरेंटस ही बच्चे पर चिल्लाना शुरु कर देते हैं तो ऐसा तो बिल्कुल नहीं करना क्योंकि ऐसा करने से बच्चा गुस्से में पैर पटकता हुआ अपने कमरे में चला जाएगा.. कमरा भडाम से बंद कर देगा फिर आपको ही चिंता होगी कि कुछ आवाज भी नहीं आ रही .. पता नहीं क्या कर रहा है.. फिर दरवाजा जोर जोर से खट खटाएगे तो बेहतर है कि ऐसी नौबत आने ही न दे.. आराम से बात करें.. और जताने की भी जरुरत नहीं कि हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं… बताने की बजाय उसे महसूस करवाईए.. कुल मिला कर घर का माहौल ऐसा बनाए कि वो खुल कर बात कर सके..

2.  खुल कर बात… कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन पर खुल कर बात होनी चाहिए.. जैसे मान लीजिए हार्मोनल चैंज आते हैं तो बच्चे से बात कीजिए कि ये तो होता ही है.. गर्ल्स में बदलाव आते हैं.. तो हाईजीन का ख्याल रखना बहुत जरुरी होता है.

बहुत बार ऐसा होता है बच्चे खुल कर बात नहीं करते और फिर झूठ बोलने लगते हैं जैसे कि बच्चे से नशे के बारे में खुल कर बात करनी चाहिए कि ये शरीर के लिए कितना नुकसानदायक है.. किस तरह से शरीर को नुकसान देता है.. और ड्रग्स लेने से, अपने पास रखने से तो जेल भी हो सकती है..  करने से और  जेल भी हो सकती है.. कई बार होता है कि बच्चा स्मोक करने लग गया या चलो एक पार्टी में थोडी ही शराब पी तो इस बारे में खुल कर बात करनी चाहिए… कई बार पेरेंटस एक दूसरे पर बात डाल देते हैं तो जिससे बात करने में बच्चा ज्यादा कम्फतटेब्ल हो उन्हें बात जरुर करनी चाहिए

3. जो चीज मना करने वाली है मना करनी चाहिए पर हर चीज को मना नहीं करना चाहिए… जैसा कि एक बच्चे को शौक हुआ कि बाल कलर करवाने है तो चलो कोई बात नहीं पर जैसे टेटू बनवाना है उसे तो हमेशा के लिए हो जाएगा.. या होठ, नाक पर कान पर छेद करवाना है तो जरुर समझाना चाहिए कि फिर ये हमेशा के लिए हो जाएगा.. और समझदारी से बात करनी है… choose your battles wisely

4. बच्चों के दोस्तों के बारे में भी जानना बहुत जरुरी है… उनके बॉय फ्रेंड गर्ल फ़्रेंड के बारे में जानना.. उन्हें अपने घर ईंवाईट करें.. ताकि आपको भी पता लगे कि कौन कैसा है… उसकी आदत कैसी है.. क्योंकि दोस्त बच्चे के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं.. और अगर कोई बात उनकी अच्छी नहीं लगती तो बच्चे को कारण देकर समझाई कि वो किसलिए सही नहीं है..

5.  rules जरुर बने होने चाहिए.. यानि boundries हो पर इस बात का भी ख्याल रखना है कि हमारी expectation reasonable हों.. कि रात को 8 बजे के बाद घर से बाहर नहीं जाना… दोस्तों के साथ मूवी नहीं जाना… हां पर ये भी जरुर हो कि अगर जा रहे हैं तो फोन पर टच में रहे.. और बताते रहे कि कितने देर तक पहुंच जाईया.. रात के 12 बज रहे हैं पेरेंटस फोन कर रहे हैं और बच्चे का मोबाइल बंद आ रहा है… इससे चिंता होनी स्वाभाविक है… और जो हम रिल बनाए वो अगर नहीं फ़ॉलो किए तो क्या सजा हो… वो सजा भी मिलकर ही बनानी है.. ताकि बच्छा भी इस बात से अवेयर हो..

6.  बच्चों को responsible जिम्मेदार बनाएं.. उन्हें भी कुछ डिसीजन लेने की जिम्मेदारी सौंपें.. तभी बन पाएगें responsible… नहीं तो बात बात पर निर्भर ही रहेंगें.. और सिर्फ अपने और घर के प्रति ही नहीं.. परिवार और समाज के प्रति भी जिम्मेदार बनाए… किसी एनगीओ या वोलियंटर बन कर भी जिम्मेदारी दे सकते हैं..

7.  फिर बात आती है कि parenting पर technology हावी न होने दे… आपने बच्चे को स्मार्ट फोन लाकर दिया वो सारा दिन इसी में लगा रहे और बात भी न करे… तो ये भी समझाना है.. मना नहीं करना  बस जरुरत ये समझाने की है कि बैलेंस बना कर चले बच्चा.. टीवी, वीडियो गेम्स, मोबाइल में ही उलझ कर न रह जाए..

8. बच्चों को confident बनाना है.. खासकर लडकियो को.. उन्हें strong और bold बनाना है सिर्फ  looks पर ही ध्यान देने की बजाय अपने करेक्टर पर ज्यादा फोकस करें कैसे किस situation का सामना करना है वो बताना चाहिए.. वही बॉयस के लिए भी हम बोलते हैं कि लडके कभी नहीं रोते… तो उन्हें इमोशन के साथ डील करना सिखाए.. emotional होना अच्छा है.. और जो उनकी फीलिंग है हंसी की खुशी की उदासी की नाराजगी की..की.. ये कोई गलत नहीं है.. बस डील करना सीखाना है..

9. वही लड़कों को लड़कियों की इज़्ज़त करना सीखाना है.. वो भी एक इंसान है उसमें भी भावनाएं हैं उसका मज़ाक बनाना या उसके बारे में बातें बनाना नहीं चाहिए… खुद की आदर दें और अगर की आदर न करे तो उसे भी वो समझाए कि ये गलत बात है.. ऐसा नहीं करना चाहिए..

तो ये हैं कुछ बातें.. हम अगर कहते हैं कि बच्चे जिद्दी है, कहना नहीं मानते, समझते नहीं तो हमें अपने भीतर ही टटोल कर देखना होगा कि कहां कमी रह गई है..

Parenting Tips for Teenagers – बच्चों की परवरिश कैसे करें

December 25, 2018 By Monica Gupta Leave a Comment

New Year Resolutions – नए साल के संकल्प

New Year Resolutions

New Year Resolutions – नए साल के संकल्प – समय की एक खास बात होती है और वो ये कि टिकता नहीं है टिक टिक करता हुआ चलता ही रहता है.. अब जैसे देखिए साल कैसे देखते ही देखते बीत भी गया… जैसे हम हर रोज कैलेंडर की तारीख बदलते थे अब एक दिन आएगा जब हम कैलेंडर  ही बदल देंगें यानि नए साल का कैलेंडर  दीवार पर हमारी मेज पर सजा होगा.. तो कहने का मतलब यही है कि समय परिवर्तनशील  है बदलता रहता है…कभी खुशी कभी गम,  कभी पाना कभी खोना कुछ खोकर पाने की आशा यही है जीवन की परिभाषा –

New Year Resolutions – नए साल के संकल्प

और हम भी परिवर्तन चाहते हैं सभी चाहते है कि आने वाला साल बहुत अच्छा बीते… और ये हो भी सकता है अगर हम संकल्प ले तो.. और ठान लें… उस पर strict  हो जाएं..

क्या क्या हमारे Resolutions हो सकते हैं?? कुछ संकल्प ऐसे हैं जो हम सभी पर फिट बैठते हैं मैं आपको 5 संकल्प बता रही हूं…

1 खुद का ख्याल रखने का संकल्प… सबसे ज्यादा और सबसे जरुरी है अपनी सेहत का ख्याल रखना.. अगर हमारी हैल्थ अच्छी नहीं होगी तो हम कुछ भी नहीं कर पाएगें… तो अपनी सेहत का ख्याल रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए और अगर इसके इसके लिए रेगयूलर हैल्थ चैकअप करवाते रहना भी अच्छा है  अच्छी डाईट, चलना फिरना , अच्छी नींद लेना, ओर्गेनाईजड रहना अपनी रुटीन सेट करना और उस पर फॉलो करना…

2.  अपने रिश्तों को बेहतर बनाने का संकल्प… इसके लिए सबसे पहले तो माथे से बल निकाल कर रिलेस कीजिए और प्यारी सी स्माईल रखिए.. गुस्से को, चिल्लाने को चिढने को,जलन ईर्ष्या  को कर दीजिए टाटा बाय..और क्वालिटी टाईम दीजिए…  अपने परिवार को समय दीजिए… केयर कीजिए, और जता भी दीजिए.. टाईम सारा दिन मोबाइल या टीवी में वेस्ट नहीं

उंगलिया ही निभा रही है रिश्ते आजकल, जुबां से निभाने का वक़्त कहाँ है सब टच में बिजी है पर टच में कोई नहीं है

3.  अपने ड्रीम्स को, अपने पैशन को कैसे परस्यू करने का संकल्प .. इसमें जुट जाईए… टाईम मैनेज कीजिए… घबराना नहीं है.. challenge डर का सामना करना है.. मजबूती से.. कोई गलती हो गई तो बैठना नहीं चलो कोई नहीं अब इसे नहीं करुंगा ,मुझे सबक मिला है… जज्बा ये होना चाहिए कि

एक ना एक दिन हासिल कर ही लूंगा मंज़िल, ठोकरे ज़हर तो नहीं , जो खा कर मर जाऊंगा

एक और बहुत खूबसूरत बत पढी थी कि एक व्यक्ति जब एवरेस्ट पर नहीं चढ पाया तो बोला कि कोई न मैं दुबारा आऊंगा.. तुम तो एक पहाड़ हो अपनी शक्ति नहीं बढा सकते पर मैं तो बढा सकता हू ना आऊंगा और तुम पर विजय करके दिखलाऊंगा..

  1. खुद पर ध्यान देना है.. self improvement खुद का better version बनना है… अपनी परसनेल्टी, अपनी बॉडी लेग्वेज पर ध्यान देना है.. अपने माईनस पोईट खोजना जिंदगी का सबसे बड़ा प्लस पोईंट है… पॉजिटिव सोच रखनी है.. दूसरे को एप्रीशिएट करना है.. कुछ मैजिक वर्डस का खुल कर यूज करना है जैसे वाह, बहुत खूब  ‘Sorry’, ‘please’ and ‘thank you’ मैं को बाहर निकाल करना है

बस दिलो को जीतना ही ज़िन्दगी का मकसद होना चाहिए

वरना, दुनिया जीतकर भी सिकंदर खाली हाथ ही गए थे

  1. Financial goals set करना… इन सबके साथ साथ बहुत जरुरी है कि income  के सोर्स खोजना और savings करना.. बे हिसाब खर्च पर लगाम लगाना.. जो बहुत जरुरी है उसमे कंजूसी नहीं करना पर सम्भल कर चलना..

तो ये हैं कुछ ऐसे सकंल्प अगर आप पूरे दिल से निभाएगें तो आप खुद में बदलाव पाएगें.. वैसे आपके मन में आ रहा होगा कि हम ले तो लेते हैं पर पूरा नहीं कर पाते तो उसके लिए भी एक वीडियो बनाया हुआ है और इस बारे में भी बनाया है कि नए साल की शुरुआत कैसे करें… दोनो के लिंक नीचे से रही हूं…

जिंदगी एक संधर्ष ही तो है… जंगल में हर रोज सुबह होने पर हिरण ये सोचता है कि मुझे शेर से तेज दौड़ना है नही तो वो मुझे खा जाएगा..

वही हर सुबह शेर ये सोचता है कि मुझे हिरण से तेज दौड़ना है वरना मैं भूखा मर जाऊंगा …

आप शेर हो या हिरण कोई फर्क नही अगर अच्छी जिंदगी जीनी है तो हर रोज संघर्ष करना पडेगा…!!  

कभी खुशी कभी गम,  कभी पाना कभी खोना कुछ खोकर पाने की आशा यही है जीवन की परिभाषा

New Year Resolutions – नए साल के संकल्प

December 24, 2018 By Monica Gupta Leave a Comment

Solah Somvar Vrat Katha – सोलह सोमवार व्रत कथा

somvar vrat katha

Solah Somvar Vrat Katha – सोलह सोमवार व्रत कथा – Solah Somvar Vrat Katha in Hindi हिंदू धर्म में सोलह सोमवार के व्रत का विशेष महत्व है। वैसे तो भगवान शिव की शुभ आशीष पाने के लिए सोलह सेामवार का व्रत हर कोई कर सकता है, परंतु जिनके विवाह में कुछ अड़चन आ रही हो या अगर कोई मनचाहा जीवनसाथी पाना चाहता हो, तो उन्‍हें विशेष तौर पर सोलह सोमवार के व्रत करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है, कि पार्वती जी ने भी सोलह सोमवार व्रत करके महादेव शिव को पाया था। आईए सुनते हैं सोलह सोमवार व्रत कथा…

Solah Somvar Vrat Katha – सोलह सोमवार व्रत कथा – Solah Somvar Vrat Katha in Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर भ्रमण की इच्छा से भगवान शिव और पार्वतीजी अमरावती नगर में पहुँचे। वन-उपवन और सुंदर भवनों को देखकर भगवान शिव को नगर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने कुछ दिन उसी नगर में रहने के लिए कहा। माता पार्वती को भी अमरावती नगर बहुत अच्छा लगा..

उस नगर के राजा ने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था। शिव और पार्वती उस मंदिर में रहने लगे। एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है।’ पार्वती की इच्छा जानकर शिव पार्वती के साथ चौसर खेलने बैठ गए। खेल प्रारंभ होते ही उस मंदिर का पुजारी वहाँ आ गए। पार्वती ने पुजारी से पूछा- ‘पुजारीजी! चौसर के खेल में हम दोनों में से किसकी विजय होगी?’उस समय शिव और पार्वती परिवर्तित रूप में थे। पुजारी जी ने एक पल कुछ सोचा और झट से बोला- ‘चौसर के खेल में त्रिलोकीनाथ की विजय होगी।´ यह कहकर पुजारी पूजा-पाठ में लग गए

कुछ देर बाद चौसर में शिवजी की पराजय हुई और पार्वतीजी जीत गईं।

पार्वतीजी ने ब्राह्मण पुजारी के मिथ्या वचन से रुष्ट होकर उसे कोढ़ी हो जाने का शाप दे दिया और शिव और पार्वती उस मंदिर से कैलाश पर्वत लौट गए। पार्वती जी के शाप से कुछ ही देर में ब्राह्मण पुजारी का सारा शरीर कोढ़ से भर गया। नगर के स्त्री-पुरुष उस पुजारी की परछाई से भी दूर-दूर रहने लगे। कुछ लोगों ने राजा से पुजारी के कोढ़ी हो जाने की शिकायत की तो राजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उसे मंदिर से निकलवा दिया। उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया। कोढ़ी पुजारी मंदिर के बाहर बैठकर भिक्षा माँगने लगा। कुछ दिन बाद स्वर्गलोक की कुछ अप्सराएँ उस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आईं। कोढ़ी पुजारी पर उनको बहुत दया आई। उन्होंने पुजारी से उस भयंकर कोढ़ के बारे में पूछा। पुजारी ने उन्हें भगवान शिव और पार्वतीजी के चौसर खेलने और पार्वतीजी के शाप देने की सारी कहानी सुनाई। शाप की कहानी सुनकर अप्सराओं ने पुजारी से कहा कि तुम सोलह सोमवार का विधिवत व्रत करो। तुम्हारे सभी कष्ट, रोग-विकार शीघ्र नष्ट हो जाएँगे।

पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर अप्सराओं ने कहा- ‘सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नान आदि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर,आधा सेर गेहूँ का आटा लेकर उसके तीन अंग बनाना। फिर घी का दीपक जलाकर

गुड़, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल, जनेऊ का जोड़ा आदि कुछ सामग्री लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना। पूजा के बाद तीन अंगों

में एक अंग भगवान शिव को अर्पण करके शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना।

इस तरह व्रत करते हुए जब सोलह सोमवार बीत जाएँ तो सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना। फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुष और बच्चों को प्रसाद बाँट देना।

इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव तुम्हारे कोढ़ को नष्ट करके तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे। इतना कहकर अप्सराएँ स्वर्गलोक को चली गईं।

पुजारी ने अप्सराओं के कथन अनुनुसार विधिवत सोलह सोमवार का व्रत किया फलस्वरूप भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका कोढ़ नष्ट हो गया। राजा ने उसे फिर मंदिर का पुजारी बना दिया। मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता हुआ ब्राह्मण पुजारी आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा।

 

कुछ दिनों बाद पुन: पृथ्वी का भ्रमण करते हुए भगवान शिव और पार्वती उस मंदिर में पधारे। स्वस्थ पुजारी को देखकर पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा तो पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई।

पार्वतीजी भी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने पुजारी से इसकी विधि पूछकर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया। पार्वतीजी उन दिनों अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर चले जाने से बहुत चिन्तित रहती थीं। वे कार्तिकेय को लौटा लाने के अनेक उपाय कर चुकी थीं, लेकिन कार्तिकेय लौटकर उनके पास नहीं आ रहे थे।

सोलह सोमवार का व्रत करते हुए पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय के लौटने की मनोकामना की। व्रत समापन के तीसरे दिन सचमुच कार्तिकेय वापस लौट आए। कार्तिकेय ने अपने हृदय-परिवर्तन के संबंध में पार्वतीजी से पूछा- ‘हे माता ! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया था, जिससे मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया?’ तब पार्वतीजी ने कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा कह सुनाई।

कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे। वह वापस नहीं आ रहा था। उसको वापस लौटाने के लिए कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए ब्रह्मदत्त के वापस लौट आने की कामना प्रकट की। व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया

ब्रह्मदत्त ने लौटकर कार्तिकेय से कहा- ‘प्रिय मित्र! तुमने ऐसा कौन-सा उपाय किया था जिससे परदेस में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया?’ कार्तिकेय ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि कह सुनाई। ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने भी व्रत करना शुरू कर दिया।

सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद ब्रह्मदत्त यात्रा पर निकला। कुछदिनों बाद ब्रह्मदत्त एक नगर में पहुँचा। नगर के राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था।

उस स्वयंवर में अनेक राज्यों के राजकुमार आए थे। स्वयंवर में राजा हर्षवर्धन की हथिनी जिसके गले मेंजयमाला डाल देगी, उसी के साथ राजकुमारी का विवाह होना था। ब्रह्मदत्त भी उत्सुकतावश महल में चला गए। वहाँ कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे।

तभी एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहाँ आई। उस हथिनी केपीछे राजकुमारी गुंजन दुल्हन की वेशभूषा में चल रही थी। हथिनी ने ब्रह्मदत्त के गले में जयमाला डाल दी फलस्वरूप राजकुमारी का विवाह ब्रह्मदत्त से हो गया….सोलह सोमवार व्रत के प्रभाव से ब्रह्मदत्त का भाग्य बदल गया। ब्रह्मदत्त को राजा ने बहुत-सा धन और स्वर्ण आभूषण देकर विदा किया।

अपने नगर में पहुँचकर ब्रह्मदत्त आनंद से रहने लगा। एक दिन उसकी पत्नी गुंजन ने पूछा- ‘हे प्राणनाथ! आपने कौन-सा शुभकार्य किया था जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी।’ ब्रह्मदत्त ने सोलह सोमवार व्रतकी सारी कहानी बता दी। अपने पति से सोलह सोमवार का महत्व जानकर राजकुमारी गुंजन ने पुत्र की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया। निश्चित समय पर भगवान शिव की अनुकम्पा से राजकुमारी के एक सुंदर व स्वस्थ पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र का नामकरण गोपाल के रूप में हुआ। दोनों पति-पत्नी सुंदर पुत्र को पाकर बहुत खुश हुए।

पुत्र ने भी माँ से एक दिन प्रश्न किया कि मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया इसका क्या कारण है। माता गुंजन ने पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की जानकारी दी और कहा कि भगवान शिव के आशीर्वाद से ही मुझे तुम जैसा गुणी व सुंदर पुत्र मिला है। व्रत का महत्व जानकर गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प किया। गोपाल जब सोलह वर्ष का हुआ तो उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। व्रत समापन के बाद गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया।

उस नगर के राजा के महामंत्री राजकुमार के विवाह के लिए सुयोग्य वर की तलाश में निकले थे।

राजा ने गोपाल को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। फिर गोपाल से उसके माता-पिता के संबंध में बातें करके, उसे अपने साथ महल में ले गए।

वृद्ध राजा ने गोपाल को पसंद किया और बहुत धूमधाम से राजकुमारी का विवाह उसके साथ कर दिया। सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुँचकर आनंद से रहनेलगा।

दो वर्ष बाद राजा का निधन हो गया तो गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से गोपाल की राज्य पाने की इच्छापूर्ण हो गई। राजा बनने के बाद भी गोपाल विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा। व्रत के समापन पर सत्रहवें सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से कहा कि व्रत की सारी सामग्री लेकर वह समीप के शिव मंदिर में पहुँचे।

मंगला ने पति की बात की परवाह न करते हुए सेवकों द्वारा पूजा की सामग्री मंदिर में भेज दी। मंगला स्वयं मंदिर नहीं गई। जब गोपाल ने भगवान शिव कीपूजा पूरी की तो आकाशवाणी हुई- ‘हे राजन्! तेरी रानी मंगला ने सोलह सोमवार व्रत का अनादर किया है। सो रानी को महल से निकाल दे, नहीं तो तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा। तू निर्धन हो जाएगा।

’आकाशवाणी सुनकर गोपाल बुरी तरह चौंक पड़ा। उसने तुरंत महल में पहुँचकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी मंगला को बंदी बनाकर ले जाओ और इसे दूर किसी नगर में छोड़ आओ।´ सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन तत्काल किया। मंत्रियों ने राजा से प्रार्थना की कि वे रानी को अन्यत्र न भेजें

तब राजा गोपाल ने आकाशवाणी वाली बात बताई तो वे भी भगवान शिव के प्रकोप के भय से चुप होकर रह गए। रानी मंगला भूखी-प्यासी उस नगर में भटकने लगी। मंगला को उस नगर में एक बुढ़िया मिली। वह बुढ़िया सूत कातकर बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था। बुढ़िया ने मंगला से कहा- ‘बेटी! यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुँचा दो और सूत बेचने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें धन दूँगी।’

मंगला ने बुढ़िया की बात मान ली। लेकिन जैसे ही मंगला ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आँधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आँधी में उड़ गया। मंगला को मनहूस समझकर बुढ़िया ने उसे दूर चले जाने को कहा।मंगला चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुँची।

उस तेली ने तरस खाकर मंगला को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे। तेली ने मंगला को मनहूस जानकर तुरंत घर से निकाल दिया। भूखी-प्यासी रानी वहाँ से आगे की ओर चल पड़ी। रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया।

अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी। चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुँची।उस जंगल में एक तालाब था। उसमें निर्मल जल भरा हुआ था। निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई। जल पीने के लिए रानी ने तालाब की सीढ़ियाँ उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, तभी उस जल में असंख्य कीड़े उत्पन्न हो गए। रानी ने दु:खी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत की।

 

दोपहर की धूप से परेशान होकर रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर आराम करना चाहा तो उस पेड़ के पत्ते पल भर में सूखकर बिखर गए। रानी दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी तो उस पेड़ के पत्ते भी गिर गए। रानी तीसरे पेड़ के पास पहुँची तो वह पेड़ ही नीचे गिर पड़ा।

पेड़ों के विनाश को देखकर वहाँ पर गायों को चराते ग्वाले बहुत हैरान हुए।ग्वाले मनहूस रानी को पकड़कर समीप के मंदिर में पुजारीजी के पास ले गए।रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी अवश्य किसी बड़े घर की है। भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है।

पुजारी ने रानी से कहा- ‘पुत्री! तुम कोई चिंता नहीं करो। मेरे साथ इस मंदिर में रहो। कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा।’ पुजारी की बातों से रानी को बहुत सांत्वना मिली। रानी उस मंदिर में रहने लगी, लेकिन उसके भाग्य में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। रानी भोजन बनाती तो सब्जी जल जाती, आटे में कीड़े पड़ जाते। जल से बदबू आने लगती।

पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले-‘हे पुत्री! अवश्य ही तुझसे कोई अनुचित काम हुआ है। जिसके कारण देवता तुझसे नाराज होकर, तुझे इतने कष्ट दे रहे हैं।’ पुजारी की बात सुनकर रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में न जाकर, शिव की पूजा नहीं करने की सारी कथा सुनाई।

पुजारी ने कहा- ‘अब तुम कोई चिंता नहीं करो। कल सोमवार है और कल से तुम सोलह सोमवार के व्रत करना शुरू कर दो। भगवान शिव अवश्य तुम्हारे दोषों को क्षमा करके तुम्हारे भाग्य को बदल देंगे।’ पुजारी की बात मानकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए। सोमवार को व्रत करके, विधिवत शिव की

पूजा-अर्चना करके रानी व्रतकथा सुनने लगी।

जब रानी ने सत्रहवें सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया तो उधर उसके पति राजा गोपाल के मन में रानी की याद आई। गोपाल ने तुरंत अपने सैनिकों को रानी मंगला को ढूँढकर लाने के लिए भेजा। रानी को ढूँढते हुए सैनिक मंदिर में पहुँचे और रानी से लौटकर चलने के लिए कहा। पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया और सैनिक निराश होकर लौट गए। उन्होंने लौटकर राजा को सारी बातें बताईं।

राजा गोपाल स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुँचे और रानी को महल से निकाल देने के कारण पुजारीजी से क्षमा माँगी। पुजारी ने राजा से कहा- ‘यह सब भगवान शिव के प्रकोप के कारण हुआ है। इसलिए रानी अब कभी भगवान शिव की पूजा की अवहेलना नहीं करेगी।’ पुजारीजी ने समझाकर रानी मंगला को विदा किया।

राजा गोपाल के साथ रानी मंगला महल में पहुँची। महल में बहुत खुशियाँ मनाई गईं। पूरे नगर को सजाया गया। लोगों ने उस रात दिवाली की तरह घरों में

दीपक जलाकर रोशनी की। ब्राह्मणों ने वेद-मंत्रों से रानी मंगला का स्वागत किया। राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया। नगर में निर्धनों को वस्त्र बाँटे गए।

रानी मंगला सोलह सोमवार का व्रत करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहने लगी। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसके जीवन में सुख ही सुख भर गए। सोलह सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में किसी तरह की कमी नहीं होती है। स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं..

 

(तस्वीर गूगल से साभार )

Solah Somvar Vrat Katha – सोलह सोमवार व्रत कथा – Solah Somvar Vrat Katha in Hindi

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