रक्तदान और हीमोफीलिया
आमतौर पर जब भी मैं स्वैच्छिक रक्तदान के बारे मे लोगो को प्रेरित करती हूं तो थैलेसीमिया तथा हीमोफीलिया नामक बीमारी का जिक्र जरुर करती हूं क्योकि इन रोगो के होने पर रक्त की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता पडती है.थैलेसीमिया के मरीजो से तो बहुत बार बात हुई है पर हीमोफीलिया के किसी मरीज से कभी मिलना नही हुआ. हीमोफीलिया अनुवांशिक रोग है. जिसमे शरीर के बाहर बहता रक्त जमता नही है.लगातार बहता ही रहता है. इस कारण ऐसे रोगियो के लिए कोई भी चोट या दुर्धटना जानलेवा हो सकती है.
तभी एक दिन श्री जगदीश कुमार जी से मुलाकात हुई. 49 साल के जगदीश जी जम्मू में रहते हैं और सीनियर लेक्चरर हैं. जगदीश जी हीमोफीलिया से पीडित हैं. दिल्ली मे जन्मे जगदीश को बचपन मे अक्सर नकसीर या दांत टूटने पर रक्तस्राव तो होता पर कभी इस बारे मे सोचा नही कि यह एक बीमारी भी हो सकती है.
सन 90 मे अचानक परिवार मे एक साथ तीन मौत हुई. एक इनकी माता जी की और दो मामा जी की. जगदीश जी ने बताया कि जब इनकी माता जी को पीजीआई चंडीगढ ले कर गए तब उनको इस बीमारी का पता चला. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अत्याधिक रक्तस्राव के कारण उनकी माता जी नही बच पाई.
सन 94 मे इनको कोहनी से रक्तस्राव होने लगा. जोकि 24-25 दिन लगातार होता ही रहा. तब ये दिल्ली के एम्स मे भर्ती हुए और चैकअप करवाया तब पता चला कि यह बीमारी इनको भी है. वहां के डाक्टर ने बताया इलाज का खर्च 5 लाख आएगा.
जगदीश बहुत साधारण से परिवार से है पर फिर भी कैसे भी करके रुपया इकठठा करके इलाज करवाया गया. थोडा ठीक होने पर जब ये वापिस जम्मू पहुचे तब तक यह मन मे ठान चुके थे कि ऐसे लोगो की एक संस्था बनाएगे और इस बारे मे आम जनता को जागरुक करेगे. करीब सौ से ज्यादा उन्हे जम्मू मे ऐसे मरीज मिले और इन्होने अपनी जेब से रुपए लगाकर संस्था का गठन किया.
आजकल ये संस्था जगह जगह कैम्प लगाकर बच्चों और बडो को इस रोग के बारे मे जागरुक करती है. कैम्प लगाती है और इंजेक्शन आदि लगाने का भी प्रबंध करती है. जगदीश जी ने बताया कि चाहे घर पर हो या आफिस मे, सडक पर जा रहे हो या किसी वाहन मे, बहुत ध्यान से रहना पडता है.
हर समय एक अंजाना सा डर लगा रहता है कि कही कट ना लग जाए, चोट न अलग जाए. इसके साथ साथ दवाई खासकर दर्द निवारक दवा भी बहुत ध्यान से लेते हैं. कोई भी दवाई डाक्टर से पूछ कर लेनी पडती हैं. काफी लोग तो इस बीमारी के आने पर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.
जगदीश जी ने बताया कि वो सिर्फ और सिर्फ रक्तदाताओ की वजह से ही जिंदा हैं. अगर उन्हे रक्त नही मिलेगा तो इस बीमारी से पीडित कोई भी रोगी बच नही पाएगे. उन्हें इस बात का दुख है कि पढे लिखे लोग भी रक्तदान के प्रति जागरुक नही है इसलिए सभी रक्तदाताओ से उन्होने नम्र निवेदन किया कि स्वैछिक रक्तदान करें और दूसरो को भी इसके लिए प्रेरित करें क्योकि उनके द्वारा दिया हुआ अमूल्य दान बहुत घरों के चिरागो को बुझने से रोक सकता है.
जगदीश जी ने बताया कि आज बेटे हर तीसरे महीने नियमित रुप से रक्तदान करते हैं और जब तक उन्हे अपनी बीमारी का भी पता नही था तब तक वो भी 11 बार रक्तदान कर चुके थे.
वाकई में, जगदीश जी बहुत बहादुरी से इस बीमारी का सामना कर रहे है. संस्था के माध्यम से ना सिर्फ वो जनता को बीमारी के प्रति जागरुक कर रहे है बल्कि इस बीमारी से पीडित दिलो मे नई आशा का भी संचार कर रहे हैं. उनकी यह एक छोटी सी पहल है पर अगर हम दिल से उनका साथ देना चाह्ते है तो स्वैछिक रक्तदान करके उनका साथ देना चाहिए. इस बीमारी का मात्र रक्तदान ही उपचार है कोई शक नही कि रक्तदान वाकई मे पुण्य का काम है. और मह्त्वपूर्ण बात यह है कि हम यह कर सकते हैं.
जगदीश जी के उत्साह को देखते हुए बस एक ही बात मन मे आ रही है …
जो सफर की शुरुआत करते हैं
वो मंजिलो को पार करते हैं
एक बार चलने का हौंसला तो रखो
मुसाफिर का तो रास्ते भी इंतजार करते हैं
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