Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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August 7, 2015 By Monica Gupta

मैंगो फैस्टिवल

mango

मैंगो फैस्टिवल यानि आम का त्योहार.

कुछ दिन पहले अखबार मे  पढा कि मैंगो फेस्टिवल चल रहा है. पढते-पढते अचानक हंसी आ गई. बुरा ना मानिएगा पर सच  मे, आजकल , आम आदमी का ही त्योहार चल रहा है और उस त्योहार का नाम है ‘महंगाई’. कोई हाल है क्या. अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और ज्यादा गरीब पर असली बैंड बज रहा है आम आदमी का. जिसकी हालत किसी भी तरह आम की विभिन्न किस्मो से अछूती नही है.

पैरी, मलिका और सुंदरी बनने के दिन तो अब हवा हुए … महंगाई ने  तो जनाब  उसका अचार,चटनी और मुरब्बा बना कर रखा हुआ है. किसी मिक्सी मे गोल गोल घूमते शेक की तरह उसकी हालत हो गई है जिसे हर नेता या पैसे वाला बहुत तबियत से स्वाद ले लेकर  निचोड रहा है. बेचारे का रंग  सफेदा की तरह् सफेद पड गया है मानो किसी ने सारा का सारा खून निचोड लिया हो. और अब तो ये हालत हो गई है कि वो सीधा चलना ही भूल गया है और लंगडा आम की तरह लगड़ा कर चल रहा है. अम्बी जैसी खटास जीवन मे भर गई है और शरीर पीला इस कदर हो गया है मानो जन्म से ही पीलिया का मरीज हो …

उफ ये आम आदमी !! ना जाने कितने सब्जबाग तोता परी सपने देखे होगे इसने भी. पर जिस तरह दशहरे मे रावण धू-धू करके चल जाता है ठीक वैसे ही उसके सपने भी दशहरी हो चले है और सब …!!! बेचारे ही हालत आम पापड जैसी हो चली है … जिसे काला नमक डाल कर बडा स्वाद लेकर खाया  जाता है

इससे भी बढ कर  विडम्बना क्या होगी कि अब आम ही नही खा पा रहा आम आदमी. तो हुआ ना ये  आम आदमी का  त्योहार.  इस त्योहार के  लिए ना तो आपको कही टिकट लेना पडेगा और ना कही जाना पडेगा. नजर घुमा कर तो देखिए जनाब,  मैंगो मैन फेस्टिवल ही फेस्टिवल दिखाई दे जाएगा जिसमे आम आदमी फुस होता ओह क्षमा करें हाफुस होता दिखाई देगा …

कैसा लगा ये लेख … जरुर बताईगा 🙂

August 7, 2015 By Monica Gupta

वो तीस दिन -बाल उपन्यास

monica gupta woh tees din

वो तीस दिन -बाल उपन्यास  ( मोनिका गुप्ता)

क्या ??? आपने अभी तक नही पढी … पढ लीजिए बहुत ही अच्छा बाल उपन्यास है वो तीस दिन … फिर न कहना कि हमें तो पता ही नही था नही तो जरुर पढते … अब तो online भी ले सकते हैं नेशनल बुक ट्रस्ट की साईट पर जाकर ..

 

August 6, 2015 By Monica Gupta

एक पत्र सरकार के नाम

कैसे आएगी स्वच्छता

 

writing letter  photo

 

एक पत्र सरकार के नाम

एक बच्ची की चिठ्ठी

नमस्ते सरकार अंकल,

आप कैसे हैं? आशा है ठीक ही होंगें. सरकार अंकल वैसे मुझे चिट्ठी लिखने का जरा भी अनुभव नही हैं क्योकि आजकल ईमेल का जमाना है पर मेरे मम्मी-पापा कहते हैं कि अगर सरकार तक कोई बात पहुंचानी हो तो पत्र ही लिखा जाता है… इसीलिए मै अपनी बात पत्र के माध्यम से ही कह रही हूं.

सरकार अंकल, वैसे मैं अभी छ्ठी स्कूल में ही पढ़ रही हूं पर खुद को लगता नहीं कि मै छोटी हूं क्योंकि घर पर और बाहर इतनी टेंशन है कि मुझे लगता है कि मै समय से पहले ही बहुत बडी हो गई हूं. मेरा बचपन कहीं खो सा गया है. खैर,यह बात बताने के लिए मैने आपको पत्र नही लिखा है. बल्कि मै आपसे कुछ निवेदन करना चाह्ती हूं.

सरकार जी, सच पूछो तो मुझे काला धन, स्विस बैंक या लोकपाल के बारे मे जरा-सी भी जानकारी नही है और न ही मेरे दिमाग में ये सारी बातें आ पाएंगी. मै तो बस आपसे जरा सी विनती करना चाहती हूं कि हर रोज होने वाले बंद और हडतालों को रुकवा दीजिए. मेरे पापा की छोटी-सी दुकान है जिससे हम तीन भाई-बहनो का खर्चा चलता है. कभी किसी तो कभी किसी वजह से दुकान बंद हो जाती है तो उस दिन हमें फाका करना पडता है और सभी को खाली पेट ही सोना पडता है.

दूसरी बात यह है कि  बिजली ही नही होती. बहुत कट लगते हैं  और कभी गलती से आ भी जाए तो वोल्टेज इतना कम होता है कि लगता ही नही कि बिजली है. फोन करो तो कोई फोन नही उठाता या फिर नम्बर व्यस्त आता रहता है. बरसात हो तो सुनने को मिलता है कि पीछे से गई है, पता नही कब आएगी.

अगली बात मेरे स्कूल से है. हैरानी है कि हमारे टीचरो को अपने विषय का ज्ञान ही नही है. अगर कोई बच्चा खडा होकर कोई प्रश्न पूछ ले तो वो  नाराज हो जाते हैं और कक्षा से बाहर खडे होने की सजा दे देते हैं. वैसे तो टीचर हैं ही कम, ऊपर से सरकार के काम से अक्सर डयूटी लग जाती है तो पढाई की वैसे ही छुट्टी हो जाती है. आप इस बात  पर भी  जरुर ध्यान देना कि स्कूल मे कृपा करके मिडडे मील बंद हो जाए.

हर रोज गंदा खाने से पेट खराब तथा दर्द अब सहन नही होता. इसके  इलाज के लिए रुपया अलग से खर्च करना पडता है, इस करके हम घर से खाना लाकर खुश है.

सरकार अंकल, अगली बात यह कि कचहरी के फैसले जल्दी करवा दिया करो. मेरे दादा जी की जमीन का केस पिछ्ले 24 साल से चल रहा है. दादा जी भी अब नही रहे और पिताजी को बार-बार तारीख पर जाना पडता है जिस करके बहुत तनाव हो जाता है हमारे घर पर. शायद एक लाख मिलना है पर अभी तक जैसाकि  मैने मम्मी पापा को बाते करते सुना है लाख से ज्यादा तो खर्चा अभी तक हो ही गया है.

सरकार अंकल, मुझे अपना भारत देश बहुत अच्छा लगता है. कल ही मैने निबंध प्रतियोगिता ने ‘मेरा भारत महान’ विषय पर लेख लिखा था जिसके लिए मुझे सम्मानित भी किया गया था. मै भी देश के लिए बहुत कुछ करना चाहती हू पर इतनी परेशानियां और दुख मेरी हिम्मत को तोड रहे हैं.

अंकल, कोई गलती हो तो क्षमा करना. मैने पहले भी लिखा था कि मुझे ज्यादा समझ नही है, ज्ञान भी नही है पर, असल मे, अपने परिवार और दोस्तो का दुख देखा नही जा रहा था इसलिए आपको पत्र लिखना पड़ा. नही तो मै आपको तकलीफ नही देती. मै जानती हू कि आपके कंधों पर कितना बोझ है.

पता नही कि  मेरा ये पत्र आपको कब तक  मिलेगा. पर जब भी मिलेगा मुझे आशा ही नही पूरा विश्वास है कि आप मुझ  छोटी-सी बच्ची की बात का जवाब जरूर देग़ें.

आपके घर पर सब कैसे हैं? सबको हमारी तरफ से नमस्कार बोलना.

पत्र के जवाब इंतजार मे

शेष फिर

आपकी नन्ही  देशवासी

 

August 6, 2015 By Monica Gupta

धारावाहिकों के किरदार

 

tv serial indian photo

Photo by jepoirrier

 

धारावाहिकों के किरदार

एक जानकार को डिनर पर आमत्रित करने के लिए फोन किया तो उन्होने कहा कि वो साढे नौ बजे के बाद  ही घर से चलेगें क्योकि वो अपना पसंदीदा सीरियल छोड नही  सकते. वैसे ये कहानी घर घर की है पर मेरा मानना ये है कि  टीवी  सीरियल सीरियसली कभी नही देखना चाहिए क्योकि ना सिर्फ मुख्य किरदार कभी भी बदल सकते हैं बल्कि  कहानी 10- 20 साल तक भी आगे जा सकती है और तो और  पूरी  कहानी ही बदल सकती है … कुछ समय पहले एक सीरियल आता था लौट आओ तृष्षा … कहानी हट कर थी इसलिए देखना शुरु किया .. इस मे वो बच्ची भी थी जो बजरंगी भाईजान मे थी.

खैर, देखते ही देखते अच्छी खासी सस्पैंस वाली कहानी  बिल्कुल ही बदल गई. फिर उसमे अलग अलग  कोर्ट केस ही रह गए  जिसका पहले की कहानी से कोई लिंक ही नही था और केस भी ऐसे जो हर बार नई कहानी लेकर आते  जैसाकि  अदालत सीरियल मे होते थे कभी वो सीरियल 40 मिनट का होता कभी 50 मिनट का  और फिर अचानक सीरियल ही बंद हो गया.

एक धारावाहिक महाराणा प्रताप आ रहा है दो साल आगे कर दिया कोई दिक्कत नही दिक्कत तब आई जब मुख्य पात्र अकबर को ही बदल दिया. जरा सोचना चाहिए जो अपना समय निकाल कर इन धारावाहिको को देखते हैं उनके दिल पर क्या गुजरती होगी .एक समय था जब 13 एपिसोड ही  होते थे दर्शक दिल से देखते थे फिर एपिसोड की संख्या बढने लगी अब तो कोई हाल ही नही. शायद ही कोई बिरला सीरियल  होगा जिसका कभी कोई किरदार ही न बदला हो… यकीनन सभी किरदार बहुत मेहनत करते हैं और अपना बेस्ट भी देते हैं पर अगर देखते ही देखते किरदार ही बदल जाए तो दर्शक बेचारा भी क्या करे किसके पास जाए किसके पास रोना रोए … आज के फास्ट लाईफ मे वो भी तो समय निकाल रहा है ना देखने के लिए ….

तो अगर आप किसी भी धारावाहिक को देख रहे है जरुर देखिए उसका पुन प्रसारण भी देखिए पर अचानक  बदलाव के लिए  भी तैयार रहिए  और सबसे अहम बात ये कि इन सीरियल्स को  सीरियसली देखना बंद कर दीजिए…

August 6, 2015 By Monica Gupta

हमारा पशु प्रेम

 

animals photo

Photo by magnus.johansson10

                                  हमारा पशु प्रेम (व्यंग्य)

तू इस तरह से मेरे जिंदगी मे शामिल है जहां भी जाऊं ये लगता है तेरी महफिल है …. रुकिए रुकिए ज्यादा सोचिए मत!!! असल मे, यह गाना मैं पशुओ के लिए गुनगुना रही हूं जो हमारे चारो तरफ है. जिधर देखू तेरी तस्वीर नजर आती है…क्या???

 आपको विश्वास नही हो रहा चलिए मै बताती हूं. सुबह सुबह घर से आफिस  जाने के लिए  निकलती हूं तो हमारी पडोसन गजगामिनी उर्फ मुन्नी अक्सर हमारे गेट के आगे फल और सब्जियो के छिलके फैकती मिल जाती है. असल मे, वो क्या है ना सडक पर धूमने वाले सांड और बैल भूखे रहे यह उसे सहन नही होता और उसके घर के आगे उनका नाच हो यह भी उसे अच्छा नही लगता इसलिए वो अच्छी पडोसन होने के नाते अपना प्यार दिखाती हुई ,छिलके फेंक कर मीठी मुस्कुराहट लिए भीतर चली जाती है और मै भी जल्दी से कार मे बैठ कर दफ्तर लपकती हूं कि कही लडाई करते सांड और बैल मेरा रास्ता ही ना रोक ले.

अब रास्ते की बात करे तो सडक पर एक मैन होल का ढक्कन किसी ने चुरा लिया तो गऊ माता उसमे गिर गई थी. ना सिर्फ लोग बल्कि चैनल वाले भी लाईव कवरेज के लिए माईक लेकर खडे सनसनी पेश कर रहे थे और यह अब तो हर रोज की ही बात हो गई हैं.

हमेशा की तरह भारी ट्रैफिक से बच बचाकर किसी तरह  दफ्तर पहुची तो  मेरा स्वागत बुलडोजर से  हुआ. क्या !! आप उसे भी  नही जानते !! बुलडोजर हमारे बास के कुत्ते का नाम है पर श्श्श्श्श्श … उसे  कुछ भी कहना …पर…. कुत्ता मत कहना. बास बुरा मान जाएगे.खैर, जैसे ही मै बास के रुम मे पहुंची तभी उनकी श्रीमति जी का फोन आ गया और शेर से वो अचानक भीगी बिल्ली बन कर म्याऊ म्याऊ करके बात करने लगे. उफ ये पशु प्रेम !!

अपनी सीट पर आई तो एक फाईल गायब थी तभी पता चला कि आज बंदरो की टोली आई थी खिडकी के रास्ते. हो सकता है कि कागज,वागज उठा कर ले गए हो. मैने सिर पकड लिया कि अब बलि का बकरा मै ही बनने वाली हूं और हुआ भी यही चाहे आप इसे बंदर धुडकी कहे या गीदद भभकी … मुझे घर भेज दिया गया कि आप जाकर आराम करें. कल बात करेगे.

देखे कल ऊटं किस करवट बैठता है सोचते सोचते  मै घर लौट आई. पर बात अभी भी खत्म नही हुई. घर पर चूहे बिल्ली की कोई कार्टून चल रही थी.सच, उफ!!! जानवरो ने तो मुझे कही का नही छोडा.आज अगर मेरी नौकरी जाएगी भी तो वो भी सिर्फ बंदर की वजह से.सच मे, ये जानवर जिंदगी मे इस कदर हावी हो गए है कि मुझे  काला अक्षर भैंस बराबर लगने लगा है और मैं खडी बास यानि भैस के आगे बीन बजा रही हूं और शायद  मगरमच्छ के आसूं बहा रही हू पर .. पर … पर …!!!

तभी भैंस का  मेरा मतलब  बास का फोन आ गया. उन्हे शाम को अपनी पत्नी के साथ शांपिग जाना था और मेरी डय़ूटी लगा दी कि बुलडोजर को पार्क मे घुमाने ले जाना है क्योकि मैनें उन्हे बताया हुआ था कि मुझे जानवरो से विशेष प्रेम है इसलिए मरती क्या न करती. मुस्कुरा  कर हामी भर् दी.सोचा शेर के मुहं मे हाथ डालने से क्या फायदा.अब तो जल्दी ही बुलडोजर के बहाने गधे को बाप बना कर अपनी प्रोमोशन  का राग जरुर छेड दूगी और मै बछिया का ताऊ बनी जी हजूरी मे जुट गई.

सडक पर बुलडोजर इतरा कर चल रहा था जैसे अपनी गली मे कुत्ता भी शेर हो. सैर सपाटा करवा कर घर पहुची तो पडोसन मुन्नी रात के खाने की तैयारी कर चुकी थी. गेट के आगे  छिलको मे मटर और गाजर भी थी लग रहा था कि शायद मेहमानो को बुलाया है नही तो सुबह शाम मैथी,गोभी और आलू के छिलको से ही दो चार होना पडता है मै खडी खडी सोच ही रही थी तभी  ना जाने कहां से बैलो के जोडे को छिलको की महक आई और वो अचानक  सरपट भागते भागते आए और छिलके खाने मे जुट गए और मै डर के मारे घर के भीतर भागी. तभी फोन की घंटी घनघना उठी बास का फोन था  कि कल सुबह जल्दी आ जाना क्योकि शाम को घर लौटते वक्त कोई बैल अचानक उनकी  गाडी के सामने आ गया टक्कर हो गई और उन्हे  पैर मे फ्रैक्चर हो गया है….

तो  मै सही हू  ना … जानवर हमारी  जिंदगी मे शामिल हुए कि नाहि  …  इसलिए जहां भी जाए ये लगता है …!!!!

जरुर बताईएगा कि आपको हमारा पशु प्रेम कैसा लगा ??

August 5, 2015 By Monica Gupta

Traffic

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आज गूगल सर्च के दौरान जब गूगल का साईन देखा तो समझ नही आया कि ये क्या है … उसमे ट्रैफिक लाईट बनी हुई थी और ट्रैफिक भी था. पर भला हो नेट का बहुत जल्दी पता चल गया कि आज ट्रैफिक लाईट का 100वा जन्मदिन है …

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सडक के ट्रैफिक के साथ साथ सोशल साईटस पर हमारा भी ट्रैफिक बनाए रखिए … शुभकामनाएं !!! Best wishes !!!

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