Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 28, 2015 By Monica Gupta

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का – बच्चों, आचार्य जगदीश चन्द्र बोस का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां, इन्होंने पता लगाया था जैसे हम गर्मी, सर्दी, दर्द का अनुभव करते हैं वैसे ही पौधे भी अनुभव करते हैं।

बचपन वैज्ञानिकों का

प्रो0 जगदीश चन्द्र बोस  ने पौधो की सजीवता देखने और मापने के बेहद संवेदनशील यंत्र बनाया जिसका नाम क्रेस्कोग्राफ था। पता है, इसकी मदद से यह तक जाना जा सकता था कि पौधा हर सैंकिंड़ में कितना बढ़ता है।

30 नवम्बर, 1858 को बंगाल के मैमन सिंह जिले के फरीदपुर गांव में इनका जन्म हुआ। इस बालक के पिता फरीदपुर के डि़प्टी मैजिस्ट्रेट थे। इनकी शिक्षा गांव में ही हुर्इ। पांच वर्ष की आयु से ही यह घोड़े पर बैठ कर विधालय में पढ़ने जाते थे। यह साहसी बहुत थे। पता है,

बचपन में इनका नौकर इन्हें रोमांचक, साहसी कहानियां सुनाता था। इनका नौकर पहले ड़ाकू था। किन्तु जेल से लौट कर आने के बाद यह सुधर गया और वसु को साहसी बनाने में इनके नौकर का योगदान रहा।

जब यह नौ वर्ष के हुए तो यह पढ़ार्इ के लिए कलकत्ता चले गए। वहां इनके दोस्त तो कोर्इ बने नहीं इसलिए पौधाें को उखाड़-उखाड़ कर इनकी जड़ो को देखा करते। यह तरह-तरह के फल-फूल उगाने के भी बेहद शौकिन थे। बस तब से बसु पौधों की दुनिया में इतने लीन हो गए कि इनके अनुसंधानों से पूरी दुनिया हैरत में पड़ गर्इ। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है।वे विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का

श्री निवास रामानुजम

मद्रास के तंजौर जिले के  इरोद नामक छोटे से गांव के स्कूल में शिक्षा पार्इ श्री निवास रामानुजम ने। इसी बालक को रायल सोसाइटी ने अपने फ़ैलो बनाया जोकि स्वयं में ही बहुत बड़ा सम्मान था और सम्पूर्ण एशिया में सम्मानित होने वाले यह प्रथम व्यकित थे। रामानुजम गणितज्ञों में शिरोमणि कहे जाते हैं। इनके बचपन की एक से सौ तक की संख्या का जोड़ निकालने को बोला और अध्यापक निशिचंत होकर बैठ गए कि सभी विधार्थी आराम करेंगे लेकिन बालक रामानुजम अध्यापक के आराम में खलल ड़ाल दिया उन्होंने असाधारण तरीके से इसका जोड़ निकाला। जिसे देखकर अध्यापक हैरान ही रह गए। बचपन से श्रीनिवास की गणित के प्रति बेहद रूचि थी। अपनी किताब की तो फटाफट पढ़ार्इ कर लेते और फिर अगली कक्षा की गणित लेकर पढ़ार्इ करते।

 

ड़ा0 हरगोविंद सिंह खुराना

ड़ा0 हरगोविंद सिंह खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को पंजाब के छोटे से गांव रायपुर में हुआ। यह पांच भार्इ-बहन थे। पता है, यह बचपन से ही बहुत तेज थे। तीसरी कक्षा से ही इन्हें छात्रवृति मिलनी शुरू हो गर्इ थी। सारा दिन यह पढ़ते ही रहते थे। अपनी मां से पता है यह किस तरह रेस लगाते थे। इनकी मां तवे पर रोटी ड़ालती और दूसरी तरफ यह तरफ यह सवाल हल करना शुरू करते। दोनों में होड़ रहती थी कि पहले रोटी सिकेगी या फिर सवाल हल होगा।

 

गैलेलियो गैलिलार्इ

विज्ञान के महारथी गैलेलियो गैलिलार्इ (1564-1642) को कौन नहीं जानता। इन्होंने ही इस बात का खंडन किया था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं घूमता बलिक पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। सूर्य तो ब्रह्राांड़ का केन्द्र है। यह बचपन से ही खोजी प्रवृति के रहे। इनका जन्म 15 फरवरी, 1564 को टस्कनी राज्य के इटली (पीसा नगर) में हुआ। इनके पिता संगीत व गणित के विद्वान थे। बांसुरी बजाना, चित्रकारी के अतिरिक्त इन्हें पढ़ार्इ का बेहद शौक था। गैलिलयो के पिता इन्हें ड़ाक्टर बनाना चाहते थे। ड़ाक्टरी पढ़ने के लिए इन्हें पीसा विश्वविधालय में दाखिल करवाया गया लेकिन इनका मन धार्मिक कार्यों में नहीं लगता था। मजबूरन इन्हें गिरजाघर जाकर थोड़ी देर खड़ा रहना पड़ता था। पता है, यही पर एक खोज ने जन्म लिया। एक बार गिरजाघर में खड़े-खड़े तांक-झांक कर रहे थे कि इन्होंने एक लालटेन देखी वो रस्सी से लटकी इधर-उधर झूल रही थी। हवा धीमी होने पर लालटेन की झूलने की दूरी तो कम हो गर्इ इधर-उधर चक्कर काटने में उसे इतना समय लगा। गैलिलयो ने अपनी नब्ज़ की धड़कन से यह निरीक्षण किया और बस, पेंडुलम के सिद्धांत के आधार पर यही यांत्रिक घडि़यां बनीं। इन्होंने दूरबीन भी बनार्इ और उसका रूख आकाश की ओर रखा। गैलिलयो की खोजे ही आगे चलकर न्यूटन की खोजों का आधार बनी।

न्यूटन

न्यूटन ने भी गैलिलयो के बारे में कहा कि वह एक दिग्गज थे, इन्हीं के कन्धों पर चढ़कर मैंने दुनिया देखी। सर आइजक न्यूटन (1642-1727) को कौन नहीं जानता। गिरते सेब को देखकर इन्हीं के मन में ख्याल आया कि यह सेब नीचे कैसे गिरा ऊपर क्यों नहीं गया। इसी समस्या पर विचार करके उन्होंने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत की स्थापना की।

प्रिसीपिया न्यूटन द्वारा रचित महान ग्रंथ है। लेकिन बचपन में इनके जीवन में दुख के सिवाय कुछ नहीं था। जब न्यूटन पैदा हुए तो इनके पिता चल बसे। मां ने दुबारा विवाह कर लिया और नानी ने इनकी देखभाल की। गांव से छ: मील दूर ग्रैथम के स्कूल में यह शिक्षा के लिए जाते थे। पढ़ार्इ में यह तब कमजोर थे। एक बार लड़ार्इ में इन्होंने एक बच्चे को हरा दिया।

बस, उसी दिन से उन्होंने सोच लिया कि जब वह लड़ार्इ में हरा सकते है तो पढ़ार्इ में क्यों नहीं। देखते ही देखते पढ़ने की लगन ने इन्हें सबसे प्रतिभाशाली बालक बना दिया। न्यूटन ने अनेंको खोजे की। नम्र स्वभाव वाला न्यूटन समाज के सम्मानित  व्यक्तियाें में से एक थे।

मार्इकल फैराड़े

मार्इकल फैराड़े (1797-1867) महान वैज्ञानिक थे। पता है, बचपन में वह जिल्दसाज थे। कापी, पुस्तकों में जिल्द चढ़ाते थे और पता है जिल्द चढ़ाते-चढ़ाते वह उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ते थे। फैराड़े का मुख्य कार्य विधुत और चुम्बक पर था। उन दिनों की बात है जब रायल इंस्टीटयूट के अध्यक्ष सर हंफ्री डेवी ने अपनी पुस्तक जिल्द के लिए दी। जब वह जिल्द वाली पुस्तक लेने पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वह बालक पुस्तक पढ़ रहा है। वह हैरत में पड़ गए। पता है उन्होंने फैराडे़ की उस पुस्तक से परीक्षा भी ली और उन्होंने सभी उत्तर ठीक दिए। यही बालक महान वैज्ञानिक बनकर रायल इंस्टीटयूट का निदेशक बना।

आंइस्टाइन

उल्म के दक्षिण जर्मन में आंइस्टाइन का जन्म हुआ। वह कहते थे कि मेरा मस्तिष्क ही मेरी प्रयोगशाला है। लेकिन यह महान वैज्ञानिक बचपन में एकदम नालायक थे। इनके अध्यापक ने तो यहां तक कह दिया था कि इन जैसा नालायक उन्होंने आजतक नहीं देखा। फिर उन्होंने स्वयं ही घर पर पढ़ार्इ की और पढ़ार्इ में जबरदस्त निपुणता हासिल की।

आंइस्टाइन के चाचा इंजीनियर थे। गणित में उन्होंने ही आंइस्टाइन को पढ़ार्इ करवार्इ और ज्यामिती उनका प्रिय विषय बन गर्इ। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अलबर्ट काक इजराइल लोगों ने उन्हें राष्ट्रपति बनाना चाहा। लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। वह जीवन भर शांति के लिए प्रयास करते रहे और वह राष्ट्रपिता गांधी से बहुत प्रभावित थे।

डॉ0 अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम

चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉ0 अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक हैं, जो देश के राष्ट्रपति (11वें राष्ट्र पति के रूप में) के पद पर भी आसीन हुए। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्र्पति (अन्य दो राष्ट्र पति हैं सर्वपल्लीन राधाकृष्णन और डॉ0 जा़किर हुसैन) भी हैं, जिन्हें राष्ट्रीपति बनने से पूर्व देश के सर्वोच्च‍ सम्मा्न ‘भारत रत्न’ से सम्मा‍नित किया गया।

अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तामिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्‍यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुल आब्दीन नाविक थे। वे पाँच वख्त के नमाजी थे और दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते थे। कलाम की माता का नाम आशियम्मा था। वे एक धर्मपरायण और दयालु महिला थीं। सात भाई-बहनों वाले पविवार में कलाम सबसे छोटे थे, इसलिए उन्हें अपने माता-पिता का विशेष दुलार मिला।

पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वमरम के प्राथमिक स्कूल में कलाम की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। उनकी प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उनपर विशेष स्नेह रखने लगे। एक बार बुखार आ जाने के कारण कलाम स्कूल नहीं जा सके। यह देखकर उनके शिक्षक मुत्थुश जी काफी चिंतित हो गये और वे स्कूल समाप्त होने के बाद उनके घर जा पहुँचे। उन्होंने कलाम के स्कूल न जाने का कारण पूछा और कहा कि यदि उन्हें किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो वे नि:संकोच कह सकते हैं।

कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे। वहाँ से 5 बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते। 8 बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते।

उसके बाद तैयार होकर वे स्कूल चले जाते। स्कूल से लौटने के बाद शाम को वे अखबार के पैसों की वसूली के लिए निकल जाते। कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहाँ रोटियाँ कम खाई जाती हैं।

लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था। इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियाँ अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनीं रोटियाँ ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी। इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर माँ से लिपट गये।

प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्ना्लॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रूख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।

 

indian APJ kalam photo

Photo by indianexponent.com

 

बचपन वैज्ञानिकों का… तो बच्चों बताना  की आपको ये लेख कैसा लगा …

 IBN Khabar

एपीजे अब्‍दुल कलाम : भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति और भारत रत्‍न एपीजे अब्‍दुल कलाम भारत में मिसाइल मैन के नाम से भी जाने जाते हैं। 1962 में वे ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ में शामिल हुए। कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। 1980 में कलाम ने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। उन्‍हीं के प्रयासों की वजह से भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। खास बात यह है कि इन्‍होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया।

जयंत विष्‍णुनार्लीकर : महाराष्‍ट्र के कोल्‍हापुर में जन्‍में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जयंत विष्‍णुनार्लीकर भौतिकी के वैज्ञानिक हैं। उन्‍होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग की थ्‍योरी के अलावा नये सिद्धांत स्थायी अवस्था के सिद्धान्त (Steady State Theory)पर भी काम किया है। उन्‍होंने इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर काम किया और हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित नार्लीकर ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान साहित्‍य में भी अपना अमूल्‍य योगदान दिया।

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बचपन वैज्ञानिकों का… तो बच्चों बतानाकी आपको ये लेख कैसा लगा … अगर आप भी किसी वैज्ञानिक के बारे मे कुछ जानते हों तो भी जरुर बताना

प्रतिभा हम सभी में छिपी रहती है हमें जरूरत है थोड़ी सी हिम्मत, मेहनत, लग्न और आत्मविश्वास की। हो सकता है हम भी बड़े होकर महान लोगों में अपना नाम शामिल कर लें।

ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ – Monica Gupta

ऐसा था इनका बचपन बचपन से बडे बडे लोगों की जीवनी और उनके बचपन को पढने का बहुत शौक था. अगर बच्चे इन्हें पढे तो प्रेरणा ले सकतें है महापुरुषों की कहानियाँ पढ क read more at monicagupta.info

 

बचपन वैज्ञानिकों का

June 27, 2015 By Monica Gupta

Education System


class room photo
Photo by jinkazamah

Education System

आज भोपाल के स्कूल की खबर दिखा रहे थे कि चैनल वाले स्कूल जाकर अंग्रेजी की कुछ स्पैलिंग पूछ रहे थे टीचर्स से और वो उसका जवाब नही दे पा रहे थे वो स्पैलिंग थी grammar की और वो ज्यादातर grammer यानि er लगा कर बोल रहे थे. यहां तक की स्कूल के मुख्य अध्यापक ने भी गलत बताया.

ऐसी ही एक खबर पिछ्ले दिनों भी दिखाई थी जब  यूपी बोर्ड के पेपर चैक हो रहे थे और जो चैक कर रहे थे उन्हे स्पैलिंग का ही ज्ञान नही था ऐसे में क्या तो वो पेपर चैक करेंगें और क्या वो बच्चो को मार्क्स देंगें. मेहनत करने के बाबवूद भी बच्चे गर्त में चले जाते हैं और  कई बच्चे तो डिप्रेशन में  भी चले जाते हैं

इस बात से मुझे अपनी उस सहेली की याद आ गई जो स्कूल और कालिज में बहुत नालायक हुआ करती थी और रो पीट कर  म्यूजिक प्रैक्टिकल में सिफारिश से पूरे अंक ले लिए   और आज वो सिफारिश के बल पर  ही टीचर बनी घूम रही है … ऐसे मे क्या तो वो पढाएगी और क्या बच्चों का भविष्य होगा.

पहले तो मुझे लगा कि शायद अब उसमे सुधार आ गया होगा और अच्छी टीचर बन कर बच्चों को पढा रही होगी पर उसी स्कूल के कुछ बच्चों से जब बात करके पता चला तो बेहद दुख हुआ कि इसमें बच्चों का क्या कसूर कसूरवार हमारा सिस्टम है और ऐसे सिस्टम का लाभ उठाते हैं कुछ सिफारिशी लोग… ये तो एक उदाहरण है ऐसे न जाने कितने उदाहरण होंगें जो  education System को खराब कर रहे हैं ऐसी न जाने कितनी कहानियां होगी जोकि   गति अवरोधक का काम कर रहीं हैं. बहुत जरुरी है इसे सुधारना अन्यथा … 🙁

June 26, 2015 By Monica Gupta

टेंशन दाखिले की

टेंशन दाखिले की

इंजिनियरिंग का रिजल्ट आने के बाद से बेहद गहमागहमी है कि दाखिला कहां लेंगें. कुछ को अच्छा कालिज मिलने की उम्मीद है तो कुछ मायूस है. ऐसे में एक मित्र के बेटे के ज्यादा अच्छे नम्बर नही आए हैं और उसने इस साल ड्राप करने निर्णय लिया है.

हालाकि पिछ्ले साल भी वो बाहर कोचिंग ले रहा था पर उसके इस निर्णय से उसके पेरेंटस खुश नही हैं वो चाहते है कि साल खराब नही करना चाहिए और जिस कालिज मे दाखिला मिल रहा है उसमे ले ले. मैने भी यही कहा क्योकि काम्पीटिशन इतना बढ गया है कि अगले साल का रिस्क नही लेना चाहिए और जिस संस्थान में दाखिला मिल रहा है वहां ले कर उसमे खूब मेहनत करें हो सकता है वहां स्लाईडिंग ही हो जाए पर वो सुनने को तैयार नही.

एक साल बहुत मायने रखता है बहुत बच्चे ऐसे भी देखे हैं जो बहुत अच्छा लिखाने के चक्कर में  पूरे साल बहुत तनाव में रहते हैं और टेंशन की वजह से अच्छा नही कर पाते और कुछ में काम्पलेक्स भी आ जाता है जब वो अपने से जूनियर को आगे आते देखते हैं. कई बार एक दूसरे की देखा देखी भी बच्चे ऐसा फैसला कर लेते हैं

फिर भी टेंशन इसी बात की है कि एक साल ड्राप करना या नही करना चाहिए.. कैसे समझाए उसे . बहुत टेंशन है

अगर आपके पास भी कोई सुझाव है तो उसका स्वागत  है 🙂

टेंशन दाखिले की

Some news of IIT

  LiveHindustan.com

देशभर के 18 आईआईटी व आईएसएम धनबाद में एडमिशन के लिए आईआईटी मुंबई की ओर से देशभर के तमाम बोर्डों का टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ जारी कर दिया गया है। इसके तहत इस बार बिहार बोर्ड से12वीं में 342 या इससे अधिक अंक पाने वाले जनरल के छात्रों को ही आईआईटी में दाखिला मिल पाएगा। ओबीसी के लिए 333, एससी के लिए 325, एसटी के लिए 322 और नि:शक्तों के लिए 322 अंक कटऑफ निर्धारित किया गया है। सीबीएसई बोर्ड के छात्रों के लिए जनरल का कटऑफ 440 अंक निर्धारित किया गया है। ओबीसी का 428, एससी का 410, एसटी का 389 और नि:शक्तों का कटऑफ 389 अंक तय किया गया है। इससे कम अंक पाने वाले छात्रों का दाखिला आईआईटी में नहीं हो पाएगा, चाहे वे जेईई एडवांस में भी सफल क्यों न हों। जेईई एडवांस में सफल होने के बाद सिर्फ उन्हीं छात्रों का दाखिला आईआईटी में होगा, जो अपने 12वीं बोर्ड के रिजल्ट में टॉप-20 परसेंटाइल में शामिल होंगे या उन्हें बोर्ड में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त हुए हों। 75 प्रतिशत अंक वाले भी शामिल इस बार आईआईटी में एडमिशन के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है। इसके अनुसार इस बार अपने बोर्ड में 75 प्रतिशत या इससे अधिक अंक लाने वाले जनरल व ओबीसी के छात्रों को भी आईआईटी में दाखिला मिलेगा। एससी-एसटी और नि:शक्तों का दाखिला 70 प्रतिशत या इससे अधिक अंक पर होगा। परीक्षा विशेषज्ञ आनंद जायसवाल ने बताया कि इसका फायदा बिहार बोर्ड के छात्रों को नहीं मिल पाएगा, क्योंकि 75 प्रतिशत के कटऑफ से कम टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ है। इसलिए बिहार बोर्ड के छात्र टॉप-20 परसेंटाइल के कटऑफ पर ही एडमिशन लेंगे। सीबीएसई का 75 प्रतिशत का कटऑफ 375 अंक और 70 प्रतिशत का कटऑफ 350 अंक निर्धारिक किया गया है। ऐसे में सीबीएसई के छात्रों को इसका काफी लाभ मिलेगा। क्योंकि इसका टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ 440 अंक है। जिन छात्रों का 440 अंक नहीं होगा वे 75 प्रतिशत वाले कटऑफ यानि 375 अंक पर भी दाखिला ले सकते हैं। पिछले दो वर्षों से सभी बोर्ड अपना टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ जारी करते थे। इसमें काफी गड़बड़ियां होती थी। 2014 में ही बिहार बोर्ड और जेईई की ओर से जारी किए गए कटऑफ में अंतर हुआ था। इसे देखते हुए इस बार तमाम बोर्ड से डाटा मंगाकर आईआईटी मुंबई ने खुद कटऑफ जारी किया है। पिछली बार से बढ़ा है कटऑफ बिहार बोर्ड का कटऑफ वर्ष 2015 श्रेणी कटऑफ सामान्य 342 ओबीसी 333 एससी 325 एसटी/नि:शक्त 322 बिहार बोर्ड का कटऑफ वर्ष 2014 श्रेणी कटऑफ सामान्य 304 ओबीसी 300 एससी 289 एसटी/नि:शक्त 292 सीबीएसई का कटऑफ 2015 श्रेणी कटऑफ सामान्य 466 ओबीसी 451 एससी 432 एसटी/नि:शक्त 427 सीबीएसई का कटऑफ 2014 श्रेणी कटऑफ सामान्य 416 ओबीसी 410 एससी 370 एसटी/नि:शक्त 366 See more…

A Village of Bihar Masters of IIT JEE Since 1992 –

बिहार के गया जिले में एक गांव है, पटवा टोली। राज्य के अन्य गांवों की तरह यह भी एक सामान्य गांव जैसा ही है। लेकिन इस गांव की एक खासियत है। पिछले 23 सालों से इस मामूली गांव के छात्र वह करिश्मा करते आ रहे हैं, जो सुविधा संपन्न शहरों के स्टूडेंट भी नहीं कर पाते हैं। जी हां, पटवा टोली के छात्र पिछले कुछ सालों में बड़े पैमाने पर आईआईटी पहुंचे हैं। 2015 में भी गांव के 18 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर कर आईआईटी में दाखिला सुनिश्चित किया है। बता दें कि इसमें एक लड़की दीपा कुमारी भी शामिल हैं, जो आईआईटी में पढ़ाई करेंगी। पिछले साल 13 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर किया था। अब तक करीब 300 छात्र गांव में पढ़ाई करके आईआईटी और एनआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंच चुके हैं। कभी नक्सल और जातीय हिंसा से प्रभावित रहे गया जिले का यह गांव पटवाओं की टोली है। यहां के पटवा बुनकरी का काम करते हैं। ये अन्य पिछड़ी जाति में शामिल हैं। 1992 से ही इस गांव के छात्रों के लिए आईआईटी क्लीयर करना सामान्य बात साबित हो रही है। हालांकि, आईआईटी जाने वालों की संख्या कभी कम या कभी ज्यादा हो जाती है। लेकिन पिछले 23 सालों में यह सिलसिला कभी नहीं टूटा। दिलचस्प यह भी है कि आईआईटी जाने वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता या तो कम पढ़े-लिखे हैं या फिर निरक्षर हैं। उन्हें आईआईटी का मतलब भी नहीं पता है। ग्रुप स्टडी है सफलता का राज, पहली बार जितेंद्र पहुंचे थे आईआईटी यहां के छात्रों की सफलता का राज, ग्रुप स्टडी है। गांव के छात्र मिलकर साथ में पढ़ाई करते हैं और एक-दूसरे से सब्जेक्ट्स की गुत्थियां सीखते हैं। 1992 में इस गांव से पहली बार जितेंद्र आईआईटी पहुंचे थे। फिलहाल वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में सेटल्ड हैं। गौरतलब है कि गांव के सैकड़ों आईआईटियन देश-दुनिया में अच्छी जगहों पर सेटल्ड हैं। गांव वाले बताते हैं कि जो छात्र सेटल्ड हो चुके हैं, वे गांव के अन्य छात्रों की मदद करते हैं। सहयोग की इसी भावना के चलते बुनकरों का यह गांव आज आईआईटी हब के रूप में पहचान बना चुका है। 12 देशों में काम करते हैं गांव के इंजीनियर पटवा टोली के इंजीनियर करीब 12 देशों में कार्यरत हैं। सबसे ज्यादा 22 लोग अमेरिका में हैं। जबकि गांव के कई इंजीनियर सिंगापुर, कनाडा, स्विट्जरलैंड, जापान, दुबई आदि देशों में काम कर रहे हैं। people  talking photo… Read more…

June 26, 2015 By Monica Gupta

सिस्टम फेल के पास बच्चें

सिस्टम फेल के पास बच्चें

कुछ साल पहले सरकारी स्कूलों में यह संदेश आया कि कोई बच्चा स्कूल जाए न जाए या स्कूल की परीक्षा में फेल होने पर भी उसे पास जरुर किया जाएगा और स्कूल में पिटाई पर रोक लगा दी गई. इसका सिर्फ एक ही मतलब था कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा स्कूलों मे दाखिला लें. उन दिनों मैनें भी बहुत टीचरों से बात की और कुल मिला कर यही निचोड निकाला कि ये सही नही है अगर बिना स्कूल आए बच्चे पास होते रहेंगें तो एक तो पढाई मे दिलचस्पी नही रहेगी और दूसरा  आगे जाकर यानि बडी क्लासों में बहुत दिक्कत आएगी  क्योकिबचपन में  पढाई तो की नही थी और फिर वो सहारा लेंगें नकल का या फिर ऐसे लोगों को खोजेंगें जो पेपर लीक करते हो और पैसे देकर खरीदेंगें.

2009 में RTE एक्ट लागू होने के बाद शिक्षक बच्चों को फेल नही कर सकते

children going school photo

Photo by One Laptop per Child

 

हुआ भी यही … आज हमारे सिस्टम में सबसे बडी समस्या ही नकल या पैसे देकर पेपर खरीदना तक ही सिमट कर रह गई है और बच्चों पर गुस्सा व्यक्त कर नही सकते तो बच्चे टीचर के सामने जुबान चलाने लगे हैं.

आज कुछ ऐसी ही मुसीबतो को गांव के लोगों ने तब महसूस किया जब लगातार दसवी और बारहवी के नतीजे खराब आए जा रहे थे  और मोर्चा खोल दिया कि हमारे बच्चे  जब स्कूल ही नही आते, पढते नही हैं तो पास  किसलिए करते हो…एक खबर के मुताबिक पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने भी माना  कि बच्चों को फेल न करने का प्रवाधान गलत था. इसी मजबूरी के चलते पाचंवी और आठवी क्लास के बोर्ड भी खत्म कर दिए थे.

अब केन्द्र को ये अनुरोध किया गया है कि फेल न करने के प्रावाधान पर संशोधन करें और 80% हाजिरी अनिवार्य कर दी जाए.

सिस्टम फेल के पास बच्चे

Quality Education Should Not Remain a Distant Dream

Since the last decade, Annual Report on School Education has been presenting a realistic picture of government schools. But governments apparently are not worried as the system ensures inbuilt ‘unaccountability’. In Uttar Pradesh, 72,825 teacher vacancies should have been filled in 2011, but the system remained unconcerned for all these years. It’s only now, under repeated Supreme Court directions, that things have staring moving. There are over a million vacant posts of teachers in the country. Nowhere has been a single person removed or put in jail for such a shameful situation. Even the much-hyped implementation of the Right to Education Act (RTE) was ‘successful’ only on papers, nothing changed in functional terms in sarkari schools.

Over the years, even a cursory look at annual reports of education ministries of the Union and state governments would present a very encouraging scenario. More schools, rooms and teacher positions, significant improvement in enrolments, more children covered under mid-day meal scheme, more officers, more schemes, and much more. All this positivity evaporates once one visits a few government schools anywhere—cities, towns or villages. There is a rare uniformity in the school functioning across the states. Only one inference emerges: is it really impossible to mend these schools? Private schools referred to as ‘public schools’ are mushrooming, and everyone seems to love this phenomenon. To put their child in a public school is the dream of every parent in the country, including even the illiterate families. Only those short of resources or constrained by factors like location reluctantly look towards government schools. One must concede the existence of a small percentage of good government schools and committed teachers. Even this exceptional class suffers because of the overall loss of credibility. See more…

बेशक,  बच्चे का सुखद भविष्य देखना है तो यह करना ही पडेगा  बल्कि अगर टीचर पढाई के मामले मॆ सख्ती भी दिखाए तो गलत नही हां शारीरिक तौर पर नही पर डांट डपट कर भी बच्चे के मन में पढाई के प्रति जागरुकता लानी ही पडेगी…. अन्यथा  सख्ती न दिखाने की दशा में नकल और पेपर लीक जैसे धटनाए होती रहेगी और जो बच्चे वाकई में,  पढने वाले हैं उन  बच्चों के जीवन से खिलवाड होता रहेगा.

सिस्टम फेल के पास बच्चें के बारे में आप क्या कहना चाहेगें !!!

June 25, 2015 By Monica Gupta

हजम नही हुई

हजम नही हुई

दिल्ली का बजट पेश किया जा रहा था और मैं और मेरी सहेली  मणि बाते करते करते मिलावट तक जा पहुंचे मुझे हैरानी हुई कि वो मिलावट के बारे मे ज्यादा नही बोल रही. कारण पूछ्ने पर उसने बताया कि कुछ खास नही बस बचपन में वो पैंसिल का सिक्का बहुत खाती थी. अरे !! मैने कहा कि मुल्तानी मिट्टी और स्लेटी तक तो ठीक है पर मैने पैंसिल का सिक्का तो मैने भी कभी नही खाया.

उसने बताया कि  जब उसका बेटा  छोटा था और वाकर में बाहर खडा हो जाता था तो कई बार लगता था कि चुपचाप क्या कर रहा है आवाज भी नही आ रही  तब देखती  कि वो बडे मजे से गमले के पास खडा होकर कभी मिट्टी खाता तो कभी  दीवार से खुरच खुरच कर दीवार की पापडी बहुत शौक से खाता था.

बाद में पता चला कि ये कैल्शियम की कमी से होता है.

पिछ्ले दिनों मैगी के साथ साथ जब दूध मे भी मिलावट का सुना तो वो खुद खालिस दूध लेने  दूधिए के पास जाने लगी पर दूध इतना खालिस था कि पचा ही नही. पेट दर्द रहने लगा इसलिए  उसमे पानी मिलाकर पीना पडा.

ह हा हा !!मैने कहा कि असल में, हमारा शरीर मिलावट का इतना आदी हो चला है कि खालिस चीज हजम ही नही होती… मुझे मार्किट जाना था तो मैने उससे जाते हुए पूछा कि तेरे लिए पैंसिल लाऊ स्लेटी लाऊ या मुल्तानी मिट्टी  क्या खाएगी !!!

 

two ladies talking photo

Photo by Internet Archive Book Images

| Harit Khabar

किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री में मिलावट का शक होने पर प्रारंभिक जांच एफडीए (Food and Drug Administration) के अधिकारी करते हैं। ये अधिकारी दुकान या उस जगह पर जहाँ कथित मिलावटी खाद्य पदार्थ बन रहा है, से नमूने इकठ्ठा कर आगे की जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजते हैं। पर एफडीए के अधिकारियों का कहना है कि वह हर जगह जा-जा कर ऐसा कर नहीं सकते क्योंकि एक तो केवल शक के आधार पर वे कितनी जगहों से नमूने इकठ्ठा करें? दूसरा, एफडीए के पास साधनों की कमी है और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विभाग के पास अधिकारियों की भी इतनी अधिक संख्या नहीं है कि आसानी से हर संदिग्ध जगह से नमूने लिए जा सके।

June 24, 2015 By Monica Gupta

एकांत

cartoon lady sitting by monica gupta

कई बार खुद को अकेला छोड देना अच्छा होता है… भीड में तो हम हर समय ही धिरे रहते हैं शोर शराबा दिन भर  के तनाव को और बढा देता है ऐसे में एकांत बहुत जरुरी हो जाता है कई बार खुद से ही  कुछ सवाल करने होते हैं तो कई बार खुद के किए सवालों के उत्तर तलाशने होते हैं जो एकांत में ही मिलते हैं .. एकांत,  किसी समुद्र का किनारा हो सकता है या किसी पार्क में पेड के नीचे हो सकता है या फिर अपने कमरे मे भी हो सकता है. जहां पूरी शांति हो … बडे बडे नेता हो या कोई फिल्मी कलाकार सब एकांत के बहाने खोजते रहते हैं और कई बार उसे छुट्टियों का नाम भी दे देते हैं

कुल मिला कर खुद से बात करना बहुत जरुरी  है…

 

 

  Ranchi Express Online

एकांत व मौन ये दो ऐसे साधन है, जिनका अभ्यास हर व्यक्ति को करना चाहिए। जीवन की विकट परिस्थितियों में जब कोई भी व्यक्ति साथ नहीं देता, मदद नहीं करता, बल्कि विरोध में खड़ा हो जाता है, ऐसी परिस्थितियों में एकांत व मौन उन अस्त्रों के समान होते हैं, जो हमारी रक्षा करते हैं।

एकांत में जहां व्यक्ति, अन्य दूसरे व्यक्तियों के सम्पर्क से बचता है वहीं मौन में वह किसी से कुछ भी बोलता नहीं है। शांत रहता है, केवल देखता है। एकांत व मौन अपने जीवन में शक्ति अर्जन करने के साधन है जिसके माध्यम से हम विरोधी शक्तियों व विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला कर सकते हैं, जब हम किसी से मिलते नहीं है, एकांत में रहते हैं, तो हम स्वयं के सबसे करीब होते हैं। इस समय हमें आत्मचिंतन करने का अधिक समय मिल पाता है।

हम स्वयं के प्रति अपनी क्षमताओं के प्रति आसानी से एकाग्र हो जाते हैं। यद्यपि बाहरी परिस्थितियों द्वारा मिलने वाला तनाव हमें एकाग्र होने से बाधा पहुंचाता है, लेकिन फिर भी एकांत होने पर हमें स्थिर व एकाग्र होने से रोक नहीं सकता। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए, किस तरह इनका सामना करना चाहिए। हमें क्या-क्या सहायता मिल सकती है और अपनी अतिरिक्त क्षमताओं को बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए। मौन के माध्यम से हम अपनी वाक क्षमता को नियंत्रित करते हैं। हमारे शरीर व मन से अपार ऊर्जा का बहाव होता है, बोलने के द्वारा भी हमारी बहुत सारी ऊर्जा व्यय होती है। यदि हम मौन धारण करते हैं तो इस ऊर्जा को व्यय होने से बचा सकते हैं और इसका सदुपयोग कर सकते हैं। अनर्गल बोलना, अत्यधिक बोलना, चर्चाएं करना आदि इसलिए साधनाकाल में वर्जित है, जितना आवश्यक व उपयोगी है, उतना ही बोलना चाहिए, अन्यथा चुप रहना चाहिए। हमें सार्थक बोलना चाहिए और अधिक सुनना चाहिए। इसलिए परमात्मा ने इस मानव शरीर में दो कान और एक मुंह दिया है, ताकि हम दो कानों से सुने और उसका कम शब्दों में उचित प्रत्युत्तर दें, साथ में अपनी भावाभिव्यक्ति भी करें।

इसके अतिरिक्त यदि हमें कोई अप्रिय व असहनीय कठोर बातें सुनने को मिलती है, तो उन्हें एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो। उन पर ध्यान न दें, क्योंकि उन पर ध्यान देने का मतलब है स्वयं को दुखी व परेशान करना। कई बात ऐसी बातों को सुनने से व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है और वह फिर दूसरे के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले कार्य करने लगता है। कठोर बातें, कटुक्ति व्यंग्य आदि सुनने से व्यक्ति का क्रोध व अहंकार जाग्रत होता है, जो उसे दिग्भ्रमित कर सकता है। इसलिए हमें इतना समझदार तो होना ही चाहिए कि हम किस तरह की बातों को ध्यान से सुने। किन बातों पर ध्यान न दें। कैसी वाणी बोले, कितना बोले और क्या बोले, इस संसार में सुनने योग्य वही बातें हैं, जो महापुरुषों ने जीवन के संदर्भ में व्यक्ति के लिए कही है। वहीं बातें हमारा मार्गदर्शन करती है।

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